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    भारत के साथ मिलना चाहते थे बलूचिस्‍तान के लोग, लेकिन नेहरू ने कर दिया था इनकार!

    By Kamal VermaEdited By:
    Updated: Sat, 14 Sep 2019 08:14 AM (IST)

    बलूचिस्‍तान के लोगों पर पाकिस्‍तान के जुल्‍म किसी से छिपे नहीं रहे हैं। दशकों से उनका यह संघर्ष जारी है। लेकिन कभी इन्‍होंने भारत के साथ मिलने की इच्‍छा जताई थी।

    भारत के साथ मिलना चाहते थे बलूचिस्‍तान के लोग, लेकिन नेहरू ने कर दिया था इनकार!

    नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। बलूचिस्‍तान का मुद्दा संयुक्‍त राष्‍ट्र मानवाधिकार आयोग के जरिए फिर पूरी दुनिया में गरमा गया है। बलूचिस्‍तान के लोगों का पाकिस्‍तान की सरकार और सेना किस तरह से दमन कर रही है यह पूरी दुनिया जान चुकी है। इसको लेकर बलूचिस्‍तान ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में रह रहे बलूच प्रदर्शन कर रहे हैं। पिछले दिनों जब यूएनएचआरसी (UNHRC) में यह मुद्दा गरमाया तब भी बलूच समर्थकों ने पाकिस्‍तान के खिलाफ जमकर नारेबाजी की थी। बलूचिस्‍तान का मसला कुछ साल नहीं बल्कि दशकों पुराना है। हकीकत तो ये है कि पाकिस्‍तान के बनने के साथ ही यह मुद्दा खड़ा हो गया था। इसके साथ ही बलूचों के साथ हो रहा अन्‍याय भी उसी वक्‍त जोर पकड़ा था। 'The Balochistan Conundrum' किताब में इस मसले का जिक्र किया गया है। इस किताब को कैबिनेट सचिवालय में विशेष सचिव रहे तिलक देवेशर ने लिखा है। 

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    दशकों पुराना संघर्ष 
    बलूच आज जो पाकिस्‍तान से अलग होने को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं वह भी पाकिस्‍तान की आजादी के साथ ही शुरू हुआ था। 1948 से ही ज्‍यादातर बलूचों के मन में यह बात घरकर गई थी कि उन्‍हें जबरन पाकिस्‍तान के साथ मिलाया गया है। लेकिन उस वक्‍त हुए विरोध के सामने तत्‍कालीन पाकिस्‍तान की सरकार झुक गई थी। इतना ही नहीं अंग्रेजों की विदाई के साथ ही बलूचों ने अपनी आजादी की घोषणा कर दी थी। पाकिस्‍तान ने भी उनकी ये बात मान ली थी लेकिन वो बाद में इससे मुकर गए। उस वक्‍त बलूचों के सबसे बड़े नेता खुदादाद खान हुआ करते थे। वे कलात के खां के नाम से मशहूर थे। कलात उस वक्‍त का बलूचिस्‍तान था और इसके राजकुमार थे खुदादाद। अंग्रेजी हुकूमत के समय में भी उनके राज्‍य पर अंग्रेजो का अधिकार नहीं था। 1876 में उनके साथ जो संधि अंग्रेजों ने की थी उसके मुताबिक बलूचिस्‍तान एकआजाद देश था। उनकी आजाद देश की पहचान को 1946 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने नकार दिया था। खान पहले से ही पाकिस्‍तान की आंखों में चढ़े हुए थे। बलूचों के विरोध की वजह से वह और निशाने पर आ गए थे। 1948 में खान को को पाकिस्‍तान की सेना ने गिरफ्तार कर लिया और उनसे जबरन बलूचिस्‍तान के पाकिस्‍तान में विलय के समझौते पर साइन करवा लिए।

    नेहरू ने ठुकरा दी थी मांग 
    1947 में भी कांग्रेस के नेता इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं थे कि बलूचिस्‍तान एकआजाद देश है। एक समस्‍या ये भी थी कि कांग्रेस जिस आजादी को मांग रही थी उसमें अंग्रेजों का यहां से जाना जरूरी था। कांग्रेस के कई नेता ये भी मानते थे कि भारत की आजादी के बाद बलूचिस्‍तान शायद ही आजाद राष्‍ट्र बनकर रह सके। इसके लिए उन्‍हें अंग्रेजों का साथ चाहिए होगा जो कांग्रेस को स्‍वीकार्य नहीं था। मार्च 1948 में ऑल इंडिया रेडियो पर प्रसारित समाचार में प्रेस कांफ्रेंस का जिक्र करते हुए बताया गया कि खुदादाद खान इस बात को लेकर तैयार थे कि बलूचिस्‍तान का भारत में विलय कर दिया जाए। लेकिन तत्‍कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसको नकार दिया। भारत सरकार के इस रवैये से खान को गहरा धक्‍का लगा और आखिर में उन्‍होंने पाकिस्तान के साथ संधि करने के लिए बातचीत की पेशकश कर दी। हालांकि बाद में पंडित नेहरू ने इस प्रेस कांफ्रेस में कही गई सभी बातों से पल्‍ला झाड़ लिया। उन्‍होंने इस पूरी खबर को ही मनगढ़ंत और झूठी बताया था।

    अपने ही लोगों पर बमबारी
    1959 में पाकिस्‍तान की सरकार ने धोखे से बलूच नेता नौरोज खान को हथियार डालने के लिए राजी किया और बाद में उनके दो बेटों समेत कई समर्थकों को सरेआम फांसी पर चढ़ा दिया था। 1974 पाकिस्तानी सेना ने इस इलाके में मिराज और एफ-86 विमानों से बम बरसाए थे। इसी दौरान इरान के शाह ने भी यहां पर बमबारी करने के लिए अपने कोबरा हेलीकॉप्‍टर पाकिस्‍तान को दिए थे। उन्‍होंने बलूचों के विद्रोह को कुचलने के लिए तत्‍कालीन शासक जुल्‍फीकार अली भुट्टो को पैसे और हथियार तक मुहैया करवाए थे। 26 अगस्त 2006 को जनरल परवेज मुशर्रफ के शासन में उस वक्‍त के सबसे बड़े बलूच नेता नवाब अकबर बुग्ती को सेना ने निर्दयता से मौत के घाट उतार दिया था। बुग्‍ती बलूचिस्‍तान के गवर्नर और केंद्र सरकार में मंत्री तक रह चुके थे। खुद इमरान खान ने पाकिस्‍तान का पीएम बनने से पहले दिए गए कई भाषणों में इसका जिक्र किया था कि पाकिस्‍तान की सेना बलूचिस्‍तान के लोगों पर बमबारी कर रही है। बलूच युवाओं का अपहरण कर उनको मौत के घाट उतार रही है। महिलाओं से सेना के जवान जबरदस्‍ती कर रहे हैं।

    बलूचिस्‍तान का रणनीतिक महत्‍व
    आपको बता दें कि बलूचिस्तान का 760 किलोमीटर लंबा समुद्र तट पाकिस्तान के कुल समुद्री तट का दो तिहाई है। बलूचिस्‍तान के ही तट पर ही पाकिस्तान के तीन नौसैनिक ठिकाने ओरमारा, पसनी और ग्वादर हैं। ग्वादर का अपना रणनीतिक महत्‍व बेहद खास है। इसके महत्‍व को जानते हुए ही चीन ने आर्थिक गलियारे पर 60 अरब डॉलर खर्च करने की योजना को जमीनी हकीकत प्रदान की थी। इस इलाके तांबा, सोना और यूरेनियम बहुतायत मात्रा में है। इसके अलावा इसके करीब चगाई में ही पाकिस्तान का न्‍यूक्लियर टेस्‍ट सेंटर भी है। इसी इलाके में कभी अमेरिका के भी सैनिक ठिकाने हुआ करते थे। यहीं सुई में प्राकृतिक गैस का अपार भंडार है जिसकी सप्‍लाई पाकिस्‍तान के कई इलाकों में होती है, लेकिन इसका फायदा बलूचों को ही नहीं मिला है।  

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