बदल गया नजरिया: भारत की मिशन शक्ति को दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश ने किया सलाम
अमेरिकी ने एंटी-सेटेलाइट मिसाइल परीक्षण से अंतरिक्ष में मलबा फैलने पर चिंता जताई।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। पूर्व राष्ट्रपति व महान वैज्ञानिक डॉ अब्दुल कलाम ने कहा था, 'तकनीक ही ताकत है।' एक और कथन बहुत प्रचलित है - ताकतवर को सलाम। मिशन शक्ति के बाद दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका ने जिस तरह से प्रतिक्रिया जताई है उससे यह बात पूरी तरह से सच साबित हो रही है। कभी भारत के मिसाइल कार्यक्रम पर प्रतिबंध लगाने की धमकी देने वाले अमेरिका की भाषा बुधवार को भारत के एंटी-सेटेलाइट मिसाइल परीक्षण पर बिल्कुल बदली हुई है। उसने भारत के साथ अंतरिक्ष क्षेत्र में और ज्यादा सहयोग करने की बात कही है।
अमेरिका की तरफ से इस परीक्षण से अंतरिक्ष में मलवा फैलने पर चिंता जरूर जताई है, लेकिन यह रुख वर्ष 1998 में किए गए परमाणु परीक्षण से बिल्कुल अलग है। तब परीक्षण विस्फोट के कुछ ही घंटे बाद प्रतिबंध लगा दिया गया था।
अंतरिक्ष, विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में करते रहेंगे काम
मिशन शक्ति के बारे में पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि, 'भारत की एंटी-सेटेलाइट मिसाइल परीक्षण पर पीएम मोदी के बयान को हमने देखा है। भारत के साथ अपनी मजबूत रणनीतिक सहयोग को जारी रखते हुए अंतरिक्ष, विज्ञान व तकनीकी क्षेत्र में साझा हितों के लिए काम करते रहेंगे ताकि अंतरिक्ष को और ज्यादा सुरक्षित बनाया जा सके।' अमेरिकी प्रवक्ता ने इस परीक्षण से अंतरिक्ष में मलबा फैलने पर चिंता जताई, लेकिन यह भी माना है कि भारत सरकार की तरफ से यह बताया गया है कि परीक्षण इस तरह से किया गया है कि इससे पैदा होने वाले मलबे को कम किया जा सके।
प्रतिबंध नहीं लगा सकता है अमेरिका
जानकारों की मानें तो भारत और अमेरिका के बीच अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग जिस मुकाम पर है उसे देखते हुए अमेरिका भारत पर प्रतिबंध लगाने की सोच भी नहीं सकता। दो हफ्ते पहले ही विदेश सचिव विजय गोखले की वाशिंगटन यात्रा के दौरान भारत अमेरिका अंतरिक्ष वार्ता हुई है। वर्ष 2014 में पीएम नरेंद्र मोदी और तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा के बीच हुई पहली वार्ता में अंतरिक्ष सहयोग सबसे अहम मुद्दों में से एक था। दोनों नेताओं ने हर वर्ष होने वाले अंतरिक्ष सहयोग वार्ता की नींव रखी।
इसरो और नासा के बीच सहयोग कई गुना बढ़ा
सहयोग वार्ता की नींव रखने के बाद से अंतरिक्ष क्षेत्र से जुड़ी भारतीय एजेंसी इसरो और अमेरिकी एजेंसी नासा के बीच सहयोग का स्तर कई गुना बढ़ चुका है। दोनों एजेंसियां संयुक्त तौर पर एक सेटेलाइट भी तैयार कर रही हैं जिसे वर्ष 2021 में प्रक्षेपित की जाने वाली भारत की सबसे महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष मिशन जीएसएलवी के साथ भेजने की योजना है। इस सेटेलाइट को नासा-इसरो सिंथेटिक एपरचर राडार प्रोजेक्ट (निसार) के तहत तैयार किया जा रहा है जिसे वैश्विक पर्यावरण के अध्ययन के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
मंगल ग्रह से आगे के लिए काम करेंगे दोनों देशों के वैज्ञानिक
भारत में अमेरिका के पूर्व राजदूत रिचर्ड वर्मा ने दोनों देशों के बीच अंतरिक्ष सहयोग पर कहा था कि, 'दोनों देशों के वैज्ञानिक मंगल ग्रह के लिए ही नहीं बल्कि उससे आगे के लिए काम करेंगे। दोनों देश साथ-साथ अंतरिक्ष यात्री भेजने से लेकर अपने सोलर सिस्टम से बाहर की दुनिया में अध्ययन करने जैसे नए क्षेत्र में सहयोग स्थापित करेंगे।' अंतरिक्ष से जुड़े कारोबार का आकार 300 अरब डॉलर सालाना का है और अमेरिका भारत के साथ मिल कर इस कारोबार में वर्चस्व स्थापित करने की मंशा रखता है।
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