'बेनी बाबू' का मुलायम सिंह यादव के साथ पूरी उम्र रहा रूठने और मानने का रिश्ता...
राज्यसभा सदस्य व पूर्व केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा के निधन से समाजवादी आंदोलन ने एक जमीनी नेता खो दिया है।
लखनऊ, जेएनएन। राज्यसभा सदस्य व पूर्व केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा के निधन से समाजवादी आंदोलन ने एक जमीनी नेता खो दिया है। समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे बेनी वर्मा और मुलायम सिंह यादव के बीच अनूठा रिश्ता ताउम्र रूठने- मानने का रहा। दोनों ही खाटी समाजवादी नेता रामसेवक यादव की प्रेरणा से राजनीति में आए। राजनीतिक गुरु एक होने के कारण दोनों के बीच गुरु भाई जैसे संबंध भी थे। अक्खड़ स्वाभाव वाले बेनी वर्मा खरी-खरी कहने से कभी नही चूकते थे। इस कारण मुलायम और उनके बीच कई बार खटास भी पैदा हुई परंतु मुलायम के मनाने से बेनी मान भी जाते थे।
वर्ष 2009 में समाजवादी पार्टी से नाराज होकर बेनी कांग्रेस में गए और मनमोहन सरकार में मंत्री बने। वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव हार जाने के बाद उनका कांग्रेस से मोह भंग हुआ। भाजपा में जाने की चर्चाएं भी चलीं परंतु मुलायम के एक बार कहने पर बेनी सपा में वापस लौट आए। मुलायम ने भी बेनी के तीखे बयानों और मतभेदों को भुलाकर उनको 2016 में राज्यसभा भेजने का फैसला लिया। सपा प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल के अनुसार बेनी बाबू जनता की नब्ज को अच्छी तरह पहचानते थे। खासकर किसानों के मुद्दे पर उनकी अनदेखी करना किसी के लिए मुमकिन नहीं था।
पिछड़े वर्ग व किसान राजनीति के महारथी बेनी वर्मा प्रधानमंत्री स्व.चौधरी चरण सिंह के भी अतिप्रिय रहे। भारतीय क्रांति दल और लोकदल में अहम पदों पर रहे बेनी की चुनावी राजनीति की शुरुआत वर्ष 1970 में गन्ना समिति के चुनाव से हुई। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। कुर्मी समाज के क्षत्रप माने जाने वाले बेनी वर्मा पहली बार 1974 में दरियाबाद सीट से चुनाव लड़कर विधानसभा में पहुंचे और 1995 तक विधायक निर्वाचित होते रहे। इसके बाद 1996 से 2014 तक लगातार सांसद रहे।
प्रदेश सरकार में पहली बार 1977 में कारागार व गन्ना मंत्री बने। केंद्र में देवगौड़ा व मनमोहन सरकार में मंत्री रहे बेनी वर्मा को कांग्रेस में खूब तवज्जो मिली। मनमोहन सरकार में इस्पात मंत्री होने के अलावा सोनिया गांधी ने उन्हें सीडब्लूसी का सदस्य भी बनाया। हालांकि, मोदी लहर के चलते बेनी 2014 के लोकसभा चुनाव में बेअसर साबित हुए और खुद चुनाव भी हार गए। उनका खरी बात कहने का मिजाज कांग्रेस में भी बना रहा। इसी कारण कांग्रेस से उनकी पटरी अधिक दिनों तक नहीं बैठ सकी। कांग्रेस प्रवक्ता बृजेंद्र सिंह का कहना है कि बेनी वर्मा जैसे नेता का दुनिया से जाना किसान आंदोलन की भारी क्षति है।