अमृतसर को मुख्यालय बनाएगा शिअद का बागी गुट, चंडीगढ़ में होगा सह कार्यालय; किसी भी राजनीतिक गठबंधन से इनकार
शिरोमणि अकाली दल बादल से अलग हुए गुट ने ज्ञानी हरप्रीत सिंह को अध्यक्ष चुनकर अमृतसर को पार्टी का मुख्यालय बनाया है। चंडीगढ़ में सह-कार्यालय होगा। अमृतसर की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को देखते हुए यह फैसला लिया गया। पार्टी का लक्ष्य संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करना है और फिलहाल किसी गठबंधन की योजना नहीं है। तरनतारन उपचुनाव पार्टी के लिए पहली परीक्षा होगी।

नितिन धीमान, अमृतसर। शिरोमणि अकाली दल बादल के बागी गुट का पार्टी मुख्यालय अमृतसर होगा। पारंपरिक शिअद बादल का विरोध कर नए अकाली दल की स्थापना करने वाले बागी गुट ने अध्यक्ष व श्री अकाल तख्त साहिब के पूर्व जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह को अध्यक्ष नियुक्त किया है।
वहीं अमृतसर को पार्टी का मुख्यालय बनाया गया है, जबकि सह कार्यालय चंडीगढ़ में होगा। पार्टी के वरिष्ठ नेता और हाल ही में अध्यक्ष पद पर चुने गए ज्ञानी हरप्रीत सिंह के नेतृत्व में यह निर्णय लिया गया है।
दरअसल, अमृतसर को धार्मिक और सांस्कृतिक नगरी के रूप में जाना जाता है। गुरु नगरी में स्थित श्री हरिमंदिर साहिब सिखों की आस्था का केंद्र है। इसके अतिरिक्त अकाली दल का इतिहास अमृतसर से गहराई से जुड़ा रहा है। यही कारण है कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने सुझाव दिया कि संगठन का वास्तविक केंद्र वहीं होना चाहिए, जहाँ से सिख भावनाओं और पंजाबियत की धड़कन महसूस की जा सके।
पार्टी के वरिष्ठ नेता जसबीर सिंह घुम्मन के अनुअसार जल्द ही अमृतसर में कार्यालय स्थापित किया जाएगा। इसके लिए उपयुक्त कार्यालय की तलाश की जा रही है। पार्टी मुख्यालय अमृतसर में
होगा, लेकिन चंडीगढ़ की उपेक्षा नहीं की जाएगी। चंडीगढ़ पंजाब—हरियाणा की प्रशासनिक राजधानी होने के नाते राजनीतिक दृष्टि से बेहद अहम है। यहां से राज्य स्तर की प्रशासनिक गतिविधियों और दिल्ली दरबार तक सीधा संपर्क बनाए रखना आसान रहता है। यही वजह है कि चंडीगढ़ में सब आफिस बनाया जाएगा।
विशेषज्ञ मानते हैं कि अमृतसर को मुख्यालय बनाना केवल संगठनात्मक बदलाव नहीं, बल्कि राजनीतिक संदेश भी है। बीते वर्षों में शिरोमणि अकाली दल बादल अपनी जड़ों से कुछ हद तक दूर होता दिखा था। किसानों के आंदोलन, नशे की समस्या, बेअदबी की घटनाएं और युवा पीढ़ी की नाराजगी ने पार्टी की छवि को प्रभावित किया।
नए अकाली दल के अध्यक्ष ज्ञानी हरप्रीत सिंह और पंथिक काउंसिल की चेयरपर्सन सतवंत कौर की ओर से संगठनात्मक ढांचे संबंधित प्रमुख निर्णय लिए गए हैं। पार्टी का पूरा ध्यान फिलहाल ढांचा तैयार करने और धार्मिक एवं राजनीतिक मामलों पर मंथन करने का है। सूत्र बताते हैं कि नया अकाली दल किसी से गठबंधन नहीं करेगा।
वास्तविक स्थिति यह है कि शिअद का यह विद्रोही गुट शिरोमणि अकाली दल बादल के सुप्रीमो सुखबीर बादल के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है। शिअद ने 2022 के विधानसभा चुनाव में केवल तीन सीटें जीती थीं।
अब पार्टी के पास केवल गुनीव कौर मजीठिया विधायक हैं, जबकि सुखमिंदर कुमार आप में शामिल हो चुके हैं, वहीं मननप्रीत सिंह अयाली ने विद्रोही गुट का साथ दिया है। ऐसे में सुखबीर बादल के लिए पार्टी की साख को बचाना टेढ़ी खीर साबित हो सकता है।
तरनतारन में होने जा रहा उपचुनाव जत्थेदार हरप्रीत सिंह की पार्टी के लिए पहली राजनीतिक परीक्षा साबित होगा। इस उपचुनाव में यह स्पष्ट होगा कि जनता किस पर विश्वास व्यक्त करती है।
बहरहाल, राजनीतिक हलकों में यह चर्चा है कि शिरोमणि अकाली दल से बागी होकर अब तक कई नए अकाली दल बने, पर किसी को राजनीतिक जमीन नसीब नहीं हुई। वहीं पंथक हलकों की मानें तो नया अकाली दल राजनीति जमीन न केवल तलाशेग, अपितु इसे प्राप्त भी करेगा।
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