Amritsar History: नाम से छलके अमृत जहां, लव-कुश ने जन्म लिया यहां... ऐसा गजब है हमारा अमृतसर
Amritsar History अमृतसर का इतिहास कई हजार वर्ष पुराना है। अमृतसर की स्थापना सिखों की चौथे गुरु श्री गुरु रामदास जी ने लगभग 1574 ईस्वी में की थी। पौराणिक कथाओं से लेकर आजादी के समय दी गई कुर्बानी की यादें आज भी यहां ताजा है। इसका इतिहास माता सीता के पुत्र लव-कुश के साथ जुड़ा हुआ है तो वहीं अमृतसर शहर का नाम अमृतसर सरोवर से पड़ा है।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। Amritsar History: पंजाब अमृतसर शहर एक ऐसा ही शहर है जो सिख धर्म के साथ-साथ पौराणिक मान्यता भी रखता है। अमृतसर शहर का इतिहास कई हजार वर्ष पुराना है।
जानकारी के मुताबिक अमृतसर की स्थापना सिखों की चौथे गुरु श्री गुरु रामदास जी (Guru Sri Guru Ramdas Ji) ने लगभग 1574 ईस्वी में की थी। यह शहर सिख गुरुद्वारा, ऐतिहासिक स्थलों और स्वादिष्ट खाने के लिए जाना जाता है।
बेहद खास है अमृतसर का इतिहास
अमृतसर शहर एक समूचे इतिहास को अपने अंदर समेटे हुए है। पौराणिक कथाओं से लेकर आजादी के समय दी गई कुर्बानी की यादें आज भी यहां ताजा है। पौराणिक कथाओं की बात हो या काल-खण्ड की, भगवान राम के पुत्र लव-कुश की बात की जाए या सिख धर्म के गुरुओं की, धार्मिक स्थलों की बात की जाए या ऐतिहासिक स्थलों की या फिर आजादी के समय दी गई कुर्बानी की यहां सब मौजूद है।
शहर का नाम अमृतसर क्यों पड़ा
पंजाब के इस शहर का नाम अमृतसर (Amritsar Name History) ही क्यों पड़ा, इसका भी अपना अलग ही एक खास इतिहास रहा है। सिखों के चौथे गुरु श्री गुरु रामदास जी ने अमृत सरोवर का निर्माण कराया था और उसी सरोवर पर शहर का नाम अमृतसर रखा गया है।
वहीं, इसके बाद उनके उत्तराधिकारी, श्री गुरु अर्जन देव ने 1577 ईस्वी में हरमंदिर साहिब की स्थापना की। इस गुरुद्वारे के बाद ही अमृतसर शहर सिख धर्म का केंद्र बन गया। इसके बाद 1840 में वह समय आया जब अंग्रेजों ने अमृतसर कब्जा लिया, लेकिन यहां बसे लोगों ने अंग्रेजों को नाकों चने चबा दिए और उन्हें देश छोड़ने को मजबूर कर दिया। हालांकि, इस गुलामी के दौर में ही जलियांवाला बाग हत्याकांड की घटना घटी, जिसे आज भी याद कर रुंह कांप उठती है।
अमृतसर के इतिहास का सबसे दर्दनाक किस्सा
जलियांवाला बाग (Jallianwala Bagh massacre) में हुआ हादसा भारत की स्वतंत्रता के इतिहास से जुड़ा एक ऐसा दिन था, जिसका जश्न नहीं मनाया जाता है। साल 1919 में अमृतसर में हुए इस नरसंहार में हज़ारों लोग मारे गए थे लेकिन ब्रिटिश सरकार के आंकड़ें में सिर्फ 379 की हत्या दर्ज की गई।
रौलट एक्ट के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध में भाग लेने के लिए हजारों की संख्या में लोग उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन जलियांवाला बाग में इकट्ठे हुए थे, लेकिन अंग्रेजी हूकूमत को ये कतई बर्दाशत नहीं था कि कोई उनका विरोध करे।
10 मिनट तक बरसाई थी गोलियां
इसी के चलते अंग्रेज़ अफसर जनरल डायर ने अपने सैनिकों से जलियांवाला बाग में मौजूद निहत्थे बूढ़ों, महिलाओं और बच्चों सहित सैकड़ों लोगों पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं।
इस दौरान 10 मिनट तक गोलियां बरसाई गई। इस घटना में करीब 1,650 राउंड फायरिंग हुई थी। इसी निर्मम हत्याकांड के बाद से यह बाग जलियांवाला बाग हत्याकांड के नाम से जाना जाने लगा।
अमृतसर में क्या है खास
अमृतसर शहर का इतिहास जितना खास है, इतना ही खास इसकी संस्कृति, सभ्यता, खानपान और घूमने की जगह है। जहां लोगों को जा कर एक अलग ही आनंद मिलता है। आइए जानते हैं अमृतसर में घूमने (Tourist Place in Amritsar) की खास जगह कौन-कौन सी है।
गोल्डन टेंपल (हरमंदिर साहिब)
गोल्डन टेंपल (Golden Temple in Amritsar) या स्वर्ण मंदिर सिखों के पवित्र शहर अमृतसर में स्थित है। गोल्डन टेंपल पूरी तरह से सुनहरे रंग में बने होने के कारण काफी प्रसिद्ध है।
यह मंदिर 67 फीट वर्गाकार संगमरमर पर बना है। गोल्डन टेंपल में खास बात यह है कि गुरुद्वारे के ऊपरी आधे हिस्से का निर्माण लगभग 400 किलोग्राम सोने की परत से कराया गया है, यही वजह है कि हरमंदिर साहिब गोल्डन टेंपल के नाम से भी जाना जाता है।
क्यों दिखता है सरोवर का रंग सोने जैसा?
