Presidential Election: राष्ट्रपति उम्मीदवार तय करना विपक्ष के लिए बना चुनौती, अब आसान नहीं दमदार चेहरे की तलाश, जानें वजह
कई क्षेत्रीय दल किसी कांग्रेस नेता को राष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनाव में उम्मीदवार बनाने के पक्ष में नहीं हैं लेकिन उनके पास भी कोई ठोस नाम नहीं है। विपक्षी दलों की उम्मीदवार तय करने को लेकर दूसरी बैठक मंगलवार को होनी है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। राष्ट्रपति चुनाव में सत्ताधारी एनडीए को टक्कर देने के लिए विपक्षी दल सहमत जरूर हो गए हैं, मगर मजबूत राजनीतिक संदेश देने वाला उम्मीदवार तलाश करना उनके लिए बड़ी चुनौती बन गई है। राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार तय करने के लिए विपक्षी दलों की मंगलवार को बुलाई गई बैठक से ठीक पहले गोपालकृष्ण गांधी ने विपक्ष का साझा प्रत्याशी बनने से इन्कार कर इस सियासी चुनौती को और बढ़ा दिया है।
तीनों नामों ने वापस लिए नाम
बंगाल के पूर्व राज्यपाल गोपालकृष्ण गांधी की मनाही के साथ ही राष्ट्रपति पद के लिए विपक्षी खेमे से सामने आए तीनों नामों ने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं। राकांपा प्रमुख शरद पवार और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने सक्रिय राजनीति में रहने का हवाला देते हुए पहले ही विपक्ष का संयुक्त उम्मीदवार बनने से इन्कार कर दिया था।
आम सहमति बनाने की मशक्कत
राष्ट्रपति चुनाव को 2024 के आम चुनाव के लिहाज से विपक्षी दलों की एकजुटता की पहली कड़ी बनाने की कोशिशों के बीच इन तीनों के अपने कदम पीछे खींचने के बाद शीर्ष विपक्षी नेता नए नामों की तलाश के साथ उन पर सहमति बनाने की मशक्कत में जुट गए हैं। राकांपा नेता शरद पवार ने इस सिलसिले में सोमवार को कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और माकपा नेता सीताराम येचुरी समेत विपक्षी खेमे के कई नेताओं से सलाह-मशविरा किया।
सूत्रधार की भूमिका निभाएंगे पवार
राष्ट्रपति उम्मीदवार तय करने के लिए विपक्षी दलों की दूसरी बैठक मंगलवार को होनी है और यह बैठक भी पवार की ओर से ही बुलाई गई है। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पहल पर 15 जून को विपक्षी दलों की इस मुद्दे पर पहली बैठक हुई जिसमें कांग्रेस समेत कई दलों ने दीदी की सरपरस्ती को लेकर असहजता जाहिर की थी और इसमें ही तय हो गया था कि अब विपक्षी उम्मीदवार का फैसला करने के लिए होने सियासी पहल में पवार सूत्रधार की भूमिका निभाएंगे।
बेहतर विकल्प थे गोपालकृष्ण गांधी
लेकिन पवार की बैठक से एक दिन पहले ही महात्मा गांधी के पौत्र गोपालकृष्ण गांधी ने बयान जारी कर उम्मीदवारी की रेस से खुद को अलग कर लिया। इसमें कोई संदेह नहीं है कि नाम और व्यक्तित्व ही नहीं विपक्षी दलों के बीच आपसी सहमति के लिहाज से भी गोपालकृष्ण गांधी विपक्ष के लिए उम्मीदवार का एक बेहतर विकल्प थे। लेकिन उनकी गैर राजनीतिक छवि 2024 के लिए विपक्ष की तरफ से कोई बड़ा संदेश नहीं दे पाती।
आसान नहीं है ऐसे चेहरे की तलाश जो...
शिवसेना इसीलिए उनके नाम पर सहमत भी नहीं थी और पार्टी ने कहा भी था कि उम्मीदवार ऐसा होना चाहिए, जिसके जरिये विपक्ष राजनीतिक संदेश दे सके। शरद पवार विपक्ष की राजनीतिक जरूरतों के हिसाब से सबसे फिट बैठते हैं। मगर राष्ट्रपति चुनाव का मुकाबला करीबी होने के बावजूद सत्तापक्ष के साथ बेहतर समीकरण को भांपते हुए उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया था।
फारुख अब्दुल्ला भी वापस ले चुके हैं अपना नाम
फारूक अब्दुल्ला का नाम ममता बनर्जी ने प्रस्तावित जरूर किया था, मगर विपक्षी खेमे के कई दल इसको लेकर उत्साहित नहीं थे। विपक्ष के कुछ प्रमुख नेताओं के अनुसार, फारूक अपना नाम वापस नहीं लेते तो भी उनके खिलाफ चल रहे कई मुकदमों और मौजूदा सियासी वजहों से उनके नाम पर सहमति की संभावना कम ही थी।
टीएमसी ने यशवंत सिन्हा का नाम सुझाया
इस बीच, तृणमूल कांग्रेस की ओर से यशवंत सिन्हा का नाम सुझाया गया है। यशवंत सिन्हा तृणमूल के उपाध्यक्ष भी हैं। विपक्ष के पास ज्यादा विकल्प नहीं होने से पूर्व केंद्रीय मंत्री के नाम पर विचार हो रहा है।
गैर कांग्रेसी चेहरे की तलाश
विपक्षी खेमे की दुविधा यह है कि ममता बनर्जी समेत कुछ क्षेत्रीय दलों के नेता कांग्रेस के किसी बड़े चेहरे को उम्मीदवार बनाने को लेकर उत्साहित नहीं हैं। आम आदमी पार्टी और तेलंगाना राष्ट्र समिति जैसे दल भी गैर कांग्रेसी चेहरे को उम्मीदवार बनाने के पक्ष में बताए जाते हैं।
ईडी के फेर में उलझी कांग्रेस
मगर दिलचस्प यह भी है कि क्षेत्रीय दलों की ओर से 2024 का राजनीतिक संदेश देने वाला कोई चेहरा अभी तक सामने नहीं आया है। वहीं अब तक विपक्षी दलों की अगुआई करती रही कांग्रेस अब तक राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ और सोनिया गांधी की सेहत की चुनौतियों में ही उलझी हुई है और ऐसे में मंगलवार को विपक्षी दलों की बैठक में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए सहमति बनाना आसान नहीं होगा।