अपनी बेहतरी के लिए नेपाल को चीन से दूर रखना होगा जरूरी
नेपाल को अगले चार वर्षो में चीन से दूर रखने में भारत कितना कामयाब होगा यह तो समय ही बताएगा।
[अनंत मित्तल]। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पिछले हफ्ते की नेपाल यात्रा को तीर्थ यात्रा माना जाए अथवा सद्भावना यात्रा ? नेपाल में अपने हावभाव, कार्यक्रमों और बयानों से तो सवा अरब लोगों के सरबरा ने इन्हीं दोनों लक्ष्यों को इंगित किया है। जनकपुर के सीता मंदिर से अपनी यात्रा शुरू करके उन्होंने पशुपतिनाथ और मुक्तिनाथ मंदिरों की भी परिक्रमा की और राजधानी काठमांडू सहित दो सार्वजनिक अभिनंदन कार्यक्रमों में भी भाग लिया। यह बात दीगर है कि मंदिर के गर्भगृह में उनके जाने और उसका सीधा प्रसारण होने का स्थानीय स्तर पर विरोध हुआ, क्योंकि उसकी किसी को भी अनुमति नहीं है।
विधि-विधान से विशेष पूजा-अर्चना
उन्होंने जनकपुर धाम में भी विधि-विधान से विशेष पूजा-अर्चना की। जनकपुर में पीएम को देखने के लिए भारी भीड़ उमड़ी। नेपाल में चीन के बढ़ते प्रभाव के बीच पुराने जख्मों को भरने और भरोसा बढ़ाने के लिहाज से मोदी का यह दौरा महत्वपूर्ण रहा। अपने कार्यक्रमों में उन्होंने भारत और नेपाल के बीच सांस्कृतिक, जातीय, धार्मिक और आर्थिक रिश्तों में लगभग गर्भनाल का संबंध होने की दुहाई दी। पीएम मोदी ने कहा कि उनकी नेपाल यात्रा ‘पड़ोस पहले’ की उनकी सरकारी नीति का प्रतीक है। उनके अनुसार यह दौरा नेपाल के साथ भारत के सदियों पुराने, करीबी और मैत्रीपूर्ण संबंधों को भारत और खासतौर पर उनकी तरफ से दिए जाने वाले महत्व को दर्शाता है। उन्होंने नेपाल को भरोसा दिलाया कि भारत सुख-दुख में उसका पक्का साथी बना रहेगा।
पीएम मोदी की तीसरी नेपाल यात्रा ा
मोदी की प्रधानमंत्री के रूप में यह तीसरी नेपाल यात्रा थी। मोदी ने कहा कि भारत समृद्ध नेपाल-सुखी नेपाल की स्थापना में उसके साथ है। ऐसा करके उन्होंने अपने इस छोटे, मगर सामरिक रूप में महत्वपूर्ण पड़ोसी को दुलराने और आगे के लिए हमारे चिर प्रतिद्वंद्वी चीन की पसरती परछाईं से दूर रखने की बिसात बिछाने की कोशिश की। यह बात दीगर है कि ओली सरकार नेपाल की सबसे मजबूत लोकतांत्रिक सरकार होने के बावजूद वामपंथी रूझान वाली है। इसलिए नेपाल को अगले चार साल में चीन से दूर रखने में भारत कितना कामयाब होगा यह समय ही बताएगा। मोदी ने वहां यह नारा उछाल कर खूब वाहवाही पाई कि नेपाल के बिना भारत के राम भी अधूरे और धाम भी अधूरे। उन्होंने नेपाल के प्रधानमंत्री खड़्ग प्रसाद शर्मा ओली के साथ पनबिजली परियोजना अरुण-3 का शिलान्यास भी किया। इसकी अनुमानित लागत 60 अरब भारतीय रुपये है। इसके पूरा होने पर 900 मेगावाट पनबिजली पैदा होगी जिसमें भारत भी हिस्सेदार होगा।
रक्सौल से काठमांडू तक रेलवे लाइन
उन्होंने भारत में बिहार के रक्सौल से नेपाल की राजधानी काठमांडू तक रेलवे लाइन बिछाने की परियोजना और भारत के आकाश में नेपाली विमानों को अधिक संख्या में आवाजाही की अनुमति देने की घोषणा भी दोहराई। रेल परियोजना की घोषणा ओली की पिछले महीने हुई भारत यात्रा के दौरान की गई थी। महाकाली परियोजना की विस्तृत रपट पर काम बढ़ाने का वायदा भी मोदी ने किया। उससे संबद्ध समझौते पर 1996 में दोनों देशों ने दस्तखत किए थे। इसके माध्यम से उन्होंने नेपाल द्वारा महत्वपूर्ण समझी जाने वाली परियोजनाओं के प्रति भारत की गंभीरता का इजहार किया।
