रात में सोया परिवार.. सुबह न घर बचा और न घरवाले, तीन माह से यही हाल; पढ़िए हिमाचल का दर्द और विनाश की कहानी
पिछले 90 दिनों से हिमाचल प्रदेश बाढ़ और भूस्खलन की त्रासदी झेल रहा है। यह तबाही सिर्फ प्राकृतिक नहीं बल्कि नदियों के किनारे अतिक्रमण अवैध खनन और अनियोजित विकास का नतीजा है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने नदियों से 50-100 मीटर दूर निर्माण पर रोक लगाकर एक पहल की है लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि ...

नवनीत शर्मा, शिमला। एक सामान्य व्यक्ति रात को परिवार के साथ सोया है... अगले दिन के कार्यों के बारे में विचार करते हुए। बादल फटने, भूस्खलन और धंसाव के कुछ ही पलों के बाद सब अतीत हो जाता है। न घर बचता है, न ही घर वाले। कोई वाहन चलाते हुए जा रहा है, अचानक गोली की गति से पत्थर उतरता है और वाहन टुकड़ों में बंटकर खाई में चला जाता है।
इन दुस्वप्नों को 90 दिन यानी तीन माह से झेलता आ रहा हिमाचल प्रदेश यह नहीं समझ पा रहा है कि जीवन का पुन: आरंभ कहां से किया जाए, लेकिन उठना तो होगा। उठे बिना गुजारा नहीं है। ठीक है, पर उठें कहां से?
हिमाचल प्रदेश सरकार ने उठने की शुरुआत संभवत: उस बिंदु से की थी, जब उस भू-भाग को संरक्षित घोषित किया था, जिसे एक कंपनी होटल बनाने के लिए मांग रही थी। एक बिंदु और है।
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा और मंत्रिमंडल ने भी मोहर लगा दी कि कोई भी निर्माण अब नदियों-नालों से 50 से 100 मीटर दूर ही हो पाएगा। स्थानीय पंचायतों की अनापत्ति भी अनिवार्य की गई है।
धर्मपुर: खड्ड में बस अड्डा
एक शुरुआत मंडी जिले के धर्मपुर से हुई है, जहां सोन खड्ड में किसी की जिद की नींव पर बस अड्डा कई वर्ष पूर्व बना दिया गया था। दो दिन पहले 18 से 20 बसें अड्डे में बह गई थीं।
हानि के आंकड़े सार्वजनिक हैं, वर्षा के आंकड़े सबको पता हैं, यह विमर्श भी आम हो गया है कि हिमाचल समेत अन्य पहाड़ी राज्यों की आपदा कितनी प्राकृतिक और कहां तक अप्राकृतिक है। अगर यह आपदा प्राकृतिक है तो प्रकृति की बात सुननी चाहिए। धर्मपुर वस्तुत: एक केस स्टडी है कि कैसे खड्ड में बस अड्डा बना दिया गया।
स्थल चयन समिति से लेकर हिमाचल प्रदेश पथ परिवहन निगम के तत्कालीन अधिकारी, वन विभाग, हिमुडा... सब के सब किसी प्रभावी जिद के आगे बौने पड़ गए थे। वर्तमान सरकार को अड्डा ही स्थानांतरित करना पड़ रहा है तो स्थिति की गंभीरता को समझना चाहिए।
हवाई अड्डा के नीचे निकली धारा.. और फिर मलबा ही मलबा
कांगड़ा हवाई अड्डा एक पहाड़ी पर है। इस पहाड़ी के नीचे पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय राजमार्ग है। अचानक एक धारा पानी की निकली और कितना ही मलबा अब तक निकाला जा चुका है।
