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    महाराष्ट्र में महायुति को मिला 'छप्परफाड़' जनादेश, सत्ता और स्थिरता के साथ मतदाता; MVA का अपने गढ़ में भी रहा बुरा हाल

    Updated: Sun, 24 Nov 2024 07:45 AM (IST)

    विधानसभा चुनाव में भाजपा को 132 शिवसेना को 57 और राकांपा को 41 सीटें मिली हैं। सहयोगी दलों को छह सीटें मिली हैं। दूसरी ओर महाविकास आघाड़ी में कांग्रेस को 16 शिवसेना (यूबीटी) को 20 और राकांपा (शरदचंद्र पवार) को 10 सीटों से ही संतोष करना पड़ा है। सहयोगी दलों को तीन सीटें मिली हैं। शिवसेना (यूबीटी) 95 सीटों पर चुनाव लड़ी थी लेकिन उसका प्रदर्शन खराब रहा।

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    विधानसभा चुनाव में भाजपा को 132, शिवसेना को 57 और राकांपा को 41 सीटें मिली

    ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ महायुति को छप्परफाड़ जनादेश मिला है। इसकी उम्मीद खुद महायुति के नेता भी नहीं कर रहे थे। 288 सदस्यों वाली विधानसभा में सत्तारूढ़ गठबंधन को 236 सीटें मिली हैं और विपक्षी गठबंधन महाविकास आघाड़ी (मविआ) मात्र 49 सीटों पर सिमट गया। यह महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में किसी पार्टी या गठबंधन को अब तक मिली सर्वाधिक सीटें हैं। इससे पहले 1972 में कांग्रेस को 222 सीटें मिली थीं।

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    उद्धव ठाकरे, शरद पवार और कांग्रेस अपने-अपने मजबूत गढ़ों में भी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि महायुति के तीनों दल मिलकर रविवार को मुख्यमंत्री के नाम का फैसला कर लेंगे।

    महाविकास आघाड़ी से ढाई गुना से ज्यादा सीटें मिली

    विधानसभा चुनाव में भाजपा को 132, शिवसेना को 57 और राकांपा को 41 सीटें मिली हैं। सहयोगी दलों को छह सीटें मिली हैं। दूसरी ओर महाविकास आघाड़ी में कांग्रेस को 16, शिवसेना (यूबीटी) को 20 और राकांपा (शरदचंद्र पवार) को 10 सीटों से ही संतोष करना पड़ा है। सहयोगी दलों को तीन सीटें मिली हैं। शिवसेना (यूबीटी) 95 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, लेकिन उसका प्रदर्शन खराब रहा। भाजपा को अकेले दम पर महाविकास आघाड़ी से ढाई गुना से ज्यादा सीटें मिली हैं।

    आज के परिणामों में भाजपा के साथी दलों शिवसेना और राकांपा को भी चमत्कारिक जीत मिली है। इस बार एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना को 58 सीटें मिली हैं, जबकि 2019 में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना को 56 सीटें ही मिल सकी थीं। शिवसेना का स्ट्राइक रेट इस बार 67.90 प्रतिशत रहा है। इसी प्रकार अजीत पवार के नेतृत्व वाली राकांपा को 41 सीटें मिली हैं। उनका यह प्रदर्शन लोकसभा चुनाव की तुलना में काफी बेहतर रहा है।

    मुख्यमंत्री पद को लेकर भी कोई मतभेद नहीं होगा

    खुद अजित पवार ने बारामती विधानसभा क्षेत्र में अपने सगे भतीजे एवं राकांपा (शरदचंद्र पवार) के उम्मीदवार युगेंद्र पवार को 1,16,182 मतों से हराया है। देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में भाजपा ने लगातार तीसरी बार 100 से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल की है। 2014 में भाजपा ने 122 और 2019 में 105 सीटें जीती थीं। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने मुख्यमंत्री के सरकारी आवास पर दोनों उपमुख्यमंत्रियों देवेंद्र फडणवीस एवं अजित पवार के साथ आकर इस बंपर जीत के लिए जनता का आभार जताया और कहा कि आज का दिन ऐतिहासिक है।

    2019 में जो सरकार बननी चाहिए थी, वह नहीं बन सकी। इसे लोगों ने ध्यान में रखा था और आज उसका उत्तर दे दिया है। यह परिणाम आने के बाद अब हमारी जिम्मदारी और बढ़ गई है। अब हम और मेहनत से काम करके दिखाएंगे। शिंदे ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि जैसे महायुति में सीट बंटवारे में कोई मतभेद नहीं हुआ, वैसे ही मुख्यमंत्री पद को लेकर भी कोई मतभेद नहीं होगा।

    महायुति की जीत के पांच बड़े कारण

    • -लोकसभा चुनाव में अपेक्षित सफलता नहीं मिलने के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने पूरी तरह से कमान संभाली।
    • -मतदाताओं को घर से निकालने के लिए आरएसएस और भाजपा कार्यकर्ताओं ने घर-घर जाकर काम किया।
    • -माझी लाड़की बहिन जैसी योजनाओं से महिलाओं का ¨शदे सरकार के प्रति भरोसा बढ़ा और उन्होंने जमकर मतदान किया।
    • -शिंदे ने मराठा कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल से संपर्क साधा, तो भाजपा ने ओबीसी मतदाताओं को जोड़ने पर ध्यान दिया।
    • -इस बार भाजपा और साथी दलों में सीट समझौता अपेक्षाकृत जल्दी हो गया और आपस में कोई तकरार नहीं सुनाई दी।

    मविआ की हार के पांच बड़े कारण

    • सीट बंटवारे का मुद्दा नामांकन तक सुलझाया नहीं जा सका। कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) कई सीटों को लेकर लड़ती रही।
    • मविआ ने माझी लाड़की बहिन योजना पर सवाल उठाया। बाद में उससे दोगुनी राशि देने का वादा भी कर दिया। भाजपा यह विरोधाभास उजागर करने में सफल रही।
    • राहुल गांधी जातिवार जनगणना की बात करते रहे। लेकिन, मराठों को ओबीसी कोटे में ही आरक्षण पर रुख स्पष्ट नहीं कर सके।
    • लोकसभा चुनाव में मविआ ने भाजपा पर आरक्षण खत्म करने का आरोप लगाया था। इस बार भाजपा ने राहुल गांधी पर ही आरक्षण खत्म करने का आरोप लगाना शुरू कर दिया।
    • मुस्लिम मतदाताओं के बीच उद्धव ठाकरे की बढ़ती लोकप्रियता ने उनके प्रतिबद्ध वोट बैंक को ही उनसे दूर कर दिया।