आर्थिक आधार पर आरक्षण के तीन सवाल, क्या यह कदम संविधान की भावना के खिलाफ
सरकार के इस कदम को संविधान की मूल भावना के खिलाफ माना जा रहा है। इस प्रस्ताव पर तीन सवाल उठ रहे हैं।
नई दिल्ली(ब्यूरो)। आर्थिक आधार पर गरीब सवर्णो समेत सभी को 10 फीसदी आरक्षण देने के सरकार के प्रस्ताव पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। यह वर्तमान में निर्धारित 50 फीसदी आरक्षण के अलावा होगा। इसे सामान्य सीटों के भीतर ही दिया जाएगा। लेकिन सरकार के इस कदम को संविधान की मूल भावना के खिलाफ माना जा रहा है। इस प्रस्ताव पर तीन सवाल उठ रहे हैं।
1. सवर्ण प्रतिनिधित्व का सवाल
संविधान में आरक्षण का प्रावधान उन जातियों और वर्गो के लिए किया गया है जो सामाजिक रूप से पिछ़़डे हैं। सरकारी नौकरियों, राजनीति, शिक्षा जैसी प्रमुख जगहों पर उनका समुचित प्रतिनिधित्व नहीं है। इस आधार पर देखें तो अजा--पिछ़़डे वर्गो के मुकाबले सवर्ण आरक्षण तार्किक नहीं ठहरता। इन सभी जगहों पर सवर्णो का उचित प्रतिनिधित्व है।
2. सवर्ण समुदाय का कोई सर्वे नहीं
सवर्णो के आरक्षण की राह में दूसरी सबसे ब़़डी बाधा देश में उनका सामाजिक-आर्थिक स्तर या उनकी संख्या को लेकर अभी तक कोई सर्वे नहीं उपलब्ध नहीं है। जातिगत जनगणना शुरूतो की गई थी, लेकिन उसे बीच में ही बंद कर दिया गया। सवाल उठता है कि सवर्णो को आरक्षण देने का रास्ता और तरीका क्या होगा? उनका आर्थिक पिछ़़डापन कैसे तय होगा।
3. जाति या वर्ग के आधार पर ही है आरक्षण
सामाजिक रूप से उपेक्षा या पिछ़़डेपन के शिकार को आरक्षण दिया जाता है। इसका उद्देश्य ऐसे तबके को समाज की मुख्यधारा में लाना है। सवर्ण समुदाय इसमें नहीं आता है। देश में कई जातियों--वर्गो के लोग सामाजिक रूप से भेदभाव, उपेक्षा का शिकार रहे हैं। आरक्षण सामाजिक भेदभाव दूर करने का साधन भर है। ऐसे में संविधान की मूल भावना के खिलाफ जाकर सरकार आर्थिक रूप से पिछ़़डे को आरक्षण कैसे देगी?