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    महाराष्ट्र में इस वजह से उद्धव ठाकरे फैक्टर हुआ फेल? 'असली शिवसेना' और ' असली NCP' पर जनता की मुहर

    Updated: Sat, 23 Nov 2024 06:40 PM (IST)

    महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में करारी हार से आहत शिवसेना (UBT) अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने शनिवार को कहा कि ऐसा लगता है कुछ गड़बड़ है। नतीजों के आने के बाद अपनी पहली प्रतिक्रिया में ठाकरे ने माना कि यह वास्तव में कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (सपा)-शिवसेना (यूबीटी) गठबंधन के लिए करारी हार है फिर भी उन्होंने एमवीए उम्मीदवारों को वोट देने वाले सभी लोगों के प्रति आभार व्यक्त किया।

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    शिवसेना (UBT) नेता उद्धव ठाकरे (File Photo)

    ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। पिछले ढाई वर्षों में शिवसेना एवं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) में विभाजन के बाद केंद्रीय चुनाव आयोग एवं राज्य के विधानसभा अध्यक्ष ने शिवसेना एवं राकांपा के जिन घटकों को 'असली' का दर्जा दिया था, आज राज्य की जनता ने भी उनके निर्णयों पर मुहर लगा दी है।

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    मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने 21 जून 2022 को अपनी पार्टी के 40 विधायकों के साथ शिवसेना से बागवत की थी। फिर करीब एक साल बाद अजीत पवार ने भी इतने ही विधायकों के साथ राकांपा से बगावत कर दी थी। इन दोनों दलों के मुखिया की ओर से तब सर्वोच्च न्यायालय एवं केंद्रीय चुनाव आयोग में इस बगावत को चुनौती दी गई थी।

    चुनाव चिन्ह पर रार

    सर्वोच्च न्यायालय में बागी विधायकों की सदस्यता रद करने के लिए, तो चुनाव आयोग में पार्टी के नाम और चुनाव चिन्ह पर अधिकार के लिए याचिकाएं दायर की गई थीं। सर्वोच्च न्यायालय ने तो अपने सामने आई याचिका पर सुनवाई का अधिकार विधानसभा अध्यक्ष को सौंप दिया था।

    चुनाव आयोग का फैसला बरकरार

    जबकि चुनाव आयोग ने दोनों पार्टियों के मामले में असली पार्टी होने के अधिकार बागी गुटों को ही प्रदान किया, और पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न के उपयोग का अधिकार भी बागी गुटों को ही दे दिया था। बाद में विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने भी चुनाव आयोग के फैसले को ही बरकरार रखा था। चुनाव आयोग के फैसले में ही शिवसेना के उद्धव गुट को शिवसेना (यूबीटी) एवं राकांपा के शरद पवार गुट को राकांपा (शरदचंद्र पवार) नाम दिया था।

    सहानुभूति बटोरने का आरोप

    लेकिन शिवसेना (यूबीटी) और राकांपा (शरदचंद्र पवार) कभी भी चुनाव आयोग के निर्णय को स्वीकार नहीं कर पाए। शिवसेना (यूबीटी) की ओर से मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे पर लगातार अपनी पार्टी, पार्टी के नाम, और चुनाव चिह्न की चोरी का आरोप लगाकर सहानुभूति बटोरने का काम किया जाता रहा है।

    विधानसभाध्यक्ष के फैसलों पर मुहर

    शिवसेना (यूबीटी) और राकांपा (शरदचंद्र पवार) की ओर से शिंदे और अजीत पवार पर मूल दल के संस्थापकों बालासाहेब ठाकरे एवं शरद पवार की तस्वीरों के उपयोग पर भी आपत्ति जताई जाती रही है। चुनाव के दौरान उद्धव ठाकरे बार-बार कहते रहे थे कि उन्हें चुनाव आयोग और सर्वोच्च न्यायालय से न्याय नहीं मिला। अब जनता की अदालत से ही उन्हें न्याय की उम्मीद है। लेकिन अब विधानसभा चुनाव के परिणामों ने चुनाव आयोग और विधानसभाध्यक्ष के फैसलों पर मुहर लगा दी है।

    शिंदे के उक्त आरोपों पर मुहर

    छह माह पहले हुए लोकसभा चुनाव एवं अब विधानसभा चुनाव के प्रचार अभियान के दौरान मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की ओर से उद्धव ठाकरे पर बालासाहेब ठाकरे के विचारों से अलग होने का आरोप लगाया जाता रहा है। मुस्लिम मतदाताओं से बढ़ी उद्धव ठाकरे की नजदीकी शिंदे के उक्त आरोपों पर मुहर लगाती रही।

    क्यों पीछे हुए उद्धव ठाकरे?

    माना जा रहा है कि शिवसेना के मूल विचारों से कटना ही उद्धव ठाकरे को भारी पड़ा और अपने गढ़ मुंबई, ठाणे व कोंकण में भी वह एकनाथ शिंदे से बुरी तरह पिछड़ गए। दूसरी ओर शरद पवार की पार्टी के नेता भी अजीत पवार पर पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न हथियाने का आरोप लगाते रहे। लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी को इन आरोपों का फायदा भी मिला। लेकिन विधानसभा चुनाव में उन्हें भी मुंह की खानी पड़ी है।