मन ही मनुष्य के सृजन व विनाश का कारण है
संवाद सहयोगी, ब¨ठडा। जैन सभा में विराजमान साध्वी सुनीता ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि मनु
संवाद सहयोगी, ब¨ठडा।
जैन सभा में विराजमान साध्वी सुनीता ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि मनुष्य के मन के द्वारा ही कर्म बंधन होते हैं और मन के द्वारा ही कर्मो के बंधनों को तोड़ा जा सकता है। मन ही मनुष्य के लिए सृजन और विनाश का कारण है। वचन और काया से भी अधिक मन की तरंगों को ताकतवर माना गया है। जैन शास्त्रों में काया से ज्यादा ताकत वचन में और वचन से भी अधिक ताकत मन में मानी गई है। एक पुल पर अगर एक साथ दो हजार सैनिक चल रहे हैं। उनके कदमों की थाप एक साथ पुल पर पड़ रही है। तो पुल टूट सकता है।
वहीं पुल अनेकों गाड़ियों, ट्रकों कि चलने से भी नहीं टूटता। वैज्ञानिकों ने इस बात को सिद्ध भी किया है। इसलिए सरकार ने नियम जारी कर दिया कि सैनिक पुल पार करते हुए एक साथ कदम नहीं उठाएंगे। जिस आवाज से विनाश किया जा सकता है उसी से सृजन भी किया जा सकता है। इसलिए प्रत्येक धर्म में सवेरे-सवेरे परमात्मा की प्रार्थना का विधान किया गया है। आदि कालीन लोग आवाज से लड़ते थे। आज एटम बम मिसाइलों से लड़ा जाता है।
एटम बम पूरे विश्व का विनाश कर सकता है तो इससे भी खतरनाक होता है मन का बम। मन का बम दुश्मन के बम से ज्यादा ताकतवर है इसके लिए इंसान को कहीं जाने की जरूरत नहीं। मनोबम विश्व के किसी भी कोने में बैठे व्यक्ति का विनाश कर सकता है। मॉस्को में फैलादों ने एक प्रयोग किया। जिसमें डेढ़ हजार किलोमीटर दूर खड़े किसी व्यक्ति को मन की तरंगों से बिठा दिया गया। मन की तरंगों का विशेष महत्व है। अरब देश में यूरी गैलर नामक मूर्तिकार ने मन की तरंगों का प्रयोग कर साबित कर दिखाया की मन की तरंगें मूर्ति के चारों तरफ घूमती हैं और वह मूर्ति उसके मन की इच्छा के अनुसार ऊपर-नीचे हो सकती है।
मन से निकली किरणें अहिंसात्मक व प्रभावशाली
साध्वी ने बताया कि जैन आगम में बताया गया कि मन से निकलने वाली तरंगें अ¨हसात्मक और प्रभावशाली होती हैं। सामने वालों की तरंगों को प्रतीकात्मक रूप से रोकती हैं। इतना ही नहीं दुनिया से निकलने वाली अ¨हसा सत्य ब्रह्मचर्य आदि की शुभ तरंगें भी विश्व को ¨हसा से बचा सकती हैं।
धर्म की तरंगें अदृश्य रूप से वहां पहुंचती हैं और दीवार खड़ी कर देती हैं। मन की तरंगें जब इतना बड़ा विनाश रोग सकती हैं। तो क्या जीवन में होने वाली छोटी-मोटी घटनाओं को नहीं रोका जा सकता।
आज व्यक्ति सोचता है कि बार-बार लड़ाई से एक बार आर-पार की लड़ाई हो जाए तो अच्छा है। दुश्मन देश का पत्ता एक बार में ही साफ हो जाए परंतु सोच को सकारात्मक रखना चाहिए। दुश्मन खत्म हो जाने से लड़ाई दंगे खत्म नहीं हो जाएंगे। शांति नहीं हो जाएगी। शांति के लिए हर भारतीय को अपनी सोच सकारात्मक रखनी चाहिए। मैं सबका मित्र हूं यह भावना बनानी चाहिए। यह तरंगें सामने वाले के दिमाग को ठीक कर सकती हैं।
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