स्वर्ण मंदिर के परिसर में अमृत सरोवर है। इसमें चारों ओर सोने के प्लेटों वाले सिखर दिए गए हैं। यही वजह है कि सरोवर का रंग सोने जैसा दिखता है। यहीं पर ऋषि वाल्मीकि ने महाकाव्य रामायण लिखा था।
ऐसा माना जाता है कि राम और सीता ने अपना चौदह वर्ष का वनवास सिख धर्म के केंद्र अमृतसर में बिताया था। यहां 'गुरु का लंगर' भी लगाया जाता है। हर रोज लगभग 20,000 लोग यहां परसादा ग्रहण करते हैं।
दुर्गियाना मंदिर
अमृतसर में घूमने के लिए दुर्गियाना मंदिर भी खास जगहों में से एक है। दुर्गियाना मंदिर स्वर्ण मंदिर की तरह ही नजर आता है और वल पारंपरिक हिंदू मंदिर की वास्तुकला को भी दिखाता है। जानकारी के मुताबिक , पंडित मदन मोहन मालवीय ने इसकी आधारशिला रखी थी। यह हिंदू धर्मग्रंथों का एक प्रसिद्ध स्थल भी है।
माता सीता से जुड़ा है राम तीरथ का इतिहास
अमृतसर एक ऐसा शहर है जहां सिख धर्म और हिंदू धर्म दोनों की ही मान्यताएं देखने को मिलती है। अमृतसर का राम तीरथ रामायण काल की यादों को ताजा करता है और महर्षि वाल्मीकि जी की विरासत की याद दिलाता है।
अमृतसर का राम तीरथ अपने आप में खास इसलिए है क्योंकि यहां स्थित झोपड़ी है, जिसमें माता सीता ने लव और कुश को जन्म दिया था। वहीं, ऋषि वाल्मिकी की झोपड़ी और सीढ़ियों वाला कुआं भी अभी भी यहां मौजूद है। इसी जगह पर माता सीता स्नान करती थीं।अनादिकाल से यहां नवंबर की पूर्णिमा की रात से शुरू होकर चार दिवसीय मेला लगता है।
देश की शान की महक है वाघा बॉर्डर
अमृतसर में स्थित वाघा बॉर्डर (Wagha Border) देश की शान है। यह भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा है। अटारी वाघा बॉर्डर पर देश का सबसे ऊंचा झंडा स्थित है। यहां 418 फीट ऊंचा राष्ट्रीय ध्वज है। बॉर्डर पर तिरंगे के लिए लगाए गए पोल की ऊंचाई पाकिस्तान से भी 18 फीट ऊंची है।
अटारी वाघा बॉर्डर पर बीटिंग रिट्रीट और चेंज ऑफ गार्ड की धूमधाम सबसे आकर्षक है। यहां आयोजित बीटिंग द रिट्रीट को देखने को हर रोज हजारों की संख्या में लोग आते हैं। जिसे देख राष्ट्रवादी उत्साह और अधिक बढ़ जाता है।
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अमृतसर का पसंदीदा खाना?
पंजाब या अमृतसर का पसंदीदा खाना मक्के का साग और बाजरे की रोटियां है। वहीं, गुरु का लंगर भी लोगों को खूब लुभाता है।
अमृतसर की संस्कृति और विरासत
अमृतसर में ही भारत की आज़ादी का बिगुल सुनाई देता है। अमृतसर एक हीरे की तरह है जिसके कई पहलू हैं। शहर की मूल भावना न केवल इसके गुरुद्वारों और मंदिरों, मस्जिदों और चर्चों, तकियाओं और खानकाहों में पाई जाती है, बल्कि इसके थिएटरों, पुस्तकालयों, कला और वास्तुकला, स्मारकों, हवेलियों और किलों में भी पाई जाती है। यहां लगने वाला मेला और त्यौहार, लोक नृत्य और गिद्दा लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
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