Jharkhand BJP कोमा में! घाटशिला ने बता दी सबसे बड़ी बीमारी, अब ‘आपरेशन क्लीनअप’ की जरूरत
Jharkhand BJP Crisis: झारखंड बीजेपी इस समय संकट में है। घाटशिला विधानसभा उपचुाव परिणाम से पार्टी की सबसे बड़ी कमजोरी और बीमारी सामने आ गई है। नेताओं की निजी महत्वाकांक्षाओं और कार्यकर्ताओं की निराशा के कारण पार्टी कमजोर हो रही है। अब 'आपरेशन क्लीनअप' की आवश्यकता है ताकि कार्यकर्ताओं का विश्वास वापस आए, नहीं तो राज्य में पार्टी का भविष्य खतरे में है।

अर्जुन मुंडा, लक्ष्मीकांत वाजपेयी, चम्पाई सोरेन और बाबूलाल मरांडी। (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, धनबाद। झारखंड की राजनीति में एक बार फिर सत्ता पक्ष ने अपनी पकड़ मजबूत साबित की है। घाटशिला विधानसभा उपचुनाव में झामुमो उम्मीदवार सोमेश चंद्र सोरेन की निर्णायक जीत ने न सिर्फ हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार को मजबूती दी है, बल्कि भाजपा के भीतर मौजूद गहरी संगठनात्मक समस्याओं को भी उजागर कर दिया है।
राज्य के शिक्षा मंत्री और झामुमो विधायक रामदास सोरेन के निधन के कारण घाटशिला में विधानसभा का उपचुनाव कराया गया था। शुक्रवार को उपचुनाव का परिणाम आया। रामदास सोरेन के बेटे और झामुमो प्रत्याशी सोमेश ने सहानुभूति लहर पर सवार होकर भाजपा प्रत्याशी बाबूलाल सोरेन को 38, 601 मतों के अंतर से पराजित किया।
साल भर में भाजपा के घट गए वोट
नवंबर, 2024 में हुए झारखंड विधानसभा चुनाव के दौरान घाटशिला में भाजपा को 75,910 मत मिले थे। जबकि ताजा संपन्न उपचुनाव में भाजपा को 66,335 मत मिले। साल भर के अंदर में भाजपा ने 9,575 मत गंवा दिए। भाजपा प्रत्याशी बाबूलाल पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन के पुत्र थे। भाजपा ने 2019 चुनाव में भी बाबूलाल को ही प्रत्याशी बनाया था।
2020–2025: उपचुनावों का पैटर्न भाजपा के खिलाफ
2020 से 2025 के बीच हुए उपचुनावों का डेटा साफ संकेत देता है कि राज्य में भाजपा का जनाधार लगातार सिमट रहा है। इस अवधि में कुल सात प्रमुख उपचुनाव हुए। इनमें से सिर्फ एक-रामगढ़ (AJSU) भाजपा गठबंधन के पक्ष में गया, जबकि बाकी सभी सीटें JMM-कांग्रेस गठबंधन के खाते में चली गईं।
झारखंड विधानसभा चुनाव 2019 में रघुवर दास के नेतृत्व में भाजपा की हार और हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झामुमो गठबंधन की जीत हुई। हेमंत सोरेन दो विधानसभा सीट-दुमका और बरहेट से चुने गए थे। उन्होंने दुमका से इस्तीफा दे दिया। कुछ दिनों बाद बेरमो के कांग्रेस विधायक राजेंद्र सिंह की मृत्यु हो गई।
नवंबर 2020 में दुमका और बेरमो उपचुनाव में JMM और कांग्रेस की जीत ने सत्ता पक्ष को मजबूती दी और भाजपा को शुरुआती झटका दिया। 2021 के मधुपुर उपचुनाव में हफीजुल हसन की जीत ने JMM के जनाधार को और मजबूत किया। 2022 के मांडर उपचुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को करारी शिकस्त दी।
2023 का रामगढ़ उपचुनाव ही एक अपवाद साबित हुआ जहां AJSU ने जीत दर्ज की। लेकिन 2024 के गांडेय और 2025 के घाटशिला उपचुनाव में एक बार फिर सत्ता पक्ष ने भाजपा को कठोर संदेश दिया—झारखंड में पार्टी की पकड़ बेहद कमजोर हो चुकी है।
दुमका (2020) – JMM जीत
बेरमो (2020) – कांग्रेस जीत
मधुपुर (2021) – JMM जीत
मांडर (2022) – कांग्रेस जीत
रामगढ़ (2023) – AJSU जीत
गांडेय (2024) – JMM जीत
घाटशिला (2025) – JMM जीत
उपचुनावों का यह पैटर्न भाजपा के लिए साफ संदेश है-पार्टी न तो धारणा बदल पा रही है और न ही संगठनात्मक ढांचे में सुधार कर पा रही है।
2019 के बाद भाजपा लगातार बैकफुट पर क्यों?
2019 विधानसभा चुनाव की हार ने जिस राजनीतिक गिरावट की शुरुआत की थी, वह अभी तक थमी नहीं है। 2024 लोकसभा चुनाव में सीटें 12 से घटकर 9 हो गई। 2024 विधानसभा में करारी हार मिली।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा झारखंड में स्थानीय नेतृत्व, आदिवासी समुदायों और कुर्मी मतदाताओं के साथ भावनात्मक और राजनीतिक स्तर पर संवाद स्थापित करने में विफल रही है। दूसरी ओर JMM और कांग्रेस स्थानीय मुद्दों, पहचान की राजनीति और जमीनी नेताओं के सहारे अपने जनाधार को मजबूत बनाए हुए हैं।
नेतृत्व पर सवाल और संगठन की कमजोरी
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी, राज्य प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेयी और संगठन महामंत्री कर्मवीर सिंह पर सवाल उठ रहे हैं कि क्यों पार्टी लगातार जमीनी समर्थन खो रही है। कई जिलों में संगठन निष्क्रिय है, बूथ प्रबंधन कमजोर हुआ है और पार्टी का आदिवासी नेतृत्व भी कमजोर पड़ गया है। भाजपा के भीतर यह स्वीकार किया जा रहा है कि झारखंड को अब 'ऑपरेशन रीबिल्ड' की जरूरत है।
छत्तीसगढ़ मॉडल: झारखंड के लिए संभावित रास्ता?
विश्लेषक झारखंड की स्थिति की तुलना छत्तीसगढ़ से कर रहे हैं। 2018 विधानसभा में करारी हार के बाद भाजपा ने 2019 लोकसभा में सभी सीटिंग सांसदों के टिकट काटकर नए चेहरों पर दांव लगाया और शानदार जीत मिली। 2023 विधानसभा में भी भाजपा की दमदार वापसी हुई।
छत्तीसगढ़ माडल झारखंड में भी लागू हो सकता है-पुराने नेतृत्व को सीमित कर, नए, आक्रामक और सामाजिक आधार वाले नेताओं को आगे लाने की जरूरत है।
घाटशिला ने संकेत दे दिया-समय बहुत कम है
अगले तीन वर्षों में कोई बड़ा चुनाव नहीं है। यही भाजपा के लिए अवसर है। यदि नरेंद्र मोदी और अमित शाह का केंद्रीय नेतृत्व झारखंड में व्यापक संगठनात्मक सर्जरी नहीं करता, तो पार्टी की वापसी और मुश्किल हो जाएगी। घाटशिला की हार केवल एक चुनावी परिणाम नहीं, बल्कि एक राजनीतिक चेतावनी है-झारखंड में भाजपा अपनी जमीन लगातार खो रही है और समय रहते सुधार जरूरी है।

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