पहाड़ को छांटता हुआ यह स्खलन हवाई अड्डे की बाड़ तक पहुंच गया है। लोगों को हो रही परेशानी, यातायात जाम एक बात है, किंतु एक ओर पहाड़ी में आई दरार है, दूसरी ओर खड्ड (छोटी नदी) है। हिमाचल प्रदेश की परंपरा में रहे हैं प्याऊ। यह सीरें या धाराएं जहां-जहां फूटती हैं, वाहनों वाले, पैदल चलने वाले प्यास बुझाते थे।
यह सबक पूरे प्रदेश में राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के लिए भी है कि कंक्रीट की नींव में दबा कर प्राकृतिक स्रोत नहीं दबते। आप फोरलेन बनाइए, सुरंगें बनाइए, पुल बनाइए, लेकिन पानी को मत मारिए, वरना पानी बहा ले जाएगा।
जब पानी की एक धारा इतना नुकसानकर सकती है तो सोन खड्ड ने धर्मपुर के किस राजनीतिक व्यक्ति को यह आश्वासन दिया था कि वह पुन: रौद्र रूप धारण नहीं करेगी? बस क्षेत्रीयता और लोकप्रियता के आगे मानकों को भी पानी में डुबो देना चाहिए था? जांच भी हुई थी, कार्रवाई की अनुशंसा भी, किंतु हुआ कुछ नहीं। सुक्खू सरकार सख्त निर्णय ले रही है, वह चाहे तो डेढ़ दशक पुराने इस मामले की जांच भी कर सकती है।
पहाड़ों को कैसे बचाया जाए?
प्रकृति की बात सुनने और उसके सम्मान का एक ढंग यह भी हो सकता है कि पुरानी भवन निर्माण शैली की ओर लौटें। पहाड़ों पर बोझ न बढ़ाएं। पानी को रास्ता दें। नदियों की गोद में होम स्टे, होटल आदि के मोह से बचें। बरसात में हर झरने को नाला, नाले को खड्ड और खड्ड को नदी बनने में किसी की अनुमति नहीं चाहिए। हरियाली को शत्रु न समझें।
पर्वतीय राज्यों में रहने वाले लोगों को भी समझना होगा कि वे हिमाचल प्रदेश को हिमाचल प्रदेश ही बना रहने देना चाहते हैं या नहीं। मैदानों वाली सुविधाएं इसी प्रकार पहाड़ों पर जुटाने की होड़ जारी रही तो पहाड़, मैदान बन जाएंगे, पहाड़ नहीं रहेंगे।
शिक्षा विभाग समझाएं पहाड़ और पर्यावरण की अहमियत
हिमाचल प्रदेश का शिक्षा विभाग और शिक्षा बोर्ड इस बात पर भी विचार करें कि नैतिक शिक्षा और योग जितना ही आवश्यक अब यह विषय भी होना चाहिए कि पहाड़ और पर्यावरण के प्रति हमारा दृष्टिकोण क्या होना चाहिए। वो सूरज ढलने के बाद हरा पत्ता न तोड़ने पर कभी अपराध बोध अनुभव करते रहे हिमाचल प्रदेश को लौटना चाहिए अब।
जल को प्रदूषित न करने या उसका बहाव बंद न करने वाले हिमाचल प्रदेश की आवश्यकता है अब। जब सुप्रीम कोर्ट तक कह चुका है कि हिमाचल प्रदेश ही नहीं, पूरा हिमालय क्षेत्र ही खतरे में है तो इसका कोई अर्थ है। नगर एवं ग्राम नियोजन को परंपरागत स्थापनाओं से सीखना चाहिए।
आप हिमाचल प्रदेश में रहते हैं?
पहले लोग पूछते थे- आप हिमाचल प्रदेश में रहते हैं? जवाब होता था- जी हां! पलट कर सुनने को मिलता था- आप तो भाग्यशाली हैं, स्वर्ग में रहते हैं। अब उदासी का रंग ओढ़े एक पंक्ति धारा की तरह बरबस फूटती है- ....जी हां, हम स्वर्ग में रहते हैं, पर बरसात में स्वर्गवासी हो जाते हैं!
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