यह आसमान छिन गया तो हम नया ढूंढ लेंगे, हम वो परिदे नहीं जो उड़ना छोड़ देंगे
यह आसमान छिन गया तो हम नया ढूंढ लेंगे हम वो परिदे नहीं जो उड़ना छोड़ देंगे।

जासं, अमृतसर: यह आसमान छिन गया तो हम नया ढूंढ लेंगे, हम वो परिदे नहीं जो उड़ना छोड़ देंगे। यह पंक्ति विषम परिस्थितियों से लड़ने का जज्बा और आत्मविश्वास पैदा करती है। विश्व थैलेसीमिया दिवस व मातृ दिवस पर 19 वर्षीय आदिति भल्ला ने सरकारी मेडिकल कालेज के आडिटोरियम में यह पंक्ति सुनाई तो थैलेसीमिया पीड़ित बच्चे, उनके अभिभावक व कालेज के प्रिसिपल डा. राजीव देवगण सहित समस्त प्रोफेसर तालियां बजाने से खुद को रोक ना सके।
आदिति ने मंच से जागरूकता भरे संदेश दिए। उसने कहा वह 19 वर्षो से थैलेसीमिया से लड़ रही हूं, पर इसे खुद पर हावी नहीं होने दिया। मैं परिवार के सहयोग से सकारात्मक भाव से आगे बढ़ रही हूं। उन्होंने कभी महसूस नहीं होने दिया कि मैं नार्मल चाइल्ड नहीं हूं। 15 से 20 दिन बाद रक्त बदलवाना पड़ता है। थैलेसीमिया का उपचार करवाना जरूरी है। इसके साथ ही मैं ला (कानून) की पढ़ाई के साथ-साथ डांसिग व स्केटिग कर रही हूं। स्केटिग में नेशनल लेवल पर तक खेल चुकी हूं। मैं चाहती हूं कि हर थैलेसीमिक बच्चा अपने सुनहरी सपनों को पूरा करे।
गाजियाबाद की रहने वाली ज्योति अरोड़ा सबके लिए प्रेरणा की पुंज हैं। मेजर थैलेसीमिया पीड़ित होने के चलते सातवीं कक्षा में उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा, पर उन्होंने घर से पढ़ाई जारी रखी। एमए तक शिक्षा प्राप्त की और अब थैलेसीमिया के प्रति लोगों को जागरूक कर रही हैं। हमें इनसे प्रेरित होकर आगे बढ़ना है। इस अवसर पर सीएमसी लुधियाना से गेस्ट स्पीकर डा. जोसफ जोन, जीएनडीएच के डिप्टी मेडिकल सुपरिटेंडेंट डा. नरिदर सिंह, पीडियाट्रिक विभाग के प्रो. डा. अश्विनी सरीन, असिस्टेंट प्रोफेसर डा. संदीप अग्रवाल, डा. हनीश सहित समस्त डाक्टर व थैलेसीमिक बच्चे तथा उनके अभिभावक उपस्थित थे। थैलेसीमिया से बचने के लिए शादी से पहले वर-वधु का एचपीएलसी टेस्ट जरूर करवाएं
मेडिकल कालेज के डायरेक्टर प्रिसिपल डा. राजीव देवगण ने कहा कि थैलेसीमिया से बचने के लिए शादी से पहले वर-वधु का हाई परफार्मेस लिक्विड क्रोमैटोग्राफी टेस्ट करवाना जरूरी है अन्यथा यह बीमारी बढ़ती रहेगी। इसके लिए शेयर, अवेयर व केयर जरूरी है। ये बच्चे सकारात्मक ढंग से जीवन जी रहे हैं। अस्पताल में इनका निश्शुल्क उपचार किया जा रहा है। पीडियाट्रिक विभाग की प्रोफेसर एंड हेड डा. मनमीत सोढी ने कहा कि हम चाहते हैं कि थैलेसीमिया दिवस न मनाया जाए, लेकिन यह तभी मुमकिन है जब थैलेसीमिया रोग का अस्तित्व न हो।
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