जिंदगी तू भी इक पहेली है, कभी दुश्मन कभी सहेली है
वरिष्ठ संवाददाता, अमृतसर
नरेन्द्र ओबराय। अंग्रेजी के प्रोफेसर होते हुए हिंदी का मोह जीवन भर रहा। गीत, गजल, शायरी से इश्क तो आर्ट से गहरी मोहब्बत। पहली ही किताब 'अहसास' में उनकी लिखी कविताओं को जिसने भी पढ़ा वह उनका मुरीद हो गया। नपे-तुले व सरल शब्दों में लिखी उनकी कविताओं की पहली किताब ने मार्केट में 'धमाका' कर दिया। खास बात यह है कि उन्होंने हिंदी व अंग्रेजी दोनों भाषाओं में अलग-अलग कविता व गजल संग्रह लिखा। दैनिक जागरण के साथ नरेन्द्र ओबेराय से अपनी ही कविताओं को बड़े ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया। वह जिंदगी के उतार-चढ़ाव को कुछ यूं शब्दों में पिरोते हैं :
'जिंदगी तू भी इक पहेली है
कभी दुश्मन कभी सहेली है
उम्र भर जिनको न समझ पाए
उन लकीरों से भरी हथेली है
कभी दर्द-ए-गम की कुटिया है
कभी खुशियों की हवेली है'
वह इबादत से पहले खुद के अंदर मौजूद खुदा की इबादत पर जोर देते हैं :
उस खुदा से तू पहले खुद को जान ले
खुद बखुद ही खुदा तुझ को मिल जाएगा
ओबराय जिंदगी में गम को दोस्त बताते हुए कहते हैं कि
गम से मेरी यूं दोस्ती हो गई
अश्क आहें मेरी दवा हो गई
क्या सुनाऊं किसे मैं दास्तां अपनी
सिसकियां ही मेरी अदा हो गई
वह देश के हरेक नागरिक को भारतीय बताते हुए कहते हैं कि
हम भारती, न पंजाबी न मद्रासी
अपना तो यही नारा है
हम भारतवासी हैं और यह भारत देश हमारा है
कृष्णा स्केयर में रहने वाले नरेन्द्र ओबराय प्रोफेसर के पद से सात साल पहले रिटायर हुए हैं। इस समय वह अपनी नई किताब को मार्केट में लाने के लिए जुटे हुए हैं।
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