ग्राउंड रिपोर्ट: अजनाला में कई गांव जलमग्न, लोगों का छूटा आशियाना; 12 दिनों से तिरपाल के नीचे कट रही है जिंदगी
अमृतसर में रावी नदी में आई बाढ़ ने अजनाला के गांवों में तबाही मचा दी है। घोनेवाला और गग्गोमाहल जैसे गांव बुरी तरह प्रभावित हुए हैं जहाँ कई घर पानी में डूब गए हैं और लोगों को तिरपालों में रहने को मजबूर होना पड़ा है। बाढ़ (Flood) के कारण लोगों को भारी नुकसान हुआ है उनकी दुकानें और खेत बर्बाद हो गए हैं।

जागरण संवाददात, अमृतसर। जल प्रलय ने जन-जीवन में भूचाल ला दिया है। उफनती रावी नदी ने अपनी सीमाएं तोड़ते हुए धुस्सी बांध धराशायी किया और फिर सक्की नाले को डुबोकर गांवों तक पहुंच गई। पानी का इतना विकराल रूप अजनालावासियों ने 1988 में भी नहीं देखा था। तब भी यहां बाढ़ आई थी। अजनाला के गांव घोनेवाला में घर पानी में डूबे हुए हैं।
लोगों की बेबसी उनकी आंखों में स्पष्ट दिखाई दे रही है। आशियाना छूटने के साथ उनका कामकाज भी उजड़ गया। लोगों को संभलने में कई वर्ष लग जाएंगे। गांव घोनेवाल व गग्गोमाहल में बाढ़ ने सर्वाधिक प्रभावित किया। अपने घरों से निकलने को मजबूर हुए लोग सिर छुपाने के लिए तिरपालों की कुटिया बनाकर रह रहे हैं। 12 दिन से गांव घोनेवाला व गग्गोमहल के लोग पानी उतरने का इंतजार कर रहे हैं।
अमृतसर के 190 गांव बाढ़ की चपेट में आए हैं। घोनेवाला में अधिकांश घर निचली तरफ हैं, इसलिए यहां रावी का पानी तेज गति से पहुंचा और सब कुछ अपने भीतर समाहित कर लिया। गांव के लोग सड़क के किनारे तिरपाल के सहारे जीवनयापन कर रहे हैं। स्थानीय निवासी युवराज सिंह ने बताया कि जिस दिन रावी का पानी गांवों की ओर आया, हड़कंप मच गया।
गांव के गुरुद्वारा साहिब से घोषणा कर दी गई कि तुरंत घरों से बाहर सुरक्षित स्थान पर पहुंच जाओ। सभी गांववासी घरों से निकलकर भागे। पानी तेजी से चढ़ने लगा। देखते ही देखते हमारे आधे घर पानी की चपेट में आ गए। हम ऊंचाई पर खड़े थे, लेकिन यह डर सता रहा था कि कहीं पानी यहां तक न पहुंच जाए। जैसे-तैसे दो दिन और दो रातें बाहर काटीं।
इसके बाद किसी दानी सज्जन ने तिरपालें लाकर दीं। हमने सड़क पर ही तंबू बना लिए। तब से यहीं रह रहे हैं। अभी दो दिन पूर्व ही सूचना आई कि गांव की तरफ फिर से पानी आ रहा है। हम सिहर उठे। हालांकि पानी का स्तर कम था। छह वर्षीय सुखजीत कौर अपनी मां से बार-बार पूछ रही थी कि हम कब तक यहां रहेंगे। मेरे खिलौने घर में पड़े हैं। मैं उनसे खेलूंगी। इस बच्ची को यह आभास नहीं था कि अब घर में उसके प्लास्टिक और मिट्टी के खिलौने नहीं मिलेंगे।
गांववासी सुखदेव सिंह के अनुसार उनकी करियाना की छोटी-सी दुकान भी पानी में डूब गई। करियाना का सारा सामान खराब हो गया। मैं अकेला नहीं, मेरे जैसे कई छोटे दुकानदार व किसान हैं जिनका कामकाज और कृषि को पानी बहा ले गया। कई लोगों के घरों में दरारें आ चुकी हैं। हमें डर लग रहा है कि कहीं हमारा आशियाना भी बचेगा अथवा नहीं।
गांव के लोगों ने कर्ज लेकर मकान बनाए थे। अभी तक कर्ज नहीं उतार सके और इस प्राकृतिक आपदा ने हमें और मुश्किल में डाल दिया है। सीमा के साथ सटे इस गांव के लोग हमेशा ही युद्ध की संभावना से आशंकित रहते हैं। युद्ध के दौरान पलायन भी करना पड़ता है। अब इस प्राकृतिक आपदा ने भी हमें भीतर से तोड़ दिया है।
धीरे-धीरे कम हो रहा जलस्तर, जागने लगी राहत की उम्मीद गांवों में अब जलस्तर धीरे-धीरे कम हो रहा है। खेतों में जमा पानी अब नदी की और लौट रहा है। गांव घोनेवाला, माछीवाल और कोट रजादा में सड़कों व खेतों में हुए खड्ढों को भरने का काम शुरू कर दिया गया है। हालांकि अभी कई स्थानों पर जेसीबी और ट्रैक्टर ट्राली नहीं जा पा रहे हैं।
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