'बहुजनों के खिलाफ यह साजिश है', केंद्रीय विश्वविद्यालयों में आरक्षण को लेकर राहुल गांधी ने ऐसा क्यों कहा?
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एससी-एसटी और ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षित सीटों पर भर्ती न किए जाने का मुद्दा उठाया है। उन्होंने सरकार के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि एसटी वर्ग के 83% ओबीसी के 80% और एससी वर्ग के 64% प्रोफेसरों के पद जानबूझकर खाली रखे गए हैं।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। जाति राजनीति की तेज हुई कवायद के बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक बार फिर केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एसी-एसटी और ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षित सीटों पर भर्ती नहीं किए जाने का मुद्दा उठाया है।
सरकार के ही आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एसटी वर्ग के 83 प्रतिशत, ओबीसी के 80 फीसद और एससी वर्ग के 64 प्रतिशत प्रोफेसरों के पद जान बूझकर खाली रखे गए हैं।
कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया कि इन वर्गों को भागीदारी से वंचित करने के लिए जान नॉट फाउंड सूटेबल यानि कोई योग्य नहीं पाया गया का सरकार ने तरीका निकाल लिया है।
कांग्रेस के ओबीसी विभाग के भागीदारी सम्मेलन में हिस्सा लेने से पूर्व एक्स पर पोस्ट में लोकसभा में नेता विपक्ष ने कहा कि संसद में मोदी सरकार द्वारा पेश किए गए ये आंकड़े बहुजनों की हकमारी और संस्थागत मनुवाद के पक्के सबूत हैं।
विश्वविद्यालयों में बहुजनों की पर्याप्त भागीदारी नहीं: राहुल गांधी
उन्होंने कहा कि एसोसिएट प्रोफेसर के एसटी के 65, ओबीसी के 69 तथा एससी के 51 प्रतिशत पद भी रिक्त छोड़ दिए गए हैं। ये सिर्फ लापरवाही नहीं बहुजनों को शिक्षा, रिसर्च और नीतियों से बाहर रखने की एक सोची-समझी साजिश है।
राहुल गांधी ने यह दावा भी किया कि विश्वविद्यालयों में बहुजनों की पर्याप्त भागीदारी नहीं होने से वंचित समुदायों की समस्याएं रिसर्च और विमर्श से जानबूझकर गायब कर दी जाती हैं।
नॉट फाउंड सूटेबल के नाम पर हजारों योग्य एसी, एसटी तथा ओबीसी उम्मीदवारों को मनुवादी सोच के तहत अयोग्य घोषित किया जा रहा है और सरकार कोई जवाबदेही लेने को तैयार नहीं। अपने इसी एजेंडे के तहत राहुल गांधी ने अभी कुछ दिनों पहले ही कांग्रेस शासित तीनों राज्यों कर्नाटक, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश को रोहित वेमुला एक्ट बनाने का सुझाव दिया।
तेलंगाना में जातीय जनगणना करवाने के बाद राज्य में आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक करने का विधेयक पारित कराया जिस पर राष्ट्रपति की अभी मंजूरी नहीं मिली है।
इसके बाद राज्य के शहरी निकायों में ओबीसी आरक्षण को बढ़ाने का भी प्रस्ताव पारित किया गया है। वहीं कर्नाटक में जातीय जनगणना की पुरानी रिपोर्ट पर विवाद को देखते हुए इसे नए सिरे से कराए जाने की तैयारी चल रही है।
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