चालीस कुएं बुझाते थे प्यास, सरकारी उपेक्षा से आज बे-आब
पवण गुरु पानी पिता माता धरत महत.। धर्म ग्रंथों में पानी को पिता की संज्ञा दी गई है। लोग इन शब्दों की परिभाषा तो समझते हैं पर अनुसरण नहीं करते। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण अमृतसर का चालीस खूह क्षेत्र है।

नितिन धीमान, अमृतसर
पवण गुरु, पानी पिता, माता धरत महत.। धर्म ग्रंथों में पानी को पिता की संज्ञा दी गई है। लोग इन शब्दों की परिभाषा तो समझते हैं पर अनुसरण नहीं करते। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण अमृतसर का चालीस खूह क्षेत्र है। 117 वर्ष पूर्व 1902 में गुरु नगरी के बाशिदों को जलापूर्ति देने के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने चालीस कुएं खुदवाए थे। जौड़ा फाटक क्षेत्र में कतारबद्ध बनाए गए इन कुओं में 50 से 60 फुट गहराई में जल मिल गया था। इसके बाद पाइपों के माध्यम से कुओं का पानी शहर के बीचों-बीच निर्मित की गई टंकियों तक पहुंचाया जाता और फिर यहां से घर-घर में पहुंचाकर लोगों का कंठ तार किया जाता रहा।
चालीस कुएं बनवाए तो इस चालीस एकड़ भू-भाग का नाम चालीस खूह के रूप में प्रचलित हुआ। गुरु नगरी के लाखों लोगों का कंठ तृप्त करने वाले इन कुओं को पानी से लबालब देखकर हर शख्स का मन पुलकित हो उठता था। फिर शहरीकरण का बवंडर उठा और चालीस खूह का जलस्तर तेजी कम होता चला गया। एक दिन कुओं में बूंद भी न बची। ट्यूबवेलों से जल दोहन के कारण जलस्तर 600 फीट तक जा चुका
दरअसल, शहर में ट्यूबवेलों के जरिए भूमिगत जल का बगैर सोचे-समझे दोहन किया गया। शहर में पाइपलाइन बिछाकर सरकार ने ट्यूबवेलों के जरिए घर-घर पानी की आपूर्ति की। इसका प्रतिकूल प्रभाव यह निकला कि भूमिगत जल जमीन की गहराइयों तक पहुंच गया। कुओं की गहराई 60 से 80 फुट थी, लेकिन ट्यूबवेलों ने भूजल को इतनी बेरहमी से खींचा कि जलस्तर 90 से 100 और अब 600 फीट तक जा चुका है। ऐसे में चालीस खूह का अस्तित्व ही मिट गया। बहुत मीठा होता था कुओं का पानी, यही थे जिंदगी का आधार
मैंने कुएं का पानी पिया है। कभी सारे शहर को यहीं से पानी सप्लाई होता था। बहुत मीठा और साफ पानी था। कभी कोई बीमार नहीं हुआ। अब ट्यूबवेल का पानी पीकर लोग बीमार हो रहे हैं। ये चालीस खूह हमारी जिदगी का आधार थे। बचपन में यहां खेलने आते थे। भीषण गर्मी में कुएं में बाल्टी डालकर पानी निकालकर पीते थे। बहुत आनंद आता था। सरकार ने बिना सोचे समझे इन कुओं को बंद करवा दिया। कुओं का ढक्कन उठाते ही पानी दिखता था। शीशे की तरह साफ था यह पानी। हमें याद है कि बचपन में हम सभी दोस्त यहां बैठकर पढ़ाई करते थे। खेलते भी थे। खेलते खेलते थक जाते तो पानी पीकर गला तृप्त करते थे। हमारे दादा-परदादा भी इन्हीं कुओं के पानी से दिनचर्या के काम निपटाते थे। कुओं से शहर में जल निकासी के लिए पास ही स्टीम वाले बायलर चलते थे। इन बॉयलर ने उत्पन्न होने वाली ऊर्जा से कुओं का पानी खींचा जाता था। बाद में मोटर पंप का आविष्कार होने के बाद मोटर के जरिए पानी शहर तक पहुंचाया जाता। दुनिया में कहीं भी ऐसी जगह नहीं जहां चालीस कुएं एक साथ हों। यह एतिहासिक महत्व वाले कुएं हैं और सरकार इन्हें शुरू करवाए।
-चालीस खूह निवासी शंकर दास और पूरण चंद ने जैसा बताया
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