शशि थरूर सदन में कांग्रेस की बेंच स्ट्रेंथ हुए बाहर, प्रियंका गांधी, मनीष तिवारी जैसे चेहरों ने अग्रिम पंक्ति के वक्ताओं में बनाई जगह
संसद सत्र में, कांग्रेस में शशि थरूर बेंच स्ट्रेंथ से बाहर हो गए हैं, जबकि प्रियंका गांधी, मनीष तिवारी जैसे नेता उभरे हैं। थरूर की जगह मनीष तिवारी ने ...और पढ़ें

शशि थरूर। (फाइल)
स्मार्ट व्यू- पूरी खबर, कम शब्दों में
संजय मिश्र, नई दिल्ली। लंबे अर्से बाद संसद के किसी सत्र में नजर आया है कि विपक्ष और सत्तापक्ष दोनों ही अपनी-अपनी सियासी झोली में इजाफा मान रहे हैं। सत्तापक्ष जहां जी राम जी और शांति जैसे बिल से लेकर वंदे मातरम पर चर्चा कराने के अपने एजेंड़े को पूरा करने को लेकर गदगद है।
वहीं विपक्षी पार्टियां वंदे मातरम, एसआइआर-चुनाव सुधार से लेकर मनरेगा की जगह लाए जी राम जी पर संसद के जरिए अपने नैरेटिव को जनता के बीच प्रभावी तरीके से पहुंचाने को अपनी कामयाबी मान रही हैं। खासकर लोकसभा में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को सत्र के दौरान इन तमाम मुद्दों पर पार्टी का दृष्टिकोण बेबाकी से रखने वाले नई पीढ़ी के करीब आधा दर्जन सांसदों के प्रदर्शन ने भविष्य की सियासी उम्मीदें दी हैं।
कांग्रेस के सबसे प्रखर वक्ताओं में शामिल वरिष्ठ सांसद शशि थरूर सदन में पार्टी की बेंच स्ट्रेंथ की सूची से फिलहाल बाहर हो गए हैं और मनीष तिवारी साफ तौर पर उन्हें पीछे छोड़ते दिखाई दे रहे हैं। जबकि गौरव गोगोई, दीपेंद्र हुडडा, परिणति शिंदे के साथ अब प्रियंका गांधी वाड्रा लोकसभा में कांग्रेस की मुखर आवाज के नए चेहरे बन गए हैं।
शशि थरूर की क्षमता और प्रतिभा पर पार्टी को कोई संदेह नहीं मगर बीते आठ-नौ महीने के दौरान कांग्रेस की राजनीतिक-वैचारिक सीमा रेखा से परे मोदी सरकार की नीतियों की तरफदारी कर नेतृत्व को असहज किया। इसका ही नतीजा है कि शीत सत्र के दौरान संसद में अहम मुद्दों पर चर्चा के दौरान थरूर को कांग्रेस ने केवल दो मौकों पर सांकेतिक भूमिका तक ही सीमित रखा।
चुनाव सुधार पर चर्चा के बहाने बिहार के बाद 12 राज्यों में हो रहे एसआइआर से लेकर चुनाव आयोग की घेरने के अहम मुद्दे पर कांग्रेस के विमर्श की कमान लोकसभा में इस बार चंडीगढ से सांसद मनीष तिवारी ने संभाली। चुनाव की पारदर्शिता से लेकर चुनाव सुधारों को लेकर कई सटीक सवालों के जरिए बहस की ऐसी टोन सेट की कि अखिलेश यादव और कल्याण बनर्जी से लेकर विपक्षी खेमे के तमाम सांसद अपने भाषणों में मनीष तिवारी के उठाए मुद्दों का हवाला देते नजर आए।
इसी तरह परमाणु ऊर्जा से संबंधित शांति बिल पर भी सदन में कांग्रेस के विरोध की कमान तिवारी ने ही संभाली। जबकि राजनीतिक रूप से संवेदनशील राष्ट्रगीत वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ पर लोकसभा में हुई चर्चा की शुरूआत सदन में पार्टी के उपनेता गौरव गोगोई ने प्रभावी तरीके से की। मगर इस बहस में कांग्रेस के खिलाफ सरकार के नैरेटिव को ध्वस्त करने की कमान प्रियंका गांधी ने केवल संभाली।
गोगोई से लेकर दीपेंद्र हुडडा जैसे सांसदों ने वंदे मातरम पर कांग्रेस का पक्ष मजबूती से रखा मगर इसमें संदेह नहीं कि ने तथ्यों के साथ अपनी वाकपटुता के जरिए प्रियंका गांधी ने सदन में सत्तापक्ष को बैकफुट पर धकेला। मनरेगा की जगह लाए जी राम जी विधेयक पर भी नेता विपक्ष राहुल गांधी की गैरमौजूदगी में मोर्चा संभालने से लेकर हिमाचल प्रदेश की सड़कों की हालत जैसे मुद्दे उठाने में प्रियंका संजीदगी के साथ मुखर दिखीं।
पार्टी की नई पीढ़ी के सांसदों के ऐसे प्रदर्शनों की वजह से ही कांग्रेस को शायद शशि थरूर की प्रखरता की शीत सत्र में कमी महसूस नहीं हुई। हालांकि कांग्रेस ने सियासी चुतराई दिखाते हुए मोदी सरकार के दो अहम एजेंडे शांति बिल तथा जी राम जी बिल की सदन में पेशी का विरोध करने के लिए शशि थरूर को भी मौका देकर भाजपा को यह अवसर नहीं दिया कि वह थरूर को दरकिनार करने का आरोप लगा सके।

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