'ये बहुत गंभीर मामला है...', थरूर ने ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना पर सोनिया गांधी का लेख शेयर किया
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने सोनिया गांधी के ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना पर लिखे लेख को साझा करते हुए इसे गंभीर मुद्दा बताया। थरूर ने विकास और रणनीतिक महत्व को स्वीकार किया लेकिन पर्यावरणीय विनाश के बिना समाधान की वकालत की। सोनिया गांधी ने परियोजना को आदिवासी समुदायों के लिए खतरा बताया और जनजातीय अधिकारों की सुरक्षा की वकालत की है।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने सोमवार को कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी के 'एक्स' पर 'ग्रेट निकोबार के समग्र विकास' परियोजना पर लिखे संपादकीय को दोबारा पोस्ट किया और इसे एक गंभीर मुद्दा बताया।
थरूर ने विकास और द्वीप पर एक रणनीतिक आधार होने के महत्व का जिक्र किया, लेकिन जोर देकर कहा कि यह पारिस्थितिक रूप से भी किया जा सकता है।
गंभीरता से पुनर्विचार करने का समय- शशि थरूर
शशि थरूर ने एक्स पर सोनिया गांधी के कॉलम को पोस्ट करते हुए लिखा यह गंभीरता से पुनर्विचार करने का समय है। उन्होंने लिखा, "यह एक गंभीर मुद्दा है। विकास महत्वपूर्ण है और द्वीपों में एक रणनीतिक आधार होना भी उतना ही महत्वपूर्ण है, लेकिन यह सब उस पर्यावरणीय और मानवीय विनाश के बिना किया जा सकता है जिसका सोनिया गांधी ने अपने लेख में बहुत ही खूबसूरती से उल्लेख किया है।"
क्या है ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना?
ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना, ग्रेट निकोबार द्वीप पर भारत सरकार की एक प्रमुख पहल है जिसका उद्देश्य समग्र विकास और रणनीतिक स्थिति बनाना है, जिसमें एक ट्रांसशिपमेंट पोर्ट, एक इंटरनेशनल एयरपोर्ट, एक ऊर्जा संयंत्र और एक टाउनशिप शामिल है।
प्रियंका गांधी ने किया पोस्ट
कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने सोमवार को सोनिया गांधी के कॉलम शेयर किया था, जिसमें निकोबार निवासियों के साथ हो रहे कथित अन्याय और ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना के दुष्प्रभावों पर प्रकाश डाला गया है।
प्रियंका गांधी वाड्रा ने 'X' पर लिखा पर सोनिया गांधी का एक कॉलम पोस्ट करते हुए लिखा, "ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना एक गंभीर दुस्साहस है, जो आदिवासी अधिकारों का हनन करती है और कानूनी व विचार-विमर्श प्रक्रियाओं का मजाक उड़ाती है। जब शोम्पेन और निकोबारी जनजातियों का अस्तित्व ही दांव पर लगा हो, तो हमारी सामूहिक अंतरात्मा चुप नहीं रह सकती और न ही रहनी चाहिए।"
उन्होंने आगे लिखा, "भावी पीढ़ियों के प्रति हमारी प्रतिबद्धता, एक अत्यंत विशिष्ट पारिस्थितिकी तंत्र के इस बड़े पैमाने पर विनाश की अनुमति नहीं दे सकती। हमें न्याय के इस मजाक और हमारे राष्ट्रीय मूल्यों के साथ इस विश्वासघात के विरुद्ध अपनी आवाज उठानी होगी।"
इससे पहले, लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने भी 'X' पर सोनिया गांधी के कॉलम को रीपोस्ट किया था।
राहुल गांधी ने भी किया री-पोस्ट
राहुल गांधी एक्स पर पोस्ट करते हुए कहा, "ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना एक दुस्साहस है, जो आदिवासी अधिकारों का हनन करती है और कानूनी व विचार-विमर्श प्रक्रियाओं का मजाक उड़ाती है।" इस लेख के जरिए, कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी इस परियोजना द्वारा निकोबार के लोगों और उनके नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र पर किए गए अन्याय को उजागर करती हैं। इसे अवश्य पढ़ें।"
सोनिया गांधी ने ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना पर जताई चिंता
अखबार के संपादकीय में, सोनिया गांधी ने चिंता जताई कि यह परियोजना "दुनिया के सबसे अनोखे वनस्पतियों और जीवों के पारिस्थितिकी तंत्रों में से एक को खतरे में डालती है और प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है।"
सोनिया गांधी ने कहा, "72,000 करोड़ रुपये का यह पूरी तरह से गलत खर्च द्वीप के स्वदेशी आदिवासी समुदायों के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा करता है।"
उन्होंने तर्क दिया कि निकोबारी आदिवासियों के पैतृक गांव परियोजना के प्रस्तावित भू-क्षेत्र में आते हैं, और 2004 के हिंद महासागर सुनामी के दौरान उन्हें अपने गांव खाली करने पड़े थे; अब, यह परियोजना इस समुदाय को स्थायी रूप से विस्थापित कर देगी।
सोनिया गांधी ने यह भी तर्क दिया कि शोम्पेन समुदाय के सामने और भी बड़ा खतरा है क्योंकि केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा अधिसूचित द्वीप की शोम्पेन नीति के अनुसार, अधिकारियों को बड़े पैमाने पर विकास प्रस्तावों पर विचार करते समय जनजाति के कल्याण और अखंडता को प्राथमिकता देनी होगी।
उन्होंने आगे कहा, "इसके बजाय, यह परियोजना शोम्पेन जनजातीय अभ्यारण्य के एक बड़े हिस्से को गैर-अधिसूचित करती है, उन वन पारिस्थितिकी तंत्रों को नष्ट करती है जहां शोम्पेन रहते हैं और इससे द्वीप पर लोगों और पर्यटकों की बड़े पैमाने पर आमद होगी।"
कांग्रेस नेता ने आगे कहा कि इस पूरी प्रक्रिया में जनजातीय अधिकारों के संरक्षण के लिए स्थापित संवैधानिक और वैधानिक निकायों को दरकिनार कर दिया गया है।
(समाचार एजेंसी एएनआइ के इनपुट के साथ)
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