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आरक्षण मुद्दे पर भागवत के बयान पर विपक्ष का तीखा हमला, सियासत शुरू

भागवत ने कहा कि जो आरक्षण के पक्ष में हैं और जो इसके खिलाफ हैं उन लोगों के बीच इस पर सौहार्दपूर्ण माहौल में बातचीत होनी चाहिए। विपक्ष ने संघ के साथ भाजपा पर भी तीखा हमला बोला है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Mon, 19 Aug 2019 05:47 PM (IST)Updated: Mon, 19 Aug 2019 11:23 PM (IST)
आरक्षण मुद्दे पर भागवत के बयान पर विपक्ष का तीखा हमला, सियासत शुरू
आरक्षण मुद्दे पर भागवत के बयान पर विपक्ष का तीखा हमला, सियासत शुरू

नई दिल्ली, प्रेट्र। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि जो आरक्षण के पक्ष में हैं और जो इसके खिलाफ हैं उन लोगों के बीच इस पर सौहार्दपूर्ण माहौल में बातचीत होनी चाहिए। भागवत ने कहा कि उन्होंने पहले भी आरक्षण पर बात की थी, लेकिन इससे काफी हंगामा मचा और पूरी चर्चा वास्तविक मुद्दे से भटक गई।

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भागवत के इस बयान को लेकर विपक्ष ने आरएसएस के साथ भाजपा पर भी तीखा हमला बोला है। एक तरफ जहां कांग्रेस ने इसे दलितों और पिछड़ों का आरक्षण खत्म करने का एजेंडा बताया, वहीं बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहा कि आरक्षण मानवतावादी संवैधानिक व्यवस्था है जिससे छेड़छाड़ अनुचित और अन्याय है। मायावती ने दो टूक कहा कि आरएसएस को अपनी आरक्षण विरोधी मानसिकता त्याग देनी चाहिए।

 जानिए- क्या कहा भागवत ने
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि आरक्षण का पक्ष लेने वालों को उन लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए बोलना चाहिए जो इसके खिलाफ हैं और इसी तरह से इसका विरोध करने वालों को इसका समर्थन करने वालों के हितों को ध्यान में रखते हुए बोलना चाहिए। उन्होंने कहा कि आरक्षण पर चर्चा हर बार तीखी हो जाती है, जबकि इस दृष्टिकोण पर समाज के विभिन्न वर्गों में सामंजस्य जरूरी है। भागवत 'ज्ञान उत्सव' के समापन सत्र में बोल रहे थे जो प्रतियोगी परीक्षाओं पर था।

आरएसएस ने स्थिति स्पष्ट की
वहीं खुद आरएसएस को आगे आकर स्थिति स्पष्ट करनी पड़ी। आरएसएस का कहना है कि सरसंघचालक के बयान पर अनावश्यक विवाद खड़ा करने का प्रयास किया जा रहा है। दरअसल भागवत के बयान पर विवाद तब बढ़ गया, जब बीएसपी सुप्रीमो और कांग्रेस ने इसे लेकर भाजपा पर निशाना साधा।

आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख अरुण कुमार ने कहा कि सरसंघचालक मोहन भागवत के दिल्ली में एक कार्यक्रम में दिए गए भाषण के एक भाग पर अनावश्यक विवाद खड़ा करने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने ट्विटर पर जारी बयान में कहा, 'समाज में सदभावना पूर्वक परस्पर बातचीत के आधार पर सब प्रश्नों के समाधान का महत्व बताते हुए आरक्षण जैसे संवेदनशील विषय पर विचार व्यक्त करने का आह्वान किया था।' अरुण कुमार ने कहा कि जहां तक संघ का आरक्षण के विषय पर मत है, वह अनेक बार स्पष्ट किया जा चुका है कि अनुसूचित जाति, जनजाति, ओबीसी और आर्थिक आधार पर पिछड़ों के आरक्षण का संघ पूर्ण समर्थन करता है।

मायावती ने कहा, मानसिकता बदलें 
आरएसएस पर निशाना साधते हुए मायावती ने ट्वीट में लिखा कि आरएसएस का एससी,एसटी, ओबीसी आरक्षण के सम्बंध में यह कहना कि इस पर खुले दिल से बहस होनी चाहिए, संदेह की घातक स्थिति पैदा करता है, जिसकी कोई जरूरत नहीं है। आरक्षण मानवतावादी संवैधानिक व्यवस्था है जिससे छेड़छाड़ अनुचित व अन्याय है। संघ अपनी आरक्षण-विरोधी मानसिकता त्याग दे तो बेहतर है।' 