नेपाल से संबंध सुधारने की कोशिश
अपने दो दिन के दौरे में मोदी ने नेपाल से संबंध सुधारने की भरपूर कोशिश की। उसके बावजूद जनकपुर में उनके सार्वजनिक अभिनंदन कार्यक्रम में 2015 में मधेसियों के आंदोलन के दौरान पांच महीने तक नेपाल सीमा जाम रहने की याद दिलाने वाले कुछ पोस्टर जब्त किए गए। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में उस विवाद पर यह कह कर मिट्टी डालने की कोशिश की कि लोग तो आते-जाते रहते हैं, मगर भारत-नेपाल संबंधों की बुनियाद प्रगाढ़ बनी रहनी चाहिए। मोदी के प्रति नेपालियों के मन में घुमड़ रहे विरोध को दबाने के लिए वरिष्ठ विद्रोही कम्युनिस्ट नेता सी पी गजुरेल को ओली सरकार ने नजरबंद भी करके रखा।
ओली ने दिया मोदी का पूरा साथ
मोदी के संबंध सुधार दौरे को सफल करने में प्रधानमंत्री और कम्युनिस्ट नेता ओली ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। नेपाल सीमा जाम आंदोलन से विचलित होकर कभी चीन शरणम् गच्छामि होने वाले प्रधानमंत्री ओली ने मोदी का पूरा साथ दिया। मोदी ने भी नेपाल में पक्ष-विपक्ष के सभी प्रमुख राजनेताओं से मिलकर नेपाल के मामले में भारत की गंभीरता का उन्हें अहसास कराया। नेपाल में चीन के बढ़ते प्रभाव के कारण भारत वहां नई रणनीति के तहत अपने प्रति भरोसा पैदा करना चाहता है जिसे सीमा जाम के दौरान जबर्दस्त ठेस लगी थी। जनकपुर मधेसी बहुल इलाका है। नेपाल के सात प्रांतों में जनकपुर प्रांत नंबर दो पर है। इस प्रांत का मुख्यमंत्री मधेसी पार्टी का है। मधेसी पार्टियों की निगाह में ओली की नीतियां उनके अनुकूल नहीं हैं। इस इलाके में भाजपा के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का भी अच्छा-खासा असर है।
...तो भारत का स्वागत करेगा नेपाल
मोदी की यात्रा के दौरान नेपाल में भी अपने नजरिये से भारत को देखने की कोशिश की गई। वहां के अखबारों के रुख से यह साफ दिखा कि भारत यदि नेपाल को गंभीरता से लेगा तो वह भी भारत का स्वागत करेगा। वैसे नेपाल में कई बड़ी परियोजनाओं पर चीन काम कर रहा है। भारत ने भी अनेक परियोजनाओं की हामी भर रखी है, मगर क्या चीन की तरह हम भी मोटी रकम के निवेश के साथ ही तय समय में उन्हें पूरा कर सकेंगे? तीन ओर पहाड़ों से घिरे होने के कारण उसके पास धरती का मार्ग भारतीय सीमा से ही है। उसकी समुद्री परिवहन संबंधी जरूरतें कोलकाता के बंदरगाह के जरिये पूरी होती हैं। इसीलिए काठमांडू-रक्सौल रेलमार्ग पर नेपाल तेजी से काम शुरू कराना चाहता है। उसे खेती-बाड़ी में भारत की मदद चाहिए ताकि उसके खेतों की उत्पादकता बढ़े और भारत से खाद्यान्न आयात पर खर्च हो रहे सालाना 200 अरब रुपये में कुछ बचत हो पाए। कुल मिलाकर देखना यही है कि सांस्कृतिक और धार्मिक संबंधों की थाती के बूते क्या आधुनिक जरूरतपरस्त युग में कूटनीतिक स्थिरता हासिल की जा सकती है? वह भी तब, जब जबर्दस्त जनमत के सहारे सत्तारूढ़ हुए नेपाल के शासक घोर वामपंथी हैं और उनके कंधों पर वामपंथ के गढ़ चीन का मजबूत हाथ है।
[लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं]
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