परमजीत कौर ने हस्तकला से हजारों महिलाओं की बदली किस्मत, अब शान से जीवन जी रहीं महिलाएं; राष्ट्रीय स्तर पर मिला सम्मान
अमृतसर की परमजीत कौर कपूर कभी चित्रकार थीं पर अब हजारों महिलाओं के जीवन को बदल रही हैं। फुलकारी जैसे पारंपरिक हुनर को बढ़ावा देकर उन्होंने 5000 से अधिक महिलाओं को हस्तशिल्प और हस्तकला से जोड़ा है। ‘ह्यूमन एंड एनवायरनमेंटल डेवलपमेंट सोसायटी’ के माध्यम से वे महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही हैं।

अखिलेश सिंह यादव, अमृतसर। पंजाब की गुरु नगरी अमृतसर की गलियों से निकली एक महिला आज हजारों महिलाओं के जीवन की दिशा बदल रही है। कभी रंगों और कैनवस पर अपने हुनर का जादू बिखेरने वाली चित्रकार परमजीत कौर कपूर ने जब ब्रश के साथ समाज सेवा का संकल्प जोड़ा, तो उनकी कला महिलाओं के लिए आत्मनिर्भरता का आधार बन गई।
फुलकारी जैसे पारंपरिक हुनर को सहेजते हुए उन्होंने इसे हजारों घरों तक पहुंचाया और महिलाओं को सिर्फ कढ़ाई-सिलाई ही नहीं, बल्कि आत्मविश्वास और सम्मान की डोर से भी जोड़ा। परमजीत का मानना है कि महिलाएं तभी सशक्त होंगी जब उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने का अवसर मिलेगा।
उन्होंने हजारों महिलाओं को इस योग्य बनाया कि वे अपना सामान बना सकें, उसे बेच सकें और आर्थिक रूप से मजबूत बन सकें। यह केवल आजीविका ही नहीं बल्कि आत्मसम्मान से जीने का रास्ता है।
परमजीत मिनिस्ट्री आफ टेक्सटाइल से जुड़कर ‘ह्यूमन एंड एनवायरनमेंटल डेवलपमेंट सोसायटी’ का संचालन करती हैं। इसके जरिए उन्होंने अब तक 5000 से अधिक महिलाओं को हस्तशिल्प और हस्तकला से जोड़ा है।
ये महिलाएं फुलकारी, खेस, बांस की कला, चंबा रूमाल और सुई-सोजनी जैसी पारंपरिक कलाओं को सीखकर अपना रोजगार चला रही हैं। परमजीत का मानना है कि पंजाब की हस्तकला और हथकरघा का इतिहास बेहद समृद्ध है और यदि कौशल विकास और उचित पहचान मिले तो यह कला फिर से दुनिया में अपनी चमक बिखेर सकती है।
इसी सोच के साथ उन्होंने महिला समूह बनाकर उन्हें स्माल स्केल इंडस्ट्री से जोड़ा। अब महिलाएं न केवल हुनर सीख रही हैं, बल्कि अपने उत्पाद बाजार में बेचकर परिवार की आर्थिक स्थिति भी सुधार रही हैं।
उनके प्रयासों को केंद्रीय टेक्सटाइल मंत्रालय ने सराहा और उन्हें टेक्सटाइल मेरिट सर्टिफिकेट प्रदान किया। पंजाब सरकार के पर्यटन विभाग ने भी उन्हें विशेष सम्मान से नवाजा। इतना ही नहीं इसी साल 15 अगस्त के जिला स्तरीय स्वतंत्रता दिवस समारोह में अमृतसर प्रशासन ने भी उन्हें सम्मानित किया।
परमजीत न केवल पंजाब बल्कि हिमाचल, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, कश्मीर और शिलांग तक जाकर महिलाओं को हुनर सिखा चुकी हैं। उन्हें प्रतिष्ठित लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में भी आमंत्रित किया गया, जहां उन्होंने वर्कशाप में छात्राओं और महिलाओं को हस्तकला का प्रशिक्षण दिया।
मां के सपनों को साकार करने के लिए की पहल
परमजीत ने चंडीगढ़ कालेज आफ आर्ट से बीएफए और टेक्सटाइल डिजाइनिंग में डिप्लोमा किया है। इसके अलावा वे बीबीके डीएवी कालेज में डिजाइन विभाग में अध्यापन भी कर चुकी हैं।
उनकी मां स्व. बलविंदर कौर हमेशा चाहती थीं कि परमजीत इस कला को आगे बढ़ाएं। मां के सपनों को साकार करने के लिए उन्होंने हस्तकला का दामन थामा। पिता महिंदर सिंह और पति सुनील कपूर ने भी हमेशा उनका साथ दिया।
बलिदानी परिवार से संबंधित हैं परमजीत
परमजीत ने बताया कि उनके परदादा वासुदेव मल देश भक्त थे। 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में अंग्रेजों द्वारा किए गए कत्लेआम के दौरान वह बलिदान हो गए थे। अपने पूर्वजों के बताए हुए रास्ते पर चलते हुए ही वह भी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने जैसे समाज कल्याण के काम में डटी हुई है।
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