कांग्रेस ने भी बोला हमला 
उधर, कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि गरीबों के अधिकारों पर हमला, संविधान सम्मत अधिकारों को कुचलना, दलितों-पिछड़ों के अधिकार को ले लेना, यही भाजपा का अजेंडा है। उन्होंने यह भी कहा कि इस बयान से आरएसएस और भाजपा का दलित-पिछड़ा विरोधी चेहरा उजागर हुआ है। सुरजेवाला ने कहा कि इससे गरीबों के आरक्षण को ख़त्म करने का षड्यंत्र और संविधान बदलने की उनकी अगली नीति बेनकाब हुई है। 

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले भी आया था भागवत का बयान
गौरतलब है कि बिहार विधानसभा चुनाव से पहले भी संघ प्रमुख ने आरक्षण नीति की समीक्षा करने की वकालत की थी, जिस पर कई दलों और जाति समूहों की ओर से तीखी प्रतिक्रिया आई थी। भागवत ने कहा कि आरएसएस, भाजपा और पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार तीन अलग-अलग इकाइयां हैं और किसी को दूसरे के कार्यों के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।

सरकार हो सकती है आरएसएस की बात से असहमत
नरेंद्र मोदी सरकार पर आरएसएस के प्रभाव की धारणा के बारे में बात करते हुए भागवत ने कहा कि चूंकि भाजपा और इस सरकार में संघ कार्यकर्ता हैं, वे आरएसएस को सुनेंगे, लेकिन उनके लिए हमारे साथ सहमत होना जरूरी नहीं है। वे असहमत भी हो सकते हैं।' उन्होंने कहा कि चूंकि भाजपा सरकार में है, उसे व्यापक आधार पर देखना होगा और वह आरएसएस की बात से असहमत हो सकती है। उन्होंने कहा कि एक बार पार्टी के सत्ता में आने के बाद उसके लिए सरकार और राष्ट्रीय हित प्राथमिकता बन जाते हैं। ज्ञान उत्सव का आयोजन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा यहां इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्र्वविद्यालय (इग्नू) में किया गया था।

आरक्षण पर भागवत के बयान पर बरसी कांग्रेस बनाएगी सियासी मुद्दा
कांग्रेस ने आरक्षण पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के बयान को आरक्षण की व्यवस्था खत्म करने की संघ-भाजपा की सोच का हिस्सा करार दिया है। संघ-भाजपा को दलित-आदिवासी और ओबीसी आरक्षण का विरोधी बताते हुए कांग्रेस ने तीन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में बड़े मुद्दे के रुप में उछालने का फैसला किया है। इसी रणनीति के तहत आरक्षण पर मोहन भागवत के ताजा बयान पर सियासी हमला करने के लिए कांग्रेस ने दो दलित नेताओं पीएल पुनिया और उदित राज को मैदान में उतारा।

राजनीतिक झंझावतों से जूझ रही कांग्रेस के लिए हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड के अक्टूबर-नवंबर में होने वाले चुनाव बेहद चुनौतीपूर्ण हैं। इस लिहाज से आरक्षण पर भाजपा की घेरेबंदी की कोशिश पार्टी के लिए मौजूदा हालत में ज्यादा कारगर साबित हो सकती है। खासकर यह देखते हुए कि बिहार विधानसभा के पिछले चुनाव से ठीक पहले भागवत के आरक्षण की समीक्षा संबंधी बयान का सियासी नतीजा भाजपा के लिए ठीक नहीं रहा था। इसीलिए बिना देर किए कांग्रेस ने पुनिया और उदित राज के जरिए संघ-भाजपा पर जमकर हमला बोला।

पुनिया ने कांग्रेस की ओर से आधिकारिक प्रेस कांफ्रेंस में भागवत के बयान की निंदा की और कहा कि संघ-भाजपा शुरू से एससी-एसटी और ओबीसी आरक्षण के खिलाफ रहे हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा जब भी केंद्र की सत्ता में रही है तब आरक्षण पर सवाल उठाते हुए इसे खत्म करने के प्रयास हुए मगर अभी तक इसमें कामयाबी नहीं मिली। वाजपेयी सरकार में संविधान समीक्षा आयोग बनाने का उदाहरण देते हुए पुनिया ने कहा कि मनुस्मृति भाजपा-संघ