ममता सरकार ने ऑडिट करने से कैग को रोका, कानूनी कदम उठाने की तैयारी
राज्य के गृह विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि राज्य की कानून-व्यवस्था में कैग को किसी हाल में नहीं घुसने दिया जाएगा।
जागरण न्यूज नेटवर्क, कोलकाता। पूरे देश के आर्थिक खर्च का हिसाब- किताब करने वाले भारत के नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (कैग) को पश्चिम बंगाल सरकार ने राज्य की कानून-व्यवस्था संबंधित खर्च और अन्य चीजों का ऑडिट करने से मना कर दिया है। इसे लेकर केंद्र और राज्य सरकार के बीच एक बार फिर विवाद गहरा सकता है।
कैग के एकाउंटेंट जनरल नमिता प्रसाद ने राज्य के गृह सचिव अत्रि भट्टाचार्य को पत्र लिखकर यह जानकारी दी है कि कैग पश्चिम बंगाल के 'पब्लिक ऑर्डर' का ऑडिट करना चाहता है। इसके अंतर्गत कानून- व्यवस्था, अपराध नियंत्रण, राज्य में हथियारों के लाइसेंस आदि का ब्योरा लेकर उसका ऑडिट किया जाएगा। राज्य सरकार ने इसके लिए कितनी धनराशि ली है, कितनी धनराशि आवंटित की है, कितना खर्च किया गया है और कहां-कहां किस-किस मद में किस तरह से धनराशि का इस्तेमाल किया गया है, इन सबका हिसाब कैग को देखना है। पहले तो राज्य के गृह विभाग ने इसे पूरी तरह से नकार दिया था, लेकिन अब एक बार फिर कैग की ओर से यह प्रस्ताव दिया गया है।
बंगाल सरकार संविधान से बाहर नहीं : कैग
कैग की ओर से राज्य सचिवालय को बताया गया है कि राजस्थान, केरल, असम एवं मणिपुर में पब्लिक ऑर्डर से संबंधित ऑडिट किया जा रहा है। पश्चिम बंगाल सरकार संविधान के दायरे से बाहर नहीं हैं। कैग ने साफ किया है कि पश्चिम बंगाल की ढाई हजार किलोमीटर अंतरराष्ट्रीय सीमा है। ऐसे में यहां कानून-व्यवस्था का पालन किस हिसाब से किया जा रहा है, इसकी जांच बेहद जरूरी है। इससे पूरे देश की सुरक्षा जुड़ी हुई है। हालांकि राज्य के गृह विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि राज्य की कानून-व्यवस्था में कैग को किसी हाल में नहीं घुसने दिया जाएगा। कानून-व्यवस्था संबंधी गोपनीय और संवेदनशील विषय को कैग से साझा करने का सवाल ही नहीं उठता है। इस पर कैग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कैग देश के परमाणु कार्यक्रमों एवं सेना के जहाजों की खरीद-बिक्री संबंधी बड़े मामलों का भी ऑडिट करता है तो क्या पश्चिम बंगाल सरकार की कानून- व्यवस्था उससे भी ऊंची चीज है? कैग ने साफ कर दिया है कि अगर राज्य सरकार इस पर संविधान के दायरे में सहयोग नहीं करती है तो इसके खिलाफ कानूनी कदम उठाया जाएगा।
कानून विशेषज्ञ भी मान रहे हैं कि कैग को नहीं रोका जा सकता
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अशोक गांगुली का कहना है कि संविधान के तहत हर तरह की सरकारी संस्थाओं के खर्च का ऑडिट कैग कर सकता है। किसी भी तरह की ऐसी संस्था जिसे सरकारी तौर पर सहायता राशि दी जाती है, कैग के दायरे में आती है। उनका कहना है कि कानून- व्यवस्था भले ही राज्य सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन यह पूरी तरह से राज्य सरकार की ही नहीं है। पुलिस के आधुनिकीकरण के लिए केंद्र सरकार धनराशि देती है। राज्य में आइपीएस अधिकारियों की तैनाती राष्ट्रपति के द्वारा होती है। किसी तरह का दंगा अथवा बर्द्धमान ब्लास्ट जैसी घटनाएं होने पर राज्य प्रशासन किस तरह से काम करता है यह देखने का पूरा अधिकार कैग को है।