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किसानों के प्रदर्शन का समर्थन करने वाले शरद पवार ने कृषि मंत्री रहते हुए की थी मुक्त बाजार की वकालत

भले ही राकांपा अध्‍यक्ष शरद पवार कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के प्रदर्शन का समर्थन कर रहे हों लेकिन पूर्व की संयुक्‍त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार में कृषि मंत्री रहते हुए उन्‍होंने कथित तौर पर मुख्यमंत्रियों से उनके राज्यों में एपीएमसी कानून में संशोधन करने को कहा था।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Mon, 07 Dec 2020 12:34 AM (IST)Updated: Mon, 07 Dec 2020 07:01 AM (IST)
किसानों के प्रदर्शन का समर्थन करने वाले शरद पवार ने कृषि मंत्री रहते हुए की थी मुक्त बाजार की वकालत
शरद पवार ने कृषि मंत्री रहते हुए मुख्यमंत्रियों से उनके राज्यों में एपीएमसी कानून में संशोधन करने को कहा था।

नई दिल्ली, जेएनएन। कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों का समर्थन करने वाले राकांपा नेता शरद पवार इसी मसले पर नौ दिसंबर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलने वाले हैं। हैरानी की बात यह है कि संप्रग सरकार में कृषि मंत्री रहते हुए पवार ने मुक्त बाजार की वकालत की थी। इसके लिए कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) कानून में संशोधन के लिए उन्होंने कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र भी लिखा था, ताकि कृषि के क्षेत्र में प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी बढ़े।

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तब की थी बदलाव की बात  

सरकारी सूत्रों ने बताया कि कृषि मंत्री रहते हुए पवार ने एपीएमसी कानून में जिन सुधारों की बात कही थी, मोदी सरकार ने नए कृषि कानूनों में वही बदलाव किए हैं। 2010 में दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को लिखे पत्र में पवार ने कहा था कि ग्रामीण क्षेत्रों में विकास, रोजगार और आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए कृषि क्षेत्र को अच्छी तरह से काम करने वाले बाजारों की आवश्यकता है।

निजी क्षेत्र की भागीदारी को बताया था जरूरी 

एपीएमसी कानून में संशोधन का आह्वान करते हुए मुख्यमंत्रियों को लिखे पत्र में पवार ने कहा था कि कोल्ड चेन समेत बुनियादी बाजार ढांचे में सुधार के लिए भारी निवेश की जरूरत है। इसके लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी आवश्यक है, जिसके लिए उचित नियामक और नीतिगत माहौल बनाना जरूरी है।

बताई थी एपीएमसी कानून में संशोधन की जरूरत 

इसी तरह का पत्र पवार ने मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी लिखा था। उन्होंने कहा था कि मौजूदा एपीएमसी कानून में संशोधन की जरूरत है, ताकि मार्केटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश और विकल्प उपलब्ध कराने में निजी क्षेत्र को बढ़ावा मिले। इससे बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, जो किसानों, उपभोक्ताओं और कृषि व्यापार के लिए फायदेमंद होगा। 

अब क्‍यों कर रहे विरोध 

बता दें कि मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार में पवार कृषि मंत्री के साथ ही जन वितरण, उपभोक्ता मामलों और खाद्य मंत्री भी थे। ऐसे में जब राकांपा ने आठ दिसंबर को भारत बंद के किसानों के आह्वान का समर्थन किया है। सवाल यही उठता है कि आखिर पवार ने जिन कृषि कानूनों की हिमायत की थी अब उसका विरोध क्‍यों कर रहे हैं। 

भाजपा नेता ने किसान संगठनों पर उठाए सवाल

भाजपा महासचिव बीएल संतोष ने कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसान संगठनों पर भी सवाल उठाए हैं। 2008 में एक अंग्रेजी दैनिक में प्रकाशित खबर को ट्वीट करते हुए संतोष ने कहा कि उस समय किसान संगठनों ने गेहूं की खरीद में बड़ी कंपनियों को भाग लेने की छूट देने की मांग की थी। उन्होंने ट्वीट किया कि 2008 में पंजाब और हरियाणा के किसान कृषि मार्केटिंग के क्षेत्र में बड़ी कंपनियों को शामिल होने की अनुमति देने की वकालत कर रहे थे। आज यही किसान संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। ऐसे में इन किसान संगठनों के दोहरे मापदंड को समझा जा सकता है।


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