भोपाल के आखिरी नवाब की कहानी, गद्दी दिलवाने किंग जॉर्ज को करना पड़ा था हस्तक्षेप
नवाब हमीदुल्लाह पोलो के बहुत अच्छे खिलाड़ी थे। वे दिल्ली कोलकाता और मुंबई में होने वाली प्रतियोगिताओं में अक्सर विजेता रहते थे।
भोपाल, राज्य ब्यूरो। भोपाल रियासत के आखिरी नवाब हमीदुल्लाह खान का पूरा नाम सिकंदर सौलत इफ्तेखार उल मुल्क बहादुर हमीदुल्लाह खान था। उन्होंने अच्छी-खासी तालीम हासिल की थी और कुशल प्रशासक थे। 20 अप्रैल 1926 को उन्होंने गद्दी संभाली थी। सैफिया कॉलेज में इतिहास विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर अशर किदवई के मुताबिक हमीदुल्लाह खान की ताजपोशी के दिन दरबार सदर मंजिल में लगा था। इस मौके पर उनकी मां सुल्तान जहां बेगम ने उन्हें अच्छी तरह से शासन करने की सलाह दी थी। सलाह कुछ यूं थी 'जिस के सर पर ताज शाही रखा जाता है, उसकी सलाहियत महदूद हो जाती है'।
नवाब हमीदुल्लाह खान अलीगढ़ मुस्लिम विवि में पढ़ते हुए खिलाफत मूवमेंट में सक्रिय रहे
उन्होंने वर्तमान के जहांनुमा पैलेस में अतिथियों के लिए एट होम रिसेप्शन दिया था। इसके बाद भोपाल के अलग-अलग हिस्सों को बहुत खूबसूरती से सजाया गया था। भोपाल आर्मी बैंड ने प्रस्तुति दी थी। किदवई बताते हैं कि नवाब हमीदुल्लाह खान अलीगढ़ मुस्लिम विवि में पढ़ते हुए खिलाफत मूवमेंट में सक्रिय रहे। इसके चलते ब्रिटिश सरकार हमीदुल्लाह को नवाब बनाने में अड़चन लगा रही थी।
हमीदुल्लाह को गद्दी दिलवाने किंग जॉर्ज को करना पड़ा था हस्तक्षेप
तत्कालीन शासक सुल्तान जहां बेगम हमीदुल्लाह को नवाब बनाने की पैरवी के लिए भोपाल से इंग्लैड गई। उन्होंने किंग जॉर्ज पंचम के जरिए हमीदुल्लाह को नवाब बनवाया था। हमीदुल्लाह खान 1944 से 1947 तक चांसलर, चैंबर ऑफ प्रिंसेस थे। उन दिनों रजवाड़े भी एक पार्टी थे। तीन पक्ष थे। एक ब्रिटिश सरकार, दूसरा पक्ष राजनीतिक पार्टी और तीसरा पक्ष रजवाड़ों का था। इनके बीच तालमेल बनाने का काम नवाब हमीदुल्लाह ही किया करते थे। इस वजह से वे राजनैतिक रूप से सक्रिय थे।
हमीदुल्लाह 1 जून 1949 तक भोपाल के नवाब रहे
उनकी कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों में अच्छी पैठ थी। वे 1 जून 1949 तक भोपाल के नवाब रहे। उनका जन्म 1894 और निधन 1960 में हुआ था।
किसानी करने वाले पहले नवाब
प्रो. अशर किदवई के मुताबिक हमीदुल्लाह 1944 में पायलट बन गए थे, उनके पास कमर्शियल लाइसेंस था। उनका अपना प्लेन था जो भोपाल से चिकलोद तक उड़ाते थे। चिकलोद कोठी के नाम से पहचाने जाने चिकलोद जमीन को उन्होंने स्वतंत्रता के बाद फार्म हाउस में तब्दील कर दिया। वे पहले ऐसे नवाब थे जिन्होंने किसानी की। वे दूसरे विश्व युद्ध में भी शामिल हुए थे। इसमें वे जर्मनी और इटली के खिलाफ दो मोर्चो पर लड़े थे। नवाब हमीदुल्लाह 1930 से 1935 तक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के चांसलर भी रहे। पोलो के अच्छे खिलाड़ी थे नवाब इतिहासकार पूजा सक्सेना बताती हैं कि नवाब हमीदुल्लाह पोलो के बहुत अच्छे खिलाड़ी थे। वे दिल्ली, कोलकाता और मुंबई में होने वाली प्रतियोगिताओं में अक्सर विजेता रहते थे।