यूपी-बिहार की खाली हुई लोकसभा और विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव का एलान
हाल ही में राजस्थान में हुए उपचुनावों में भाजपा को मिली हार के बाद पूरे देश की नजर इन महत्वपूर्ण राज्यों में होने वाले चुनावों पर टिकी है।
नई दिल्ली, जेएनएन। उत्तर प्रदेश और बिहार में होने वाले लोकसभा अौर विधानसभा उपचुनावों को लेकर तारीख का एलान कर दिया गया है। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, फूलपुर और बिहार के अररिया, भभुआ व जहानाबाद क्षेत्र में 11 मार्च को उपचुनाव होंगे और 14 मार्च को मतगणना होगी। गौरतलब है कि हाल ही में राजस्थान में हुए उपचुनावों में भाजपा को मिली हार के बाद पूरे देश की नजर इन महत्वपूर्ण राज्यों में होने वाले चुनावों पर टिकी है। इस नतीजे से उत्साहित कांग्रेस ने कहा था कि देश का मूड बदल रहा है। सियासी पार्टियां इन चुनावों को मिशन-2019 का सेमीफाइनल भी मान रही हैं।
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफे से खाली हुई लोकसभा सीटों पर उपचुनावों की तारीख का एलान हुआ है। गोरखपुर और फूलपुर की सीटें लंबे समय से खाली हैं। इन दोनों लोकसभा सीट पर उप चुनाव 22 मार्च तक चुनाव कराए जाने थे।
हालांकि राजस्थान में मिली हार के बाद भाजपा पहले से ज्यादा सतर्क हो गई है और उपचुनावों को लेकर तैयारियां शुरू हो गई हैं। यह पार्टी के लिए एक तरह से नाक का सवाल बन गया है। भाजपा के लिए इन दोनों सीटों को अपने पास रखने की कठिन चुनौती है। पार्टी प्रदेश संगठन ने उपचुनावों के लिए दायित्व सौंप दिया है। गोरखपुर लोकसभा के लिए प्रदेश मंत्री कौशलेन्द्र सिंह, अनूप गुप्ता और विधायक राम चौहान को जिम्मेदारी सौंपी गई है। फूलपुर लोकसभा क्षेत्र के लिए प्रदेश मंत्री गोविन्द शुक्ल और अमर पाल मौर्य व विधायक भूपेश चौबे को दायित्व सौंपा गया है। लोकसभा उपचुनाव की दृष्टि से पदाधिकारी संबंधित लोकसभा क्षेत्रों में प्रवास करेंगे।
वहीं बिहार में भी लोकसभा की एक और विधानसभा की दो सीटों को लेकर आर-पार की लड़ाई देखने को मिलेगी। राजद सांसद तस्लीमुद्दीन के निधन के बाद अररिया लोकसभा सीट खाली हुई थी, जबकि जहानाबाद के राजद विधायक मुंद्रिका सिंह यादव और भभुआ के भाजपा विधायक आनंद भूषण पांडेय की मौत के बाद ये दोनों सीट रिक्त पड़ी थी। चुनावों के लिए 13 फरवरी से नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। 20 फरवरी तक उम्मीदवार नामांकन भर सकते हैं। 23 फरवरी नाम वापस लेने की आखिरी तारीख है। पिछले चुनाव में तीनों सीटों में से दो पर राजद का और एक पर भाजपा का कब्जा था।
तीनों सीटें बिहार और केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा और जदयू के साथ ही लोजपा और रालोसपा के लिए प्रतिष्ठा का विषय बनी हुई हैं, जबकि विपक्ष इन सीटों को हथिया कर सत्ता पक्ष का भ्रम तोड़ने की तैयारी में है।वहीं राजद के साथ कांग्रेस भी अपने सियासी समीकरण को दुरुस्त करने कवायद में जुट गई है।
गौरतलब है कि जिस दिन मौजूदा केंद्र सरकार संसद में अपना अंतिम पूर्णकालिक बजट पेश कर रही थी, उसी दिन राजस्थान से भाजपा के लिए निराशाजनक खबर सामने आई थी। पार्टी को अलवर, अजमेर संसदीय उपचुनाव और मांडलगढ़ विधानसभा उपचुनावों में हार का सामना करना पड़ा था। हालांकि इसके साथ ही पश्चिम बंगाल से राहत भरी खबर ये भी आई थी कि भाजपा दूसरे पायदान पर पहुंच गई है।
राजस्थान में हार के बाद भाजपा में वसुंधरा राजे के खिलाफ बगावती स्वर भी फूटने लगे हैं। इसको लेकर वसुंधरा राजे की कुर्सी पर भी खतरा मंडरा रहा है। भाजपा नेताओं के लिए जो आंकड़ा सबसे ज्यादा सदमे जैसा रहा, वह यह है कि अजमेर संसदीय क्षेत्र के तीन बूथ तो ऐसे थे जहां पार्टी को एक भी वोट नहीं मिला। यानी बूथ प्रबंधन के लिए लगाए गए लोगों ने भी वोट नहीं दिया। जबकि पिछले विधानसभा चुनाव में इन 17 में एक दर्जन से ज्यादा सीटों पर भाजपा जीती थी। जाहिर है कि हवा का यह रुख भाजपा के राज्य नेताओं को डराने लगा है।