NOTA को खोटा होने से बचाएं, रूस और पाकिस्तान ने हटाया, लेकिन भारत...!
NOTA नोटा बटन दबाने का मतलब है कि मतदाताओं को उनके क्षेत्र से चुनाव में खड़ा कोई उम्मीदवार पसंद नहीं है। साल 2013 में न्यायालय ने देश के मतदाताओं को चुनाव में नोटा का विकल्प देने का निर्णय किया था।
नई दिल्ली, देवेंद्रराज सुथार। हाल में एसोसिएशन आफ डेमोक्रेटिक रिफार्म (एडीआर) की रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया कि पिछले पांच साल (2018 से 2022) में हुए लोकसभा और विधानसभा चुनावों में 1.29 करोड़ से ज्यादा लोगों ने नोटा का बटन दबाया। रिपोर्ट के मुताबिक, लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा नोटा बिहार के गोपालगंज संसदीय क्षेत्र में इस्तेमाल किया गया। वहां 51,660 लोगों ने नोटा का बटन दबाया। सबसे कम 100 नोटा वोट लक्षद्वीप में दर्ज किए गए। विधानसभा चुनावों में औसतन 64.53 लाख वोट नोटा को मिले।
दिल्ली भी नोटा में पीछे नहीं
बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव में 7,49,360 वोट नोटा को मिले, जबकि दिल्ली में 43,108 वोट नोटा को मिले। महाराष्ट्र में 2019 के विधानसभा चुनावों में 7,42,134 वोट नोटा को मिले। सबसे कम 2,917 वोट मिजोरम चुनाव में डाले गए। 2022 के विधानसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में 6,37,304 और पंजाब में 1,10,308 वोट नोटा को मिले।
NATO दबाने का मतलब
नोटा बटन दबाने का मतलब है कि मतदाताओं को उनके क्षेत्र से चुनाव में खड़ा कोई उम्मीदवार पसंद नहीं है। साल 2013 में न्यायालय ने देश के मतदाताओं को चुनाव में नोटा का विकल्प देने का निर्णय किया था। बाद में चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि नोटा के मत गिने तो जाएंगे, पर इसे रद मतों की श्रेणी में रखा जाएगा। भारतीय चुनाव प्रणाली में चुनाव का फैसला केवल योग्य मतों के आधार पर होता है। भले उम्मीदवार को एक ही वोट क्यों न मिला हो।
चुनाव पर नोटा का कोई असर नहीं पड़ता
चुनाव प्रणाली के मुताबिक, नोटा एक अयोग्य मत के रूप में गिना जाता है। इस कारण वह अधिक संख्या में होने के बाद भी बेअसर ही रहता है। यहां तक कि उम्मीदवारों की जमानत जब्त करने के लिए भी नोटा के वोटों को नहीं गिना जाता है। किसी भी उम्मीदवार की जमानत जब्त करने के लिए कुल पड़े योग्य मतों का 1/6 भाग ही गिना जाता है। सवाल है कि जब चुनाव पर नोटा का कोई असर नहीं पड़ता तो इसे लाने का क्या मतलब?
रूस और पाकिस्तान ने हटाया NATO, लेकिन भारत...!
माना जाता है कि लगातार अप्रभावी रहने के कारण रूस ने चुनावों में अपने यहां से 2006 में नोटा का विकल्प हटा दिया। पाकिस्तान ने 2013 के बाद नोटा को हटा दिया। अमेरिका ने भी 2000 में नोटा का विकल्प हटा दिया। अगर भारत में भी समय रहते नोटा को ‘राइट टू रिजेक्ट’ के रूप में प्रभावकारी नहीं बनाया गया तो यहां भी यह अपनी प्रासंगिकता खो देगा। जाहिर है चुनाव मतदाता इच्छा पर आधारित प्रतिनिधि चुनने की व्यवस्था का प्रविधान करता है। जनता की नजर में समस्त अयोग्य उम्मीदवारों में से चुनाव थोपा गया चुनाव होता है, जो कि आदर्श चुनाव की प्रकृति के विरुद्ध होता है। इसलिए आज आवश्यकता नोटा को खोटा होने से बचाने के साथ ही इसके प्रयोग को लेकर विस्तृत दिशा-निर्देश तय किए जाने की है। यदि किसी चुनाव में नोटा को बहुमत मिलता है तो चुनाव रद किया जाना चाहिए।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)