नाटक के जरिये पृथ्वीराज चौहान का दिखाया शौर्य
नेशनल स्कूल आफ ड्रामा की ओर से इंडियन अकादमी आफ फाइन आर्ट्स (आइएएफए) के सहयोग से आजादी के अमृत महोत्सव को समर्पित 22वां भारत रंग महोत्सव करवाया जा रहा है।

जागरण संवाददाता, अमृतसर : नेशनल स्कूल आफ ड्रामा की ओर से इंडियन अकादमी आफ फाइन आर्ट्स (आइएएफए) के सहयोग से आजादी के अमृत महोत्सव को समर्पित 22वां भारत रंग महोत्सव करवाया जा रहा है। जिसके तीसरे दिन आर्ट गैलरी में नाटक पृथ्वीराज चौहान का शानदार मंचन किया गया। जबकि बुधवार को नाटक मर्दानी का मंचन होगा, जिसमें दिशा क्रिएटिव डांस नई दिल्ली के कलाकार अपनी कलाकारी के जलवे बिखेंगे। इस मौके पर आर्ट गैलरी के प्रधान शिवदेव, केवल धालीवाल, अमन भारद्वाज, कुलवंत सिंह गिल, रजिदर सिंह आदि मौजूद थे। नाटक में बताया गया कि दिल्ली के सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने सुल्तान मोहम्मद गौरी को 17 बार हराया, लेकिन फिर भी वह गौरी को माफ कर देते हैं। कन्नौज के राजा जयचंद पृथ्वीराज चौहान की लोकप्रियता व बहादुरी से ईष्र्या करते थे। उन्होंने पृथ्वीराज को अपनी बेटी संयोगिता के स्वयंवर में भी आमंत्रित नहीं किया।
हालांकि पृथ्वीराज चौहान फिर भी कन्नौज गए व स्वयंवर कक्ष में एक मूर्ति के रूप में स्वयं को पेश किया। संयोगिता ने मूर्ति के गले में माला डाल दी और फिर पृथ्वीराज चौहान स्वयंवर में उपस्थित अन्य सभी राजाओं को पराजित कर संयोगिता को दिल्ली ले गए। इस अपमान ने जयचंद को क्रोधित कर दिया, जोकि बाद में पृथ्वीराज चौहान के साथ गौरी के 18वें युद्ध में गोरी के साथ लड़े थे। पृथ्वीराज चौहान यह लड़ाई हार गए और गौरी ने पृथ्वीराज की आंखें निकाल दी। इसके बावजूद पृथ्वीराज चौहान ने उसे शब्दभेदी बाण से मार डाला। गौरी के सैनिकों को पृथ्वीराज चौहान को यातना देने से रोकने के लिए से उनके बचपन के दोस्त चंदबरदाई ने फिर एक खंजर का उपयोग कर पृथ्वीराज चौहान व खुद दोनों को मार डाला, जोकि भारत के अंतिम हिदू सम्राट का दुखद अंत है। देश के कई नायकों को भूले: आशीष
नाटक के निर्देशक आशीष श्रीवास्तव ने कहा कि दिल्ली के सम्राट पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु मात्र 26 वर्ष की आयु में हुई थी। बहादुरी के जो काम उन्होंने इतनी कम उम्र में किए थे उनके लिए वे मृत्यु के हजार वर्ष बाद भी याद किए जाते हैं। हम अपने देश के कई नायकों को भूल गए हैं, जिनकी वीरता को पूरी दुनिया ने माना था। यदि पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु इस तरह से ना होती, तो आज हमारे देश का इतिहास कुछ और ही होता। वह अंतिम हिदू शासक थे, जिन्होंने पूरे ही भारत पर शासन किया था। कई पुस्तकें पढ़ने व शोध करने के बाद ये नाटक लिखा गया है।
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