तरनतारन: 32 साल बाद मिला न्याय, रिटायर्ड SSP-DSP समेत 5 दोषी करार, फर्जी मुठभेड़ में सैकड़ों युवाओं की कर दी थी हत्या
32 साल पहले तरनतारन में हुए फर्जी मुठभेड़ मामले में सीबीआई कोर्ट ने फैसला सुनाया। इस मामले में सात युवाओं जिनमें तीन एसपीओ शामिल थे को पुलिस ने मार दिया था और लावारिस बताकर अंतिम संस्कार कर दिया था। कोर्ट ने पांच पुलिसकर्मियों को दोषी करार दिया है और उन्हें हिरासत में भेज दिया है। सजा 4 अगस्त को सुनाई जाएगी।

धर्मबीर सिंह मल्हार, तरनतारन। आतंकवाद के काले दौर में पंजाब पुलिस की ओर से फर्जी मुठभेड़ में सैकड़ों युवाओं को मौत के घाट उतारा गया था। ऐसा का एक मामला वर्ष 1993 में तरनतारन जिले में सामने आया था, जिसमें एक ही गांव के तीन स्पेशल पुलिस आफिसरों (एसपीओ) सहित सात युवाओं को पुलिस ने फर्जी मुठभेड़ में मौत के घाट उतार शवों को लावारिस करार देकर दाह संस्कार कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार सीबीआइ द्वारा मामले की जांच की गई, जिसमें कुल दस पुलिस अधिकारी और कर्मी दोषी पाए गए। केस की सुनवाई के दौरान पांच की मौत हो गई।
गुरुवार को मोहाली स्थित सीबीआइ की अदालत में सेवानिवृत्त एसएसपी भूपिंदरजीत सिंह, डीएसपी दविंदर सिंह, इंस्पेक्टर सूबा सिंह, एएसआइ गुलबर्ग सिंह व रघबीर सिंह को दोषी करार देते हुए पुलिस हिरासत में भेज दिया गया। इन सभी को चार अगस्त को सजा सुनाई जाएगी।
मामला तरनतारन जिले से संबंधित है। गांव रानीवल्लाह निवासी शिंदर सिंह उर्फ शिंदा, सुखदेव सिंह व देसा सिंह एसपीओज तैनात थे। जबकि इसी गांव से संबंधित काला सिंह घेरलू कामकाज करता था। तीनों एसपीओज की ड्यूटी उस समय शराब ठेकेदार जोगिंदर सिंह के साथ थी।
थाना सरहाली व गोइंदवाल साहिब में हुई वारदातों के संबंध में पुलिस ने सुखदेव सिंह, देसा सिंह व काला सिंह को अवैध तौर पर हिरासत में लिया।
बाद में उनके खिलाफ आतंकी वारदातों को अंजाम देने के मुकदमें दर्ज किए गए। पुलिस ने उस समय दावा किया था कि इन तीनों को असलहे की बरामदगी के लिए लेकर जाया जा रहा था कि चार आतंकियों ने घात लगाकर हमला किया।
मुठभेड़ में सभी सात आतंकी मारे गए। पुलिस ने स समय शवों को लावारिस करार देते हुए तरनतारन के श्मशानघाट में अंतिम संस्कार दिया। एडवोकेट सरबजीत सिंह वेरका अनुसार, एसपीओ शिंदर सिंह की पत्नी निंदर कौर उस समय गर्भवती थी।
गांव संगतपुरा के पास हुई फर्जी मुठभेड़ (12 जुलाई 1993) की जांच सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार सीबीआइ को सौंपी गई, जिसके बाद सीबीआइ ने कुल दस पुलिस अधिकारियों और कर्मियों को फर्जी मुठभेड़ के मामले में आरोपित करार देते हुए उनके खिलाफ सीबीआइ की अदालत में चालान पेश किया।
मामले की सुनवाई के दौरान गुरदेव सिंह, ज्ञान चंद, जागीर सिंह, महिंदर सिंह और ऊड़ सिंह की मौत हो गई। मोहाली स्थित सीबीआइ की विशेष अदालत (बलजिंदर सिंह सरां) की अदालत ने गुरुवार को सभी को दोषी करार देते हुए उन्हें पुलिस हिरासत में लेने के आदेश दिए। एडवोकेट सरबजीत सिंह वेरका ने बताया कि इन सभी को चार अगस्त को सजा सुनाई जाएगी।
देर है अंधेर नहीं
फर्जी मुठभेड़ मामले में सीबीआइ की अदालत द्वारा दोषी करार दिए गए पूर्व एसएसपी भूपिंदरजीत सिंह उस समय सब डिवीजन श्री गोइंदवाल साहिब में डीएसपी तैनात थे। जबकि सूबा सिंह थाना सरहाली प्रभारी, दविंदर सिंह, गुलबर्ग सिंह व रघबीर सिंह एएसआइ तैनात थे।
एसपीओ शिंदर सिंह के लड़के निशान सिंह ने बताया कि जब पुलिस ने उसके पिता का एनकाउंटर किया तो उस समय वे दुनिया में नहीं आया था। मां निंदर कौर गर्भवती थी, जिसने हौंसले से काम लेते हुए मेरा पालन पोषण किया व केस की पैरवाई की, जिसके चलते उनके परिवार को दोषी पुलिस अधिकारियों कई बार जान से मारने की धमकियां दी गई।
जब उसकी मां ने हार नहीं मानी तो उन्हें कई प्रकार के लालच भी दिए गए। आज सीबीआइ की अदालत ने उनके परिवार के साथ इंसाफ किया है। इंसाफ को भले ही 32 वर्ष का समय लग गया, परंतु रब्ब दे घर देर है अंधेर नहीं।
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