खालिस्तान की मांग, भिंडरांवाला का अंत... पंजाब के लिए आसान नहीं थे जून के 8 दिन, पढ़ें ऑपरेशन ब्लू स्टार की कहानी
Operation Blue Star ऑपरेशन ब्लू स्टार 6 जून1984 को जरनैल सिंह भिंडरांवाला के खिलाफ चलाया गया था। यह अभियान एक से आठ जून तक चला। आज ऑपरेशन ब्लू स्टार की 41वीं बरसी हैं। इस मौके में आइए जानते हैं कैसे सेना ने हरमंदिर साहिब पर कार्रवाई करते हुए जरनैल सिंह को ढेर किया था।

डिजिटल डेस्क, अमृतसर। Operation Blue Star: हरमंदिर साहिब जिसे स्वर्ण मंदिर या दरबार साहिब के जाने से भी जाना जाता है। आज से ठीक 41 साल पहले, साल 6 जून, 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जरनैल सिंह भिंडरांवाला के खिलाफ यहां ऑपरेशन ब्लू स्टार (Operation Blue Star) चलाया था।
ऑपरेशन ब्लू स्टार एक से छह मई के बीच चला। पूर्व रॉ ऑफिसर जी.बी.एस सिद्दधू की किताब 'खालिस्तान षड्यंत्र की इनसाइड स्टोरी' के अनुसार, इस अभियान में 4 अधिकारी सहित 83 जवान बलिदान हुए। जबकि 514 उग्रवादी और नागरिक मारे गए। अभियान में स्वर्ण मंदिर में मौजूद अकाल तख्त को भी भारी नुकसान पहुंचा था।यही कारण रहा कि इंदिरा गांधी के इस एक्शन से सिखों में आक्रोश भी था और इसके परिणाम भी काफी भयावह रहे।
ऑपरेशन ब्लू स्टार (Operation Blue Star) के दौरान एक से छह मई के बीच क्या-क्या हुआ और सेना ने यह कार्रवाई क्यों की? ऑपरेशन ब्लू स्टार की 41वीं बरसी पर हम यह विस्तार से जानेंगे। साथ ही जानेंगे कि जरनैल सिंह भिंडरांवाला (Jarnail Singh Bhindranwale) कौन था, जिसके अंत के लिए ही यह कार्रवाई शुरू की गई थी।
कौन था जरनैल सिंह भिंडरांवाले?
जरनैल सिंह भिंडरांवाला (Who is Jarnail Singh Bhindrawala) अस्सी के दशक में एक ऐसा उग्रवादी उभरता चेहरा था, जिसने पंजाब में उग्रवाद को बढ़ावा दिया। साल 2 जून, 1947 में जन्मा जरनैल 30 की उम्र में सिख ग्रंथों से जुड़ी शिक्षा देने वाली संस्था दमदमी टकसाल का नेता बन गया था। उसे यहीं से भिंडरांवाला उपनाम की ख्याति मिली थी। इसके बाद से ही पंजाब में हिंसक और खालिस्तानी गतिविधियां शुरू हो गई थीं।
क्या खालिस्तान चाहता था जरनैल सिंह?
अस्सी के दशक में आनंदपुर साहिब ( Anandpur Sahib Resolution) प्रस्ताव की मांग तेज हो गई। इस प्रस्ताव में पंजाब को स्वायत्तता प्रदान करना था यानी केंद्र सिर्फ विदेश, संचार और मुद्रा मामलों में ही दखल दे सकता था। अन्य सभी विषयों पर सिर्फ पंजाब का ही अधिकार होता।
जरनैल सिंह भिंडरांवाला (Jarnail Singh Bhindranwale) चाहता था कि सरकार आनंदपुर साहिब प्रस्ताव को माने। उसका कहना था कि सरकार या तो सिख समुदाय को खालिस्तान तोहफे में दे दे या फिर आनंदपुर साहिब प्रस्ताव का लागू कर दे।
पंजाब में भाषा का सवाल हो या अधिकारों का जरनैल सिंह ऐसे मामलों में हिंसा करने में कतई कौताही नहीं बरतता था। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अगस्त,1982 में धर्म युद्ध मोर्चा शुरू होने के बाद 22 महीने के अंदर ही भिंडरांवाला से प्रेरित उग्रवादी गतिविधियों में 165 हिंदू और निरंकारी मारे गए थे। भिंडरांवाला का विरोध करने वाले 39 सिख भी मारे गए थे।
भिंडरांवाला ने खालिस्तानी गतिविधियों को कम नहीं किया और बचाव के लिए स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) में शरण ली। उस समय लंगर वाले ट्रकों में हथियार जाते थे। देखते ही देखते स्वर्ण मंदिर एक छावनी की तरह बदल गया।
जरनैल सिंह का आतंक खत्म करने के लिए चलाया गया ऑपरेशन ब्लू स्टार
ऑपरेशन ब्लू स्टार टाइमलाइन
1 जून: सैन्य अधिकारियों की ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाने को लेकर बैठक हुई। इसमें यह भी तय हुआ कि कार्रवाई के दौरान हरमंदिर साहिब को नुकसान न पहुंचे।
2 जून: शाम को सेना ने जम्मू-कश्मीर और श्रीगंगानगर तक पाकिस्तान से लगी सीमा को सील कर दिया और पंजाब के अलग-अलग गांवों में सेना की कम से कम सात डिवीजनों को तैनात कर दिया गया। पंजाब में रेल और हवाई सेवाओं को स्थगित कर दिया गया और कर्फ्यू लगा दिया गया। इसी बीच पत्रकार मार्क टली को भिंडरांवाला ने आखिरी इंटरव्यू दिया। इसमें उसने कहा कि मैं मौत से डरनेवाला नहीं हूं, जो मौत से डरे वह सिख नहीं हो सकता। भेड़ संख्या में हमेशा शेर से अधिक होती है।
3 जून: रात सेना ने गुरुद्वारों में छिपे उग्रवादियों को बाहर निकालने के लिए पंजाब के 37 गुरुद्वारों को घेरा। हालांकि, इसी दिन अमृतसर में सुबह के कर्फ्यू में दो घंटे की ढील दी गई ताकि श्रद्धालु स्वर्ण मंदिर में गुरु अर्जन देव की शहीदी दिवस मना सके। इस बीच 200 उग्रवादी स्वर्ण मंदिर से निकलकर भाग गए थे।
4 जून: रात तक अमृतसर के बाहर मौजूद गुरुद्वारों से उग्रवादियों को हटाया जा चुका था। अधिकतर उग्रवादियों को पकड़ा गया था। इसके साथ ही हरमंदिर साहिब के बाहर से उग्रवादियो के लिए एनाउंसमेंट किया गया कि वे सरेंडर कर दें। इस दरमियां भिंडरांवाला के नजदीकी करण टोहरा ने कहा कि वे भिंडरांवाला को मना लेंगे। लेकिन जब वह उनसे मिलने पहुंचे तो भिंडरांवाला ने करण की सलाह नहीं मानी और उन्हें इंदिरा गांधी का एजेंट बताया।
5 जून: सेना की कार्रवाई शुरू हुई। ऑपरेशन दोनों ओर से करीब दस बजे शुरू हुआ और सुबह साढ़े सात बजे तक लड़ाई जारी रही। ऑपरेशन के समय हरमंदिर साहिब को काफी नुकसान पहुंचा।
6 जून: रात एक बजे सेना ने स्वर्ण मंदिर मे प्रवेश किया। जब सेना अंदर गई तो चारों ओर लाशें बिछी हुई थीं। इनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे।
7 जून: सुबह साढ़े चार बजे विशेष सचिव (गृह) प्रेम कुमार ने पुष्टि की कि जरनैल सिंह भिंडरांवाला मारा जा चुका है। अकाल तख्त के बेसमेंट से उसका शव क्षत-विक्षत हालत में मिला
8 जून: स्थिति सामान्य हो गई थी। लेकिन भिंडरांवाला के शव की पहचान को लेकर संशय था आखिर में 9 जून को भिंडरांवाला का पोस्टमार्टम किया गया। हालांकि उसके अंतिम संस्कार का कोई रिकॉर्ड नहीं है।
सरकार ने 1984 में एक श्वेत पत्र में बताया कि सेना ने इस ऑपरेशन में 4 अधिकारियों सहित 83 जवान खोए। 12 अधिकारी सहित 273 घायल हुए। 514 उग्रवासी मारे गए, इनमें नागरिक भी शामिल थे। 596 जख्मी हुए। हालांकि बीडी पांडे के मुताबिक इस ऑपरेशन में 1200 उग्रवादी और नागरिक मारे गए थे।
सोर्स: सभी तथ्य पूर्व रॉ ऑफिसर जी.बी एस सिद्धू की किताब 'खालिस्तान षड्यंत्र की इनसाइड स्टोरी' से लिए गए हैं।
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