कभी आतंक की राह पर चली संदीप, आज निराश्रित बच्चों की जिंदगी में जला रही खुशियों के दीप
उस दौर में बब्बर खालसा चरमपंथियों का सबसे बड़ा संगठन था। संदीप कौर शादी से पहले ही इससे जुड़ गई थीं। ...और पढ़ें

नितिन धीमान, अमृतसर। जून 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद द्वेष की जो ज्वाला भड़की उसने कई की राह बदल दी। इस घटना ने संदीप कौर को भी उद्वेलित किया। उन्होंने हथियार उठा लिये, उग्रवादी संगठन से जुड़ गईं, लेकिन वक्त के साथ उन्हें अहसास हुआ कि यह रास्ता ठीक नहीं तो उन्होंने अपनी जिंदगी का मकसद बदला। आज वही संदीप कौर निराश्रित बच्चों की जिंदगी में खुशियों के दीप जला रही हैं।
उस दौर में बब्बर खालसा चरमपंथियों का सबसे बड़ा संगठन था। संदीप कौर शादी से पहले ही इससे जुड़ गई थीं। संगठन का नियम था कि महिला सदस्य संगठन के ही किसी पुरुष सदस्य से शादी करे। वर्ष 1989 में संदीप ने बब्बर खालसा में सक्रिय धर्म सिंह काश्तीवाल से शादी कर ली। 1992 में पुलिस ने मुठभेड़ में धर्म सिंह को मार गिराया। हथियारों की आपूर्ति के आरोप में संदीप कौर भी चार वर्ष तक संगरूर जेल में बंद रहीं। वह बताती हैं कि जेल में एक रिश्तेदार उनके इकलौते बेटे को मिलवाने लाया। इस मुलाकात में उनके जहन में यह बात आई कि चरमपंथी गतिविधियों में काल का ग्रास बन रहे लोगों के बच्चे किस हाल में होंगे? उनकी देखरेख कौन करता होगा?

1996 में जेल से रिहा हुईं तो एक मकसद लेकर बाहर आईं। उन्होंने ऐसे बच्चों की देखभाल के लिए सुल्तानविंड में पति धर्म सिंह के नाम पर भाई धर्म सिंह खालसा चेरिटेबल ट्रस्ट की नींव रखी। इसके बाद उन बच्चों की तलाश शुरू हुई जिनके अभिभावक नहीं रहे थे। इन बच्चों को ट्रस्ट में लाकर शिक्षण संस्थानों में दाखिला दिलाया गया। धीरे-धीरे ट्रस्ट में 250 लड़कियों को भी आश्रय मिला। ये बच्चियां उग्रवाद के दौर में परिवार से बिछुड़ गई थीं। ज्यादातर लड़कियों को सीबीएसई मान्यता प्राप्त स्कूलों में शिक्षा दिलवाई जा रही है। ये बच्चियां डॉक्टरी, इंजीनियरिंग, कानून व अकाउंटेंसी की पढ़ाई कर रही हैं। ट्रस्ट लड़कियों के शादी का खर्च भी उठा रहा है। संदीप कौर की इस उपलब्धि को सरकार ने भी सराहा। वर्ष 2015 में केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण ने उन्हें सबसे प्रेरणादायक महिला का खिताब प्रदान किया।
नहीं चाहती थीं कि ये बच्चे अतीत में डूबे रहें
संदीप कौर कहती हैं कि पति की मृत्यु के बाद मैं नहीं चाहती थी कि चरमपंथियों के बच्चे अतीत में डूबे रहें। वे अपना करियर बनाने की ओर ध्यान दें और अच्छे इंसान बनें। वर्तमान में यह ट्रस्ट 1000 से ज्यादा बच्चों की शिक्षा का दायित्व निभा रहा है। कुछ बच्चे बीटेक, एलएलबी, एमबीए, एमएससी, एमसीए की पढ़ाई कर रहे हैं। ये बच्चे अनाथ नहीं, मैं उनकी मां हूं, पिता हूं और बहन हूं। ट्रस्ट में तीन ऐसी लड़कियां भी हैं जो संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा की तैयारी कर रही हैं।
गर्भ में ही लिया गोद
कुछ वर्ष पूर्व संदीप कौर ने एक ऐसी बच्ची को गोद लिया था जो अभी मां के गर्भ में ही थी। संदीप बताती हैं कि मालूम हुआ कि यह महिला गर्भपात कराने जा रही है, क्योंकि वह जानती थी कि उसकी कोख में कन्या है। मैंने कहा, तुम बच्ची को जन्म दो इसकी परवरिश मैं करूंगी।
दो किताबें लिखी
संदीप कौर ने ‘बिखरे पैंडे’ और ‘ओड़क सच’ दो पुस्तकें भी लिखी। ‘बिखरे पैंडे’ में उसने चरमपंथी आंदोलन और पुलिस की कार्रवाई का उल्लेख किया है। ‘ओड़क सच’ उनकी आत्मकथा है। इसमें भी उग्रवादी गतिविधियों का जिक्र किया गया है।

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