कलेक्टर पर घूंसा-जज का गंभीर आरोप, BJP की छवि को बट्टा लगा रहे खनन प्रेमी नेता; मोहन सरकार खामोश क्यों?
मध्य प्रदेश में भाजपा विधायकों की अवैध खनन पर बढ़ती दबंगई ने पार्टी के चाल चरित्र और चेहरा पर सवाल उठा दिए हैं। एक न्यायाधीश ने भाजपा विधायक संजय पाठक के संपर्क के बाद खुद को केस से अलग कर लिया वहीं एक अन्य विधायक ने कलेक्टर के सामने घूंसा तान दिया। इन मामलों पर मोहन सरकार...

धनंजय प्रताप सिंह, राज्य ब्यूरो। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश ने स्वयं को एक केस से यह कहते हुए अलग कर लिया कि भाजपा विधायक संजय पाठक ने केस के सिलसिले में उनसे संपर्क करने की कोशिश की थी। भाजपा विधायक नरेंद्र सिंह कुशवाह ने भिंड में कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव के सामने तब घूंसा तान दिया, जब खाद के लिए किसानों के प्रदर्शन के बीच तनाव इस कदर बढ़ा कि दोनों एक-दूसरे पर रेत चोरी को लेकर आरोप-प्रत्यारोप लगाने लगे। ऐसे दो मामले सामने हैं और कई सुर्खियों से दूर हैं, लेकिन भाजपा के चाल, चरित्र और चेहरे के बदलते स्वरूप को सामने जरूर ला रहे हैं।
खनन का धंधा भारतीय जनता पार्टी के नेताओं पर इस कदर हावी हो चुका है कि जिस मध्य प्रदेश को भाजपा के लिए रीति-नीति की पाठशाला और प्रयोगशाला माना जाता था, वहीं के नेता अब खुलकर अपनी मंशा के साथ सामने आ रहे हैं। बड़ी मुश्किल यह है कि इन मामलों पर कार्रवाई की बजाय सत्ता-संगठन ने मौन साध रखा है। सत्ता ने आंखें बंद कर रखी हैं और संगठन ने मुंह फेर लिया है।
मध्य प्रदेश में नेताओं का बड़ा वर्ग है, जो खनन पर मोहित है या यूं कहें कि खनन पर हाथ साफ करने के लिए ही राजनीति के रास्ते पर जनसेवा का चोला ओढ़ चल पड़ा है। दिक्कत तब शुरू हो जाती है, जब अपनी मंशा पूरी करने के लिए ऐसे नेता लोकतंत्र, संविधान और राजनीति के तौर तरीकों का आड़े आना बर्दाश्त नहीं कर पाते। एक विधायक कलेक्टर को खुलेआम धमकी देता है, जबकि वह पहले भी एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को थप्पड़ मार चुका है।
कौन हैं संजय पाठक?
संजय पाठक का नाम प्रदेश के सबसे धनाढ्य नेता के रूप में दर्ज है। वह विधायक ही नहीं, बल्कि पूर्व मंत्री हैं, लेकिन अपने केस के लिए लोकतांत्रिक मर्यादा की सीमा लांघ कर न्यायाधीश को फोन करते हैं। दरअसल, मामला अवैध खनन पर लगे जुर्माने से जुड़ा है।
मध्य प्रदेश में रेत खनन के पीछे नेताओं की दीवानगी न जाने कितनी बार भारतीय जनता पार्टी के अनुशासन को कलंकित कर चुकी है। हर बार चेतावनी दी जाती है, कभी-कभी कुछ मामलों में कार्रवाई भी हुई, लेकिन चिंताजनक यह कि इसका असर स्थाई रूप से नहीं दिखाई पड़ता।
मोहन सरकार प्रदेश में सुशासन के साथ भ्रष्टाचार पर अंकुश के दावे करती रही है, लेकिन मामला उसके विधायकों, मंत्रियों से जुड़ा हो, तो एक अलग तरीके का सन्नाटा छा जाता है। मामले की लीपापोती में संगठन भी हर कदम साथ दिखाई पड़ता है।
यह फौरी तौर पर भले ही कामयाबी के रूप में देखा जा सकता है, लेकिन इसका दीर्घकालिक असर हमेशा प्रतिकूल ही रहेगा। अगर मोहन सरकार सुशासन के लिए भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई लड़ रही है, तो उसे इसकी शुरुआत भी अपने ही घर से करनी होगी। ऐसे प्रतिमान स्थापित करने होंगे, जो बड़ी से बड़ी कार्रवाई के लिए भी मोहन सरकार के हाथ न रोक सके।
मोहन सरकार को किस बात का इंतजार?
फिलहाल, दो विधायकों के ताजा मामले सामने हैं और मोहन सरकार की बड़ी कार्रवाई का इंतजार प्रदेश को भी है। रेत खनन प्रदेश में राजस्व, कानून व्यवस्था या दमदारी का ही विषय नहीं है, बल्कि व्यापक रूप से पर्यावरण के संरक्षण से भी जुड़ा हुआ है।
यह छुपी बात नहीं है कि रेत खनन के लिए जितनी अनुमति या ठेके दिए जाते हैं, उस सीमा को पार कर कई गुना रेत निकाल ली जाती है और कई बार यह तथ्य भी सामने आया है कि स्थानीय स्तर पर विधायक से लेकर सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग भी इसमें संरक्षक होते हैं। बड़ी मात्रा में गलत तरीके से रेत खनन होने से नदियों का जीवन भी संकटग्रस्त रहा है।
चेतावनी पर लालच भारी
पर्यावरणविद् भी चेतावनी देते हैं कि मध्य प्रदेश की जैव विविधता, नदियों का जीवन और जल की उपलब्धता संकट में पड़ सकती है यदि अवैध खनन को न रोका गया, नियंत्रित न किया गया।
विडंबना यही है कि सियासत के गलियारों से गुजर कर रातों-रात अकूत धन कमाने की लालसा रखने वालों ने राजनीति से लेकर नदियों तक का अस्तित्व संकट में खड़ा कर दिया है और फिलहाल इस पर कोई लगाम लगता नहीं दिखाई दे रहा है।
विधायकों की दबंगई के दो ताजा मामले बताते हैं कि इन्हें न्यायपालिका और कार्यपालिका पर दबाव बनाने में कोई गुरेज नहीं है।
इन दोनों मामलों को अगर सरकार गंभीरता से संज्ञान में लेती है, तो निश्चित रूप से सबक देने जैसी कार्रवाई होगी, अन्यथा सामान्य मामलों की तरह समझा गया, तो इन प्रवृत्तियों को बढ़ने से कौन रोक पाएगा।
रेत खनन का नियंत्रित होना, पर्यावरण के लिए बेहद आवश्यक है। नदियों के लिए मोहन सरकार जितनी सजग होना चाहती है, उसकी शुरुआत अवैध रेत खनन को रोकने से हो सकती है। अन्यथा नदी जोड़ो परियोजनाओं के लिए भी नदियां नहीं बचेंगी।
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