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    Kolkata: I.N.D.I.A के लिए सिरदर्द बन सकती हैं बंगाल की 42 सीटें, 'एकला चलो' नीति पर चल सकता है बड़ा दांव

    Kolkata नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लुसिव अलायंस (आइएनडीआइए) तो बन गया लेकिन उनके बीच अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर सहमति नहीं बन पा रही है। वह भाजपा के खिलाफ संयुक्त रूप से एक प्रत्याशी खड़ा करने के पक्ष में हैं यानी जहां जो पार्टी सबसे मजबूत स्थिति में है उसी के प्रत्याशी को भाजपा के विरुद्ध मैदान में उतारा जाए।

    By Jagran NewsEdited By: Prince SharmaUpdated: Wed, 06 Sep 2023 08:05 AM (IST)
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    Kolkata: I.N.D.I.A के लिए सिरदर्द बन सकती हैं बंगाल की 42 सीटें

    कोलकाता, विशाल श्रेष्ठ। 28 विपक्षी दलों को लेकर इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लुसिव अलायंस (आइएनडीआइए) तो बन गया लेकिन उनके बीच अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर सहमति नहीं बन पा रही है।

    बंगाल की बात करें तो यहां सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस से लेकर कांग्रेस व माकपा नेतृत्व वाले वाममोर्चा तक कोई अपनी सियासी जमीन छोड़ने को तैयार नहीं हैं। मुख्यमंत्री व तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी चाहती हैं कि आइएनडीआइए में केंद्रीय स्तर पर राज्यों में सीटों के बंटवारे पर निर्णय लिया जाए।

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    तृणमूल बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में अपना दावा ठोक सकेगी

    वह भाजपा के खिलाफ संयुक्त रूप से एक प्रत्याशी खड़ा करने के पक्ष में हैं, यानी जहां जो पार्टी सबसे मजबूत स्थिति में है, उसी के प्रत्याशी को भाजपा के विरुद्ध मैदान में उतारा जाए। ऐसा हुआ तो तृणमूल बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से सर्वाधिक पर अपना दावा ठोक सकेगी। दूसरी तरफ ममता को अपने मुस्लिम वोट बैंक के इस बार कांग्रेस-वाममोर्चा के साथ बंटने का जो डर सता रहा है।

    वह भी नहीं रहेगा यानी वह हर लिहाज से फायदे में रहेगी। तृणमूल-भाजपा में सीधा मुकाबला: 2019 के लोकसभा चुनाव में बंगाल की 39 सीटों पर तृणमूल-भाजपा में सीधा मुकाबला हुआ था, जिनमें से 21 पर तृणमूल और 18 पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी।

    तृणमूल व कांग्रेस में महज दो सीटों पर सीधी टक्कर देखने को मिली थी, जिनमें से एक में तृणमूल व एक में कांग्रेस को जीत मिली थी।

    एक सीट को लेकर कांग्रेस ने बाजी मारी

    वहीं कांग्रेस-भाजपा में सिर्फ एक सीट पर सीधी भिड़ंत हुई थी, जिसमें कांग्रेस ने बाजी मारी थी। समग्र रूप से तृणमूल ने 22 सीटों पर जीत दर्ज की थी। हारी सीटों में वह दूसरे स्थान पर रही थी।

    सबसे बुरा हश्र माकपा नेतृत्व वाले वाममोर्चा का हुआ था, वह तीसरे और चौथे स्थान पर रही थी। येचुरी समझ रहे हैं ममता का दांव: केंद्रीय स्तर पर सीटों का बंटवारा होने पर बंगाल में वाममोर्चा के लिए दावेदारी की कोई जगह नहीं बचेगी। कांग्रेस भी जीती गई दो सीटों को छोड़कर ज्यादा दम नहीं भर पाएगी।

    दूसरी तरफ तृणमूल की झोली में सीटें ही सीटें होंगी और सामने सिर्फ भाजपा के रूप में एक प्रतिद्वंद्वी होगा। माकपा के राष्ट्रीय महासचिव सीताराम येचुरी ममता के इस दांव को समझ रहे हैं तभी उन्होंने पिछले दिनों मुंबई में हुई आइएनडीआइए की तीसरी बैठक में ममता के इस प्रस्ताव को रखने के साथ ही इस पर आपत्ति जता दी। उन्होंने कहा कि सीटों पर समझौता केंद्रीय स्तर पर कभी नहीं हो सकता।

    'एकला चलो' की नीति भी अपना सकती हैं दीदी

    हरेक राज्य की स्थिति अलग है इसलिए राज्य स्तर पर ही सीटें तय होनी चाहिए। भाकपा के राष्ट्रीय महासचिव डी राजा ने भी उनका पुरजोर समर्थन किया। बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष अधीर चौधरी और माकपा के राज्य सचिव मोहम्मद सलीम एक सुर में केंद्र की मोदी व बंगाल की दीदी सरकार को सत्ता से उखाड़ फेंकने का आह्वान कर रहे हैं। 'एकला चलो' की नीति भी अपना सकती हैं

    मुंबई में आइएनडीआइए की बैठक के बाद हुए संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में ममता की गैरमौजूदगी संकेत दे रही है कि तृणमूल बंगाल में सीटों के बंटवारे को लेकर किसी तरह का समझौता करने के पक्ष में नहीं है, चाहे उसे आगे 'एकला चलो' की नीति क्यों न अपनानी पड़े। ममता पूर्व में कई बार ऐसा कर चुकी हैं। ऐसे में बंगाल में आइएनडीआइए का भविष्य क्या होगा, यह तो आने वाला समय बताएगा।