पंजाब में आतंकवाद पीड़ितों को नहीं मिल रही पेंशन और सम्मानजनक जीवन, राज्यपाल से लगाएंगे न्याय की गुहार
पंजाब में आतंकवाद पीड़ितों को पेंशन और सम्मानजनक जीवन नहीं मिल रहा है। कई परिवारों ने अपनी दुखभरी कहानियाँ सुनाकर सरकारों से मदद मांगी, पर कुछ नहीं मि ...और पढ़ें

आतंकवाद पीड़ित आज राज्यपाल से मिलकर बताएंगे अपना दर्द (फाइल फोटो)
नितिन धीमान, अमृतसर। पंजाब में तीन दशक पूर्व भड़की आतंकवाद की आग की राख आज भी ठंडी नहीं हुई है। जिन आंगनों में कभी हंसी थी, वहां अब सन्नाटा है, जिन घरों में दूध की महक थी, वहां आज भी गोलियों, चीखों और बिछड़े लोगों की यादें गूंजती हैं। यह जख्म समय के साथ भरने के बजाय और गहरे होते गए, क्योंकि इन परिवारों को न सहारा
मिला और न सरकारी वायदों का लाभ। अब इन पीड़ित परिवारों में आस की एक किरण प्रज्ज्वलित हुई है। सोमवार को पंजाब के राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया इन परिवारों से मिलेंगे।
रविवार को श्री दुर्ग्याणा कमेटी की अध्यक्ष प्रो. लक्ष्मीकांता चावला से मिले इन परिवारों ने जब उन वीभत्स घटनाओं का उल्लेख किया तो हृदय कांप उठा। सबसे भयावह घटनाओं में वीरो देवी के परिवार का जनसंहार शामिल है।
भिखीविंड के चक्क बम्बे क्षेत्र में उनके परिवार के दस लोग जिनमें देवर, जेठ, ससुर, पति, ताया, चाचा सबको बांधकर मार दिया गया। परिवार दूध का धंधा करता था। परिवार की सभी महिलाएं विधवा का संताप भोगने को विवश हुईं।
1988 में गांव छोडकर शहर आना वीरो देवी की मजबूरी बन गई। बाद में प्रो चावला के प्रयास से वीरो देवी को नौकरी मिली, पर आज भी वह किराये के मकान में अपनी बेटी और दोहती के साथ रहती हैं।
ऐसी ही पीड़ादायक कहानी चमकौर सिंह के परिवार की भी है। चमकौर के पिता को आतंकवादियों ने वल्टोहा में गोलियों से मार दिया था। माता को पेंशन जरूर मिलती है, पर परिवार बेरोजगारी से जूझ रहा है। सरकार ने उस दौर में घोषणा की थी कि हर पीड़ित परिवार को नौकरी दी जाएगी, लेकिन यह वादा आज तक कागजों तक ही सीमित है।
तरनतारन के लड्डू गांव के इंद्रजीत सिंह की कहानी भी उतनी ही दिल दहला देने वाली है। उनके दादा गांव के नंबरदार थे। एक मामले में समझौता कराने बाहर गए थे। आतंकवादी उन्हें उठाकर ले गए और गोलियों से छलनी कर दिया।
इंद्रजीत बताते हैं कि उनकी दादी को आज भी केवल छह हजार रुपये पेंशन मिलती है। इतनी कम रकम में दवा और घर का खर्च उठाना असंभव है। परिवार को नौकरी भी नहीं मिली। गांव डेहरीवाल मेहता रोड के अमरीक सिंह बताते हैं कि उनके छोटे भाई को घर से निकालकर मार दिया गया।
परिवार चौथा तक नहीं कर पाया। उन्हें उसी वक्त घर छोड़ना पड़ा। आज तक पेंशन तक नहीं मिली। डीजीपी को पत्र लिखा, तो फोन आया, पर सुनवाई आज तक नहीं हुई। भाई की मौत के सदमे में पिता को दिल का दौरा पड़ा और उनकी भी मृत्यु हो गई।
इधर, शकुलता रानी का दर्द भी ऐसा है जिसे सुनकर रूह कांप उठती है। उनके पति को माड़ीमेघा में आतंकवादियों ने मार दिया, फिर देवर को उठाकर ले गए। उसका आज तक पता नहीं चला। वह बताती हैं कि आतंकवादी कभी भी घर पर आ धमकते थे।
कभी चाय मांगते, कभी रोटी। घर का सारा सामान और गहने ले गए। इन सभी परिवारों की पीड़ा, दर्द और टूटे भरोसे की कहानियां एक जैसी हैं। आज भी कई परिवार किराये के कमरों में गुजारा कर रहे हैं।
पेंशन या तो नहीं मिल रही या छह हजार रुपये इतनी कम है कि जीवनयापन बेहद कठिन है। महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रो. लक्ष्मीकांता चावला के प्रयास से सोमवार को पंजाब के राज्यपाल इन परिवारों से मिलेंगे। इन परिवारों की मांग है कि उनकी पेंशन बढ़ाई जाए। परिवार के सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाए।
प्रो. लक्ष्मीकांता चावला ने कहा कि छह हजार रुपये में किसी परिवार का गुजारा असंभव है। कई परिवार आज भी संघर्ष कर रहे हैं। इन परिवारों ने आतंक का वह दौर जिया और आज भी न्याय तथा सम्मानजनक जीवन की राह देख रहे हैं। आतंक का दौर बीत गया, पर उसका दर्द आज भी जीवित है।

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