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    इन्द्रियों को वश में करने से प्रकट होती है दिव्य चेतना

    By Edited By:
    Updated: Thu, 30 Jun 2016 07:39 PM (IST)

    जागरण संवाददाता, ब¨ठडा : दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से मौड़ मंडी में एक दिवसीय सत्संग समागम

    जागरण संवाददाता, ब¨ठडा :

    दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से मौड़ मंडी में एक दिवसीय सत्संग समागम का आयोजन किया गया । जिसमें भारी संख्या में श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया।

    सत्संग करते साध्वी मैथिली भारती जी ने कहा कि अध्यात्म को समझने के लिए हमें चेतना को समझना पड़ेगा। चेतना ब्रह्मांड का वह सूक्ष्म स्तर है जो मनुष्य को ज्ञात है। चेतना कोई भौतिक वस्तु नहीं। क्योंकि यह व्यापक है। परंतु यह स्वयं पदार्थ नहीं है। चेतना से विचार पैदा होते हैं। बौद्धिक स्तर पर चेतना से उर्जा और उर्जा से विचार पैदा होता है। बौद्धिक स्तर पर चेतना प्रकाश की तरह है। जो बुद्धि व ज्ञान को प्रकाशित करती है। भावना के स्तर पर परमानंद है। शक्ति के स्तर पर गतिशीलता है। भौतिक स्तर पर यह वो अधारभूत उपदान है जिससे संसार की प्रत्येक वस्तु बनी है। चेतना दो प्रकार की होती है। एक है मुक्त चेतना जो कि सर्वत्र व्याप्त है। दूसरी है शक्ति चेतना। जो कि शरीर में ही सीमित होती है। मुक्त चेतना से शारीरिक चेतना से बराबर संपर्क बना रहता है। यदि वह संपर्क टूट जाए तो मृत्यु अवश्य है। निद्रा की अवस्था में हमारी ज्ञान इन्द्रियां काम करना बंद कर देती हैं तथा मुक्त चेतना का के प्रवेश का द्वार फैल जाता है। इससे चेतना ज्ञान इंद्रियों से बाहर निकलती रहती है। यही कारण है कि हम सुबह उठने पर तरोताजा महसूस करते हैं। अध्यात्म कहता है कि अपनी इन्द्रियों का जितना हो सके कम से कम इस्तेमाल करे ताकि इनकी ओर से क्षीण होने वाली चेतना को बचाया जा सके। भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं कि जो व्यक्ति सभी इन्द्रियों को संयमित योग से युक्त हो कर ईश्वर परायण हो जाना है जिसकी इन्द्रियां वश में हो जाती हैं उसकी प्रज्ञा प्रतिष्ठित हो जाती है। उसकी दिव्य चेतना जागृत हो जाती है।

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