Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    रहने की जगह या शक्ति का प्रतीक? आखिर क्यों नहीं छोड़ना चाहते नेता और पूर्व सांसद अपना सरकारी आवास

    Updated: Sat, 29 Nov 2025 02:00 AM (IST)

    राजनेता और पूर्व सांसद अक्सर अपने सरकारी आवास को छोड़ने में हिचकिचाते हैं, क्योंकि ये आवास उनके लिए शक्ति और प्रतिष्ठा का प्रतीक बन जाते हैं। पद छोड़ने के बाद भी वे इन बंगलों पर कब्जा बनाए रखने की कोशिश करते हैं, जिससे यह सवाल उठता है कि वे इन आवासों को क्यों नहीं छोड़ना चाहते।

    Hero Image

    लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी को निवास छोड़ने का दिया जा चुका है आदेश।

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बिहार के दो पूर्व मुख्यमंत्री, लालू प्रसाद यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी, लगभग दो दशक पहले आवंटित उनके निवास '10, सर्कुलर रोड', पटना के सिविल लाइंस क्षेत्र में, खाली करने के लिए जारी आदेश का विरोध कर रहे हैं। यह मामला अकेला नहीं है, अक्सर नेता ऐसे सरकारी आवास छोड़ने से इंकार करते हैं, व्यक्तिगत असुविधा और कथित राजनीतिक कारणों का हवाला देते हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    विवादित बंगलो वर्षों में राजनीतिक गतिविधियों और शक्ति का केंद्र बन गया है। इसका औपनिवेशिक डिजाइन और विशाल लॉन महत्वपूर्ण बैठकें, अधिकारियों और जनता से मुलाकातों, मीडिया ब्रीफिंग और अन्य कार्यक्रमों के लिए इस्तेमाल होते रहे हैं। राबड़ी देवी को विपक्षी नेता के रूप में वैकल्पिक आवास आवंटित किया गया है, फिर भी उन्होंने मूल बंगलो खाली करने से इंकार किया।

    उनके पुत्र तेजस्वी यादव ने भी उपमुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए अपने आवंटित बंगलो को बनाए रखने की कोशिश की थी। नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) द्वारा राजद से रिश्ते खत्म किए जाने के बाद उन्हें बंगलो खाली करने का आदेश दिया गया। तेजस्वी ने कानूनी लड़ाई के बाद, सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ही इसे छोड़ा।

    उनके भाई तेज प्रताप यादव को भी वर्तमान राज्य मंत्री के लिए अपने निवास खाली करने के निर्देश दिए गए हैं।

    देशभर में नेताओं और पूर्व मंत्रियों द्वारा पद छोड़ने के बाद सरकारी आवास बनाए रखने का चलन देखा गया है। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव और उनके पुत्र अखिलेश यादव ने सरकरी आवास नहीं छोड़ने के लिए 2018 में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।

    विपरीत उदाहरण भी

    कुछ विपरीत उदाहरण भी हैं। 2018 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की गोद ली बेटी नमिता ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर केंद्रीय दिल्ली के बड़े बंगलो को खाली करने की इच्छा जताई। उन्होंने सुरक्षा कवच हटाने का भी अनुरोध किया, क्योंकि उनके परिवार पर कोई खतरा नहीं था। नमिता, उनके पति रंजन भट्टाचार्य और बेटी निहारिका तब तक 7, कृष्ण मेनन मार्ग में रहते थे जब तक वाजपेयी जीवित थे।

    जुलाई 2024 में केंद्रीय आवास मंत्रालय ने लुटियंस दिल्ली में 200 से अधिक पूर्व सांसदों को नोटिस जारी किया था। साल 2009 में राष्ट्रीय राजधानी में 17 पूर्व मंत्री सरकारी आवास में रहते थे। इनमें जगदीश टाइटलर, मणि शंकर अय्यर, शंकर सिंह वघेला, रेनुका चौधरी, सलीम शेरवानी और चरणजीत सिंह अतवाल शामिल थे।

    इसी तरह के उच्च-प्रोफ़ाइल मामले राज भवन निवासियों और मुख्य न्यायाधीशों के लिए आवंटित निवासों में भी देखे गए हैं।

    इसके साथ ही महुआ मोइत्रा और अजित सिंह जैसे मामले भी दर्ज हुए। इन उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि नेता और पूर्व मंत्री सरकारी आवास और सुविधाओं को लंबे समय तक शक्ति और प्रतिष्ठा के प्रतीक के रूप में बनाए रखने का रिवाज रखते हैं।