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    अमृतसर में बाढ़ के बाद अब सुअरों में स्वाइन फीवर के कहर से अलर्ट पर प्रशासन, संक्रमण केंद्र बने गांव

    Updated: Wed, 10 Sep 2025 06:12 PM (IST)

    अमृतसर के धारीवाल कलेर गाँव में बाढ़ के बाद अफ्रीकी स्वाइन फीवर की पुष्टि हुई है। प्रशासन ने गाँव को संक्रमण केंद्र घोषित कर दिया है और सुअर और मांस उत्पादों की आवाजाही पर रोक लगा दी है। पशुपालकों से सतर्क रहने और साफ-सफाई बनाए रखने की अपील की गई है।

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    बाढ प्रभावित गांव धारीवाल कलेर में अफ्रीकी स्वाइन फीवर की पुष्टि (प्रतीकात्मक फोटो)

    जागरण संवाददाता, अमृतसर। रावी दरिया के कारण आई बाढ़ के बाद अजनाला तहसील के धारीवाल कलेर गांव में पशुओं में अफ्रीकी स्वाइन फीवर के मामले सामने आ रहे हैं। बीमारी की पुष्टि के बाद पशुपालन विभाग ने गांव को संक्रमण केंद्र घोषित कर दिया है। बीमारी के फैलाव को रोकने के लिए सख्त कदम उठाए जा रहे हैं।

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    पशुपालन विभाग के निदेशक ने अधिसूचना जारी कर गांव से एक किलोमीटर एरिया को ''संक्रमित क्षेत्र'' और एक से 10 किमी के दायरे को ''निगरानी क्षेत्र'' घोषित किया है। विभाग ने आशंका जताई है कि यदि रोकथाम के उपाय नहीं किए गए, तो यह बीमारी अन्य क्षेत्रों में भी फैल सकती है।

    अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट रोहित गुप्ता ने आदेश जारी करते हुए कहा कि संक्रमित क्षेत्र में जीवित या मृत सुअर, सुअर का मांस या इससे बने किसी भी उत्पाद की खरीद-बिक्री और परिवहन पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगा। इसके साथ ही सूअर फार्म से जुड़ा कोई भी फीड या मांस उत्पाद संक्रमित क्षेत्र में लाना, ले जाना या बाजार में बेचना कानूनन अपराध की श्रेणी में होगा।

    बीमारी के अनियंत्रित फैलाव से जानवरों की मृत्यु का खतरा बना हुआ हैं। इस संबंध में एसएसपी देहाती और पशुपालन विभाग के उप निदेशक को इस आदेश की अनुपालना सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी दी गई है।

    यह प्रतिबंध 10 सितंबर से प्रभावी होकर 9 नवंबर 2025 तक लागू रहेगा। प्रशासन ने स्पष्ट किया कि स्थिति की गंभीरता को देखते हुए यह आदेश एकतरफा रूप से जारी किया गया है। प्रशासन ने सभी पशुपालकों और ग्रामीणों से अपील की है कि वे अपने फार्म में साफ-सफाई बनाए रखें। किसी भी बीमार या मृत सूअर की जानकारी तुरंत नजदीकी पशु चिकित्सक या प्रशासन को दें।

    यह फीवर एक तेजी से फैलने वाली वायरसजनित बीमारी है। यह केवल सूअरों को संक्रमित करती है, इंसानों पर असर नहीं डालती। इससे पशु मृत्यु दर में वृद्धि होती है। इस रोग का उपचार अथवा टीका अभी तक ईजाद नहीं हो सका है।