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    'घुसपैठिए अब बर्दाश्त नहीं..', TMC पर बंगाल की डेमोग्राफी बदलने का आरोप; क्‍या है केंद्र का रुख?

    कोलकाता में पीएम मोदी ने तृणमूल कांग्रेस को घुसपैठ को बढ़ावा देने को लेकर घेरा। उन्होंने कहा कि बंगाल में डेमोग्राफी बदल रही है और घुसपैठियों को देश से बाहर निकालना जरूरी है। केंद्र सरकार के सामने घुसपैठियों के खिलाफ कार्रवाई में कई बाधाएं हैं। ममता बनर्जी की सरकार पर...

    By Jagran News Edited By: Deepti Mishra Updated: Tue, 26 Aug 2025 05:23 PM (IST)
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    घुसपैठियों पर कार्रवाई की राह में कई रोड़े। पीएम मोदी का फाइल फोटो

    जयकृष्ण वाजपेयी, कोलकाता ब्यूरो। तृणमूल कांग्रेस अपनी ‘सत्ता की भूख’ मिटाने के लिए घुसपैठ को बढ़ावा दे रही है। यह देश अब घुसपैठियों को बर्दाश्त नहीं कर सकता। हम उन्हें भारत में रहने नहीं देंगे। यह सुनिश्चित करने के लिए कि घुसपैठिये बंगाल और देश छोड़कर चले जाएं, तृणमूल सरकार को जाना होगा। केवल आपका वोट ही घुसपैठियों को देश से बाहर खदेड़ना सुनिश्चित कर सकता है। ये लोग बंगाल की डेमोग्राफी (जनसांख्यिकी) बदल रहे हैं।

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    मुझे आश्चर्य है कि तृणमूल और कांग्रेस समेत कुछ राजनीतिक दल तुष्टीकरण की राजनीति के आगे झुक गए हैं। सत्ता की भूख में ये दल घुसपैठ को बढ़ावा दे रहे हैं। उपरोक्त बातें कोलकाता में बीते शुक्रवार को एक रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कही थी।

    अब सवाल यह है कि क्या बंगाल में घुसपैठियों के खिलाफ कार्रवाई और घुसपैठ रोकने की राह आसान है? देश के अन्य राज्यों में घुसपैठियों पर हो रही कार्रवाई को बांग्लाभाषियों के खिलाफ उत्पीड़न बताकर जिस तरह की राजनीति हो रही है, यह भी एक गंभीर मुद्दा है।

    घुसपैठियों पर केंद्र का क्या रुख?

    केंद्र सरकार के सामने बंगाल में घुसपैठियों के खिलाफ कार्रवाई की राह में कई रोड़े हैं, जिन्हें हटाकर ही इस गंभीर समस्या से निपटना संभव हो सकेगा। जिस तरह से सीमावर्ती इलाकों में डेमोग्राफी बदली जा रही है, वह बंगाल में सामाजिक संकट पैदा कर रहा है।

    खासतौर पर किसानों से धोखाधड़ी करके उनकी जमीन पर कब्जा किया जा रहा है। आदिवासियों को गुमराह करके उनकी जमीन हड़पी जा रही है। देश यह सहन नहीं कर सकता। इसे रोकना ही होगा, इसलिए इस बार लाल किले से मैंने घुसपैठ के खिलाफ विशेष डेमोग्राफी मिशन की घोषणा की है।

    पीएम मोदी ने जो बातें कही हैं, इसमें उनकी चिंता झलक रही है, लेकिन तृणमूल कांग्रेस के नेता घुसपैठ को केंद्रीय गृह मंत्रालय की नाकामी बताकर केंद्र सरकार को जिस तरह से कठघरे में खड़ा करने की कोशिश में हैं, वह यह बताने को काफी है कि इस मुद्दे पर उनका सोच क्या है।

    इस समय राज्य में तृणमूल की ओर से भाषा आंदोलन चलाया जा रहा है। यह आंदोलन कथित तौर पर भाजपा शासित राज्यों में बांग्लाभाषियों को उत्पीड़ित किए जाने के खिलाफ है। दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र व ओडिशा जैसे राज्यों में बांग्लादेशी, रोहिंग्या घुसपैठियों के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है।

    उसमें पकड़े गए कुछ बंगाल के प्रवासी श्रमिक भी थे, जिन्हें बांग्लादेश भेज दिया गया था। उसे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बंगाल के बांग्लाभाषियों का उत्पीड़न व अपमान बताकर बंगाली अस्मिता का कार्ड खेलना शुरू कर दिया है।

    इन परिस्थितियों में बंगाल में घुसपैठियों के खिलाफ कार्रवाई कैसे शुरू हो सकेगी? अभी मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण की बात शुरू हुई ही है तो तृणमूल समेत कांग्रेस व वामपंथी दल विरोध में खड़े हो गए हैं। घुसपैठियों से निपटने के साथ-साथ केंद्र सरकार को बंगाल में घुसपैठ रोकने के लिए भी पुख्ता प्रबंध करने होंगे।

    बांग्लादेश से कितने किमी सीमा सटी है?

    बंगाल से सटी बांग्लादेश की 569 किमी सीमा ऐसी है, जहां फेंसिंग (बाड़) नहीं लग सकी है। बंगाल में बांग्लादेश से लगी कितनी सीमा पर फेंसिंग नहीं हुई है, इसकी वजह क्या है, पिछले तीन वर्षों में कितने घुसपैठिए पकड़े गए हैं, इन सवालों पर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने जवाब दिया था कि बंगाल से लगती बांग्लादेश की सीमा की कुल लंबाई 2216 किमी है, जिसमें से 1648 किमी पर फेंसिंग हो चुकी है।

    बाकी 569 किमी में फेंसिंग नहीं हुई है। इसमें भी 112 किमी सीमा ऐसी है, जहां पर नदी-नाले व जंगल हैं। वहां बाड़ लगाना संभव नहीं है। अब तक पूरी तरह से बांग्लादेश सीमा पर फेंसिंग क्यों नहीं हो सकी है? इसकी मुख्य वजह केंद्र की ओर से राज्य सरकार द्वारा समय पर जमीन का बंदोबस्त नहीं करना बताया जा रहा है। अब जमीन मिलने की बात कही जा रही है।

    केंद्रीय गृह मंत्रालय के मुताबिक,  बांग्लादेश से 2023 में 1,547, 2024 में 1,694 और 2025 में अब तक 723 लोग घुसपैठ करते पकड़े गए हैं। ये आंकड़े बता रहे हैं कि घुसपैठ कितनी बड़ी समस्या है। ऐसी ही स्थिति रही तो बंगाल में मौजूद घुसपैठियों पर कार्रवाई करना कितना मुश्किल है, यह समझा जा सकता है।

    एक तरफ राज्य सरकार की ओर से घुसपैठियों के खिलाफ कार्रवाई में सहयोग नहीं मिलने के पूरे-पूरे आसार हैं क्योंकि पहले वामपंथी दलों पर घुसपैठियों का वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करने का आरोप खुद ममता सड़क से संसद तक में लगाती थीं, लेकिन 2011 में सत्ता में आने के बाद अब उनपर ही इन घुसपैठियों को प्रश्रय देने का आरोप लग रहा है।

    इसकी वजह भी है। जिस तरह से ममता संशोधित नागरिकता कानून (सीएए), संशोधित वक्फ कानून और अब मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआइआर) को राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) से जोड़कर मुखर हो रही हैं, यह काफी कुछ बता रहा है।

    केंद्र को बंगाल से घुसपैठियों को बाहर निकालने के लिए सबसे पहले ममता की नेतृत्व वाली तृणमूल और उनकी सरकार से लड़ना होगा, इसके बाद वामपंथी और कांग्रेस भी हैं।

    इसके अलावा घुसपैठियों के हिमायती कुछ गैर-राजनीतिक संगठन, बुद्धिजीवी और जिहादी तत्व भी हैं। साथ ही बिना बाड़ वाली सीमा भी है इसलिए घुसपैठ, घुसपैठियों और डेमोग्राफी में बदलाव के खिलाफ एक साथ फूल प्रूफ निर्णायक कार्रवाई करनी होगी।