पीएम मोदी के 'संवाद मैजिक' के कायल हुए कांग्रेसी, अब पार्टी को दे रहे ये सलाह
पीएम के प्रभावी संवाद संप्रेषण के अंदाज को देखते हुए कांग्रेस के तमाम नेता इस राय की हिमायती हैं कि अपनी बात विश्वसनीयता के साथ जनता तक पहुंचाने का वैकल्पिक तरीका ढूंढ़ना ही होगा।
संजय मिश्र, नई दिल्ली। कांग्रेस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संवाद मैजिक का मुकाबला करने की रणनीति पर अब खुली राय जाहिर करने से परहेज नहीं किया जा रहा है। वरिष्ठ नेता जयराम रमेश के बाद पार्टी के दूसरे प्रमुख नेताओं अभिषेक मनु सिंघवी और शशि थरूर सरीखे नेता भी कहने लगे हैं कि केवल नकारात्मक प्रचार से मोदी का कारगर सियासी मुकाबला नहीं किया जा सकता।
पीएम के प्रभावी संवाद संप्रेषण के अंदाज को देखते हुए पार्टी में तमाम नेता इस राय की हिमायती हैं कि अपनी बात विश्वसनीयता के साथ जनता तक पहुंचाने के लिए वैकल्पिक तरीका ढूंढ़ना ही होगा। साथ ही पार्टी को राजनीतिक मुद्दों के साथ संवाद शैली की नई रणनीति पर मंथन कर इसका रास्ता निकालना पड़ेगा।
पीएम मोदी के संवाद की ताकत के साथ उनको खलनायक के रुप में पेश करने से बचने की जयराम रमेश, अभिषेक सिंघवी और शशि थरूर के बयान पर भले पार्टी में बाहरी हलचल हो मगर अंदरूनी तौर पर कांग्रेस में इनकी राय से सहमत होने वाले नेताओं की तादाद काफी है। इन नेताओं की बात से सहमति जाहिर करते हुए पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि वैसे तो लोकसभा चुनाव से पहले ही जनता से 'कनेक्ट' करने की मोदी की क्षमता हमारे लिए चुनौती रही है। मगर अब चुनौती ज्यादा गंभीर इसीलिए है कि कांग्रेस और विपक्ष की तार्किक बातें भी जनता में प्रभाव नहीं बना पा रहीं। वहीं पीएम मोदी की आधी-अधूरी सच्चाई भी लोगों को विश्वसनीय लगती हैं।
...तो इसलिए विपक्ष की आवाज में नहीं है विश्वसनीयता
कांग्रेस के एक पुराने दिग्गज ने कहा कि 'बातों के जादूगर' मोदी के युग में विपक्ष की बात लोगों को विश्वसनीय लगे इसके लिए संप्रेषण का 'एप्रोच' बदलना समय की जरूरत बन गई है। उनका यह भी कहना था कि इस फैक्टर की विपक्षी पार्टियां कब तक अनदेखी कर सकती हैं कि आर्थिक समेत कई मोर्चे पर सरकार के उदासीन प्रदर्शन के बाद भी मोदी के अंदाजे बयां की वजह से सत्ता विरोधी जैसा मानस बनने की सूरत नहीं दिख रही।
संवाद के मैजिक का ऐसा प्रभाव राजनीति के मौजूदा दौर में एक नई स्थिति है। उनके अनुसार ऐसे में विपक्ष खासकर कांग्रेस को इस स्थिति को केवल राजनीतिक ही नहीं मनोविज्ञान, समाजशास्त्र और तर्कशास्त्र की कसौटी पर परखने की जरूरत है। वे कहते हैं कि इस लिहाज से शशि थरूर और सिंघवी की इस राय में दम है कि जब नरेंद्र मोदी कोई अच्छा काम करते हैं तो उसकी तारीफ करने से गुरेज नहीं करना चाहिए ताकि जब हम सरकार की नाकामी को उजागर करें तो विपक्ष की आवाज भी विश्वसनीयता से ली जाए।
मोदी के खिलाफ नकारात्मक प्रहार से कांग्रेस को नुकसान
वैसे दिलचस्प यह है कि मोदी पर नकारात्मक प्रहार का कांग्रेस कई बार राजनीतिक नुकसान राष्ट्रीय राजनीति ही नहीं गुजरात की सियासत में भी उठा चुकी है। सबसे पहले 2007 गुजरात विधानसभा चुनाव में पार्टी की शिकस्त की एक बड़ी वजह नरेंद्र मोदी को 'मौत का सौदागर' बताने की सोनिया गांधी की टिप्पणी रही। इसी तरह 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर की मोदी को चायवाला बताने की टिप्पणी रही।
अय्यर के इस वार को मोदी ने लपकते हुए 'चाय पर चर्चा' का ऐसा जवाबी दांव चला कि अभी तक कांग्रेस को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। दिलचस्प यह है कि एक बार फिर मोदी पर अय्यर की 'नीच' टिप्पणी 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी के लिए भारी पड़ी। कांटे के इस चुनाव में भाजपा बड़ी मुश्किल से जीत दर्ज कर पायी और उसमें मोदी पर अय्यर की टिप्पणी का निर्णायक योगदान रहा। इसी तरह हालिया लोकसभा चुनाव में मोदी पर 'चौकीदार चोर है' का राहुल गांधी के वार का दांव उल्टा पड़ गया। कांग्रेस के कई नेताओं ने खुले तौर पर चुनाव के बाद 'चौकीदार चोर है' नारे का नुकसान होने की बात कही भी।