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    हरिके पत्तन में विदेशी पक्षी आने हुए शुरू, साल भर में डाल्फिन ने किया सात किमी का सफर

    Updated: Sat, 13 Dec 2025 04:43 PM (IST)

    पंजाब के हरिके पत्तन में विदेशी पक्षियों का आगमन शुरू हो गया है, जिससे क्षेत्र में उत्साह का माहौल है। इसके साथ ही, एक वर्ष के बाद एक डॉल्फिन ने सात क ...और पढ़ें

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    हरिके पत्तन बर्ड सेंक्चुअरी स्थित क्षेत्र के पानी में अठखेलियां करती डाल्फिन। जागरण आर्काइव

    धर्मबीर सिंह मल्हार, तरनतारन । हरिके पत्तन बर्ड सेंक्चुअरी में दो सप्ताह के दौरान यहां विदेशी परिंदे आने शुरु हो चुके हैं। खास बात यह है कि 2007-08 में पहली बार देखी गई डाल्फिन की संख्या बढ़ रही है। वर्षों से गांव करमूंवाला के क्षेत्र में दिखने वाली इस बार करीब सात किमी का सफर तय करके गांव धूंदा क्षेत्र में पहुंच चुकी है।

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    एक अनुमान के मुताबिक सैंक्चुअरी का पानी प्रदूषण मुक्त हो रहा है। इसलिए यह क्षेत्र डाल्फिन को भाने लगा है। 86 वर्ग किमी में फैली हरिके पत्तन बर्ड सैंक्चुअरी का क्षेत्र जिला तरनतारन (माझा), फिरोजपुर (मालवा), कपूरथला (दोआबा) पर आधारित है। दरिया ब्यास व सतलुज के संगम स्थान हरिके पत्तन को पवित्र मानते हुए लोग यहां का पानी गागरों में भरकर लिजाते हैं।

    माना जाता है कि दो दरियाओं के संगम स्थान वाले पानी पवित्र समझा जाता है। हरिके पत्तन को प्रदूषण मुक्त रखने लिए वर्षों पहले यहां घड़ियाल छोड़े गए थे। जिनकी संख्या यहां लगातार बढ़ रही है। वर्ष 2007-08 में गांव चंबा, घड़का व करमूंवाला क्षेत्र में डाल्फिन देखी गई थी।

    जिसके बाद विभाग द्वारा क्षेत्र का बकायदा सर्वे करवाया गया। जिसमें हरिके पत्तन में डाल्फिन पाए जाने की पुष्टि हुई थी। उसी समय से करमूंवाला क्षेत्र में हर वर्ष सर्वे दौरान पानी में डाल्फिन अठखेलियां करती देखी जाती रहीं। करीब पांच माह पहले बाढ़ की स्थिति पैदा होने के बाद हालात सामान्य हुए तो उक्त क्षेत्र में डाल्फिन नहीं देखी गई।

    अब गांव करमूंवाला से चंबा, घड़का, धुन, मुंडापिंड, भैल का सफर करके डाल्फिन गांव धूंदा के क्षेत्र में देखी जा रही हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक एक साथ तीन डाल्फिन ने यहां अपना ठिकाना बनाया हुआ है।

    मेहनत लाई रंग 

    नेचर केयर सोसायटी के अध्यक्ष हरजिंदर सिंह संधू कहते हैं कि पाकिस्तान से सिंधु नदी में इंडस डाल्फिन आम देखी जा सकती हैं। जबकि हरिके पत्तन बर्ड सेंक्चुअरी में एक साथ तीन डाल्फिन का पाया जाना शुभ संकेत है। माना जाता है कि डाल्फिन अक्सर साफ पानी में होती हैं। संधू ने कहा कि दरिया सतलुज से आने वाले पानी में इंडस्ट्रीज के जहरीले केमिकल वाला पानी मिक्स होता था। अब ऐसा कम हो रहा है।

    जनवरी माह में करवाया जा सकता है सर्वे

    वर्ल्ड वाइल्ड फेडरेशन आर्गेनाइजेशन (डब्लयूडबल्यूएफओ) की प्रोजेक्ट अधिकारी गीतांजलि कंवर का कहना है कि करीब तीन डाल्फिन गांव धूंदा (श्री गोइंदवाल साहिब) क्षेत्र में बसी हुई हैं। 10 से 15 किमी के दायरे में डाल्फिन का प्रवास होता है। इनकी कई प्रजातियां (40 तक) होती हैं। आकार 1.2 मीटर से 9.5 मीटर तक होता है। उन्होंने बताया कि सामान्य प्रजातियों से संबंधित डाल्फिन बाबत विभाग द्वारा जनवरी माह में दोबारा सर्वे करवाया जा सकता है।