Punjab : 150 साल पुराना है अमृतसर का चूड़े वाला बाजार, हेमा मालिनी ने बेटी के लिए यहीं से खरीदा था चूड़ा
पंजाब में शादी पर दुल्हन को सुंदर लहंगा या अन्य रंग का जोड़ा पहनने का खास इंतजार होता है। परंपरा के तहत लड़की को उनके रिश्तेदार की ओर से लाया गया लाल रंग का चूड़ा व क्लीरे दोनों हाथों में पहनाए जाते हैं।
हरीश शर्मा, अमृतसर। पंजाब में लाल रंग का चूड़ा लड़की की शादी पर उसके रिश्तेदार की तरफ से पहनाया जाता है। नवविवाहिता की यह सुहाग की निशानी भी माना जाता है। ऐसे में लाल चूड़े की मांग प्रदेश के हर शहर में है। महानगर में भी स्थित दरबार साहिब का चूड़े वाला प्रसिद्ध बाजार है, जिसका इतिहास करीब 150 साल पुराना है। यहां पर हाथी के दांत का चूड़ा बनता था और विवाह के समय लड़कियां उसे पहनती थीं। यहां की दुकानों से बालीवुड अभिनेत्रियां तक चूड़ा लेकर पहन चुकी हैं।
पंजाबियों की शादी समारोह के चर्चे दूर-दूर तक होते हैं। हो भी क्यों ना, आखिर खुले दिल वाले जो हैं। किसी परिवार में जब लड़की की शादी होती है तो घर के सभी सदस्य खरीदारी में जुट जाते हैं। हो भी क्यों ना, आखिर घर के आंगन खुशियां जो आई हैं। वहीं लड़की को भी इस खास दिन पर सुंदर लहंगा या अन्य रंग का जोड़ा पहनने का खास इंतजार होता है। वहीं इस दौरान परंपरा के तहत लड़की को उनके रिश्तेदार की ओर से लाया गया लाल रंग का चूड़ा व क्लीरे दोनों हाथों में पहनाए जाते हैं।
लाल चूड़े को करीब एक साल तक पहना जाता है। शादी में चूड़ा पहनने को लेकर दुल्हन सबसे ज्यादा क्रेजी रहती है। शहर में श्री दरबार साहिब के पास स्थित चूड़े वाला बाजार पूरे राज्य में अपनी खास वजह व इतिहास के कारण काफी प्रसिद्ध है। यहां पर अलग-अलग डिजाइन के कई चूड़े तैयार किए जाते हैं। हालांकि प्रदेश के अन्य शहरों भी अब चूड़े बनने शुरू हो गए हैं। हालांकि चूड़ा बनाने की रवायत शहर के अंदर दरबार साहिब के करीब बसे इसी चूड़े वाले बाजार से ही शुरू हुई थी।
हाथी दांत को 12 घंटे कच्ची लस्सी में भिगोते थे
अंदरून शहर में तंग गलियों में बसा चूड़े वाला बाजार करीब 150 साल पुराना है। शादी में चूड़ा बनाने का काम मुस्लिम कारीगर करते थे। उस समय यह कला केवल मुस्लिम कारीगरों के पास ही थी। वे ही हाथी के दांत का चूड़ा बनाते थे और उसे लड़कियां शादी के समय अपनी कलाई पर पहनती थीं। हाथी के दांत को काटने के लिए विशेष तरह के औजार इस्तेमाल किए जाते थे। हाथी के दांत को करीब 12 घंटे तक कच्ची लस्सी में भिगोकर रखा जाता था ताकि वह नर्म हो जाए और उसे आसानी से काट कर आकार दिया जा सके।
अब किया जा रहा जर्मनी के प्लास्टिक का उपयोग
बाद में जब हाथी के दांतों पर प्रतिबंध लग गया तो जर्मनी से एक प्लास्टिक आने लगा जो हाथी के दांत की नकल हुआ करता था। उसे सिलेंडर कहा जाता था। उसके बाद उस सिलेंडर से चूड़ा तैयार करना शुरू हो गया। अब यहां के प्लास्टिक के चूड़े बनने लगे हैं।
बंटवारे के समय मुस्लिम चले गए तो हिंदू-सिखों ने अपनाया ये काम
पहले मुस्लिम कारीगर ही चूड़े को तैयार करते थे। वह कला में बहुत माहिर थे। फिर बाद में धीरे-धीरे हिंदू और सिख परिवार के लोगों ने भी चूड़ा बनाने का काम सीख लिया। वे लोग भी इसी बाजार में काम करने लगे और रोजी रोटी का यह उनके लिए एक अच्छा जरिया बना। वर्ष 1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद मुस्लिम कारीगर सरहद पार चले गए और यहां पर हिंदू-सिख दुकानदारों की ओर से इस काम को आज तक जारी रखा गया है।
विदेश से भी आर्डर करते हैं लोग
शादी में चूड़ा पहनने की रस्म केवल पंजाब के लोगों में ही पहले होती थी। मगर इस रस्म पर परंपरा को सभी लोग अपनाने लगे हैं। यहां तक कि अब विदेश में बसे पंजाबी और अन्य लोग भी चूड़े का विशेष आर्डर कर अपने पास मंगवाते हैं।
चूड़े का कारोबार करने वाले गुरशरण सिंह चन्ना चूड़ा वाले बताते हैं कि बाजार में मौजूदा समय में एक हजार रुपये की कीमत से चूड़े की शुरुआत हो जाती है। इसके बाद ग्राहक की मर्जी है कि वह किस तरह का चूड़ा बनवाता है। एक हजार से 80 हजार रुपये तक का चूड़ा यहां पर बनाया जाता है।
ड्रीम गर्ल माधुरी, अमीषा पटेल को दिया था यह चूड़ा
दुकानदार गुरशरण सिंह ने बताया कि शादी में चूड़ा पहनने के लिए फिल्म अभिनेत्रियां और माडल भी अब यहां से आर्डर करने लगी हैं। सबसे पहले उन्होंने ही फिल्म अभिनेत्री और ड्रीम गर्ल माधुरी दीक्षित को उनकी शादी पर चूड़ा भेंट किया था। इसके बाद हेमा मालिनी खुद अपनी बेटी के लिए चूड़ा लेने के लिए यहां पर आई थीं। यही नहीं, अभिनेता सनी देयोल की गदर फिल्म की शूटिंग के दौरान अभिनेत्री अमीषा पटेल को उन्होंने चूड़ा भेंट किया था। इसके अलावा कई और फिल्म हेरोइनों को वह चूड़ा दे चुके हैं।
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