विस्थापन का दर्द दूर करेगा पुनर्वास आयोग, कौन होंगे इसके सदस्य; कैसे होगा कामकाज?
झारखंड सरकार ने विस्थापन और पुनर्वास आयोग के गठन को मंजूरी दे दी है जो राज्य के विकास परियोजनाओं से विस्थापित हुए लोगों की मदद करेगा। यह ऐतिहासिक कदम झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की वैचारिक जीत है जो जल जंगल जमीन की लड़ाई का प्रतीक रहा है। विस्थापन की त्रासदी से जूझते लोगों को कैसे मिलेगा लाभ..?

प्रदीप सिंह, राज्य ब्यूरो। झारखंड सरकार ने राज्य में विस्थापन और पुनर्वास आयोग के गठन को मंजूरी दी है। यह ऐतिहासिक और सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण कदम है। झारखंड खनिज संपदा और प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध होने के बावजूद विकास परियोजनाओं के कारण विस्थापन की त्रासदी से जूझता रहा है।
खनन, बांध निर्माण, औद्योगिक परियोजनाएं और अन्य बड़ी योजनाओं ने स्थानीय समुदायों विशेष रूप से आदिवासी और ग्रामीण आबादी को उनकी जमीन, आजीविका और सांस्कृतिक पहचान से वंचित किया है। झामुमो ने इस मुद्दे को अपनी स्थापना के बाद से ही प्रमुखता से उठाया है।
इस आयोग का गठन झामुमो के लिए एक वैचारिक जीत है, जो न केवल उनके आधार को मजबूत करता है, बल्कि हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरकार की सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है। आयोग की संरचना समावेशी और व्यवस्थित ढांचे पर आधारित होगी।
आयोग में एक अध्यक्ष, दो सदस्य और तीन आमंत्रित सदस्य होंगे, जिनका कार्यकाल तीन वर्ष का होगा। अध्यक्ष के लिए सामुदायिक विकास या विस्थापन और पुनर्वास के क्षेत्र में कम से कम दस वर्ष का अनुभव अनिवार्य है। यह सुनिश्चित करता है कि आयोग का नेतृत्व अनुभवी और क्षेत्रीय समस्याओं से परिचित व्यक्ति के पास हो।
कौन बनाएगा नीतियां?
इसके अतिरिक्त, संयुक्त सचिव स्तर से ऊपर के प्रशासनिक अनुभव वाले अधिकारी और सेवानिवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश या 40 वर्ष से अधिक उम्र के अधिवक्ता को सदस्य के रूप में शामिल किया जाएगा। आयोग का कार्य विस्थापित परिवारों का सामाजिक-आर्थिक अध्ययन कराना और इसके आधार पर पुनर्वास योजनाएं तैयार करना है। यह अध्ययन न केवल विस्थापितों की स्थिति को समझने में मदद करेगा, बल्कि उनकी जरूरतों के अनुरूप नीतियां बनाने में भी सहायक होगा।
किसको मिलेगा आयोग का लाभ?
झारखंड में विस्थापन का मुद्दा मुख्य रूप से आदिवासी और अन्य हाशिए पर रहने वाले समुदायों से जुड़ा है। ये समुदाय अपनी जमीन और आजीविका खोने के बाद अक्सर उपेक्षित रह जाते हैं। आयोग का गठन इन समुदायों को सामाजिक-आर्थिक रूप से सशक्त बनाने की दिशा में एक ठोस कदम है।
यह विशेष रूप से उन परिवारों के लिए महत्वपूर्ण है, जो बड़ी परियोजनाओं जैसे बांधों और खनन परियोजनाओं के कारण विस्थापित हुए, लेकिन उन्हें उचित मुआवजा या पुनर्वास का लाभ नहीं मिला।
झामुमो को इससे क्या फायदा होगा?
झामुमो के लिए यह आयोग न केवल एक नीतिगत उपलब्धि है, बल्कि एक राजनीतिक रणनीति भी है। विस्थापन का मुद्दा झारखंड में एक संवेदनशील और भावनात्मक विषय रहा है। इस आयोग के माध्यम से हेमंत सोरेन सरकार न केवल अपने वादों को पूरा कर रही है, बल्कि अपने पारंपरिक समर्थक आधार, विशेष रूप से आदिवासी समुदायों को और मजबूत कर रही है।
यह निर्णय झामुमो को आगामी चुनावों में एक मजबूत नैरेटिव प्रदान करेगा। झारखंड जैसे संसाधनों से समृद्ध राज्य में विकास परियोजनाएं अपरिहार्य हैं। हालांकि, इन परियोजनाओं के कारण विस्थापन और सामाजिक असंतुलन की समस्या को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
आयोग का गठन विकास और सामाजिक समावेश के बीच संतुलन स्थापित करने की दिशा में एक प्रयास है। यह सुनिश्चित करेगा कि विकास के लाभ हाशिए पर रहने वाले समुदायों तक भी पहुंचें। आयोग के सामने सबसे बड़ी चुनौती इसके उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से लागू करना होगा।
सामाजिक-आर्थिक अध्ययन और पुनर्वास योजनाओं को लागू करने में समय, संसाधन और समन्वय की आवश्यकता होगी। सरकारी तंत्र की नौकरशाही और भ्रष्टाचार इस प्रक्रिया को बाधित कर सकता है। विस्थापित परिवारों की सटीक पहचान और उनके सामाजिक-आर्थिक आंकड़ों का संग्रह एक जटिल कार्य है।
विशेष रूप से उन परिवारों के लिए, जो दशकों पहले विस्थापित हुए और जिनके पास कोई औपचारिक दस्तावेज नहीं हैं। पुनर्वास योजनाओं के लिए बड़े पैमाने पर वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होगी। झारखंड जैसे आर्थिक रूप से सीमित संसाधनों वाले राज्य में यह एक चुनौती हो सकती है। कई समुदाय सरकारी योजनाओं के प्रति संशय रखते हैं। आयोग को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसकी योजनाएं पारदर्शी हों और स्थानीय समुदायों का विश्वास जीत सकें।
आयोग के कार्यान्वयन से आदिवासी और अन्य विस्थापित समुदायों को आजीविका और सामाजिक स्थिति को पुनः प्राप्त करने में मदद मिलेगी। यह शिक्षा, रोजगार और बुनियादी सुविधाओं तक उनकी पहुंच को बढ़ा सकता है।
आयोग की मौजूदगी से भविष्य की परियोजनाओं में विस्थापन से संबंधित नीतियों में सुधार होगा। यह सुनिश्चित करेगा कि परियोजनाओं के नियोजन में विस्थापितों के हितों को प्राथमिकता दी जाए। विस्थापन के कारण उत्पन्न होने वाले सामाजिक असंतोष और विरोध को कम करने में आयोग महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
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