Operation Blue Star: सेना का वीर सपूत आखिर क्यों लड़ा अपनी आर्मी के खिलाफ... कौन था भिंडरावाला का कमांडर
ऑपरेशन ब्लू स्टार की 39वीं बरसी है। बात ऑपरेशन ब्लू स्टार की हो और इससे पहले स्वर्ण मंदिर में रचे गए चक्रव्यूह की बात न हो ऐसा हो नहीं सकता। भिंडरावाले के कमांडर मेजर जनरल शाबेग ने गुरुद्वारे में बैठकर पूरी रणनीति तैयार की थी।

चंडीगढ़, ऑनलाइन डेस्क। Operation Blue Star: ऑपरेशन ब्लू स्टार की 39वीं बरसी पर अमृतसर में चप्पे चप्पे पर पुलिस तैनात की गई है। साथ ही श्री हरिमंदिर साहिब परिसर में भी आंतरिक सुरक्षा बढ़ाई गई। दरअसल, 4 से 6 जून 1984 के बीच ऑपरेशन ब्लू स्टार हुआ था।
हालांकि, जब भी ऑपरेशन ब्लू स्टार की बात होती है तो इस पर इतिहास के तमाम पन्ने खंगाले जाते हैं। इसे लेकर कई किताबें लिखी भी गई हैं और अभी भी कई लेखकों द्वारा लिखी जा रही हैं। जब भी ऑपरेशन ब्लू स्टार की बात होती है तो उसमें मेजर जनरल शाबेग सिंह का नाम जरूर याद किया जाता है। चलिए जानते हैं कि सेना के लिए लड़ने वाला मेजर जनरल आखिर क्यों आखिरी सांस तक सेना के खिलाफ लड़ा।
स्वर्ण मंदिर के अंदर सेना से लड़ने का तैयार किया 'चक्रव्यूह'
यूं तो ऑपरेशन ब्लू स्टार और जरनैल सिंह भिंडरावाले को लेकर समय-समय पर कई तरह के खुलासे हुए हैं। भिंडरावाले की कई तस्वीरें भी देखी गई हैं, जिनमें उसके आसपास एक सफेद दाड़ी वाले शख्स को देखा गया है। ऐसा माना जाता है कि ये शख्स और कोई नहीं बल्कि मेजर जनरल शाबेग सिंह थे। शाबेग एक ऐसे शख्स थे जिन्होंने स्वर्ण मंदिर में बैठकर भारतीय सेना से मोर्चा लेने के लिए चक्रव्यूह तैयार किया था।
कौन थे मेजर शाबेग?
- मेजर शाबेग को ऑपरेशन ब्लू स्टार के अलावा 1947 और 1962 में देश को बचाने के लिए लड़ी गई लड़ाई के लिए भी याद किया जाता है। शाबेग हमेशा अपने देश को बचाने के लिए तत्पर रहे। उन्होंने पहले 1947 में पाकिस्तान के खिलाफ, फिर 1962 में चीन के खिलाफ लड़ाई में देश का नेतृत्व किया।
- उसके बाद उन्होंने 1965 व 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में दुश्मन देश से लोह लिया। 1948 की जंग में भी उन्होंने भाग लिया था। उनको सिर्फ बीस साल की उम्र में किंग्स कमीशन मिला था। 1942 में वे ब्रिटिश आर्मी में अफसर बने थे। उन्होंने देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी लड़ाई लड़ीं।
- उन्होंने बर्मा, सिंगापोर और मलेशिया में जाकर अपनी बहादुरी दिखाई। फिर आखिर क्यों भारतीय सेना को छोड़कर भिंडरावाला की आर्मी की कमान संभाली? यहां तक कि सेना के ही खिलाफ उन्होंने बम, बारूद और हथियार जुटाए।
स्वर्ण मंदिर के साथ बचपन से ही रहा लगाव
जरनैल सिंह भिंडरावाला के लिए शाबेग दाएं हाथ की तरह थे। शाबेग भारतीय आर्मी और पैरा कमांडोज की ताकत तो जानते ही थे इसी के साथ कमजोरियों को लेकर भी अच्छी तरह से वाकिफ थे। शाबेग को शुरुआत से स्वर्ण मंदिर के साथ लगाव रहा।
उनकी पढ़ाई भी अमृतसर के खालसा कॉलेज से ही हुई थी। यहां से आते-जाते वे हमेशा ही माथा टेका करते थे। ऑपरेशन ब्लू स्टार के 3 से 4 महीने पहले शाबेग को भिंडरावाले पर ज्यादा भरोसा होने लगा। इस कारण से वे भिंडरावाले का साथ देने के लिए तैयार हुए।
देश के लिए लड़ने वाला देश से ही क्यों लड़ने लगा
बांग्लादेश युद्ध के बाद से शाबेग पर कई तरह के आरोप लगाए गए थे। इनमें एक आरोप ये भी था कि उन्होंने 9 लाख रुपए का घर बनाया। हालांकि, उन्होंने अपने ऊपर लगे आरोपों को साबित करने की भी कोशिश की लेकिन उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। जब इसे लेकर उनकी मां ने उनसे पूछा तो उन्हें बहुत शर्म महसूस हुई। यहां तक की उनकी पेंशन तक रोक दी गई थी।
उन्होंने कोर्ट के भी कई चक्कर लगाए, लेकिन कुछ बात न बनी। इसी बीच उनकी पत्नी की भी मौत हो गई। फिर उनका गुस्सा सरकार के खिलाफ बढ़ता ही गया। ऐसा माना जाता है कि इसी के बाद वे जरनैल सिंह भिंडरावाले के संपर्क में आए। फिर उन्हें भिंडरावाले और अपनी लड़ाई लगभग एक जैसी लगने लगी।
मोगा की घटना से ली प्रेरणा
लेफ्टिनेंट केएस बराड़ की किताब "ऑपरेशन ब्लू स्टार का सच" में लिखा गया है कि ऑपरेशन को और खींचना चाहते थे। शाबेग भारतीय सेना और अर्द्धसैनिक बलों की कमजोरियों के बारे मे जानते थे। ऑपरेशन ब्लू स्टार से कुछ समय पहले फिरोजपुर के पास मोगा में एक ऐसी घटना हुई थी, जिसमें कुछ उग्रवादियों ने स्थानीय गुरुद्वारों में शरण ले ली थी।
जब इस बात की जानकारी मिली तो अर्द्धसैनिक बलों ने इन गुरुद्वारों को घेर लिया था। इस समय फिर धार्मिक नेताओं धमकी दी थी कि अगर घेरा न हटाया गया तो उनकी तरफ से एक जत्थे के साथ कूच किया जाएगा। इसके बाद सरकार को पीछे हटना पड़ा था। इसी बात से शाबेग को अंदाजा हो गया था कि सरकार स्वर्ण मंदिर के अंदर सेना को नहीं भेजेगी। इसी कारण से स्वर्ण मंदिर के अंदर पूरी तैयारी की गई थी।
हालांकि, हुआ इसका उल्टा... सरकार ने स्वर्ण मंदिर में सेना को भेजा और वहां से अलगाववादियों का खात्मा किया गया।
उनको ऐसा लगता था कि अगर आपरेशन लंबा खिंचा तो जनता विद्रोह पर उतारू हो जाएगी जो कि उनकी मुहिम को मजबूत बनाएगी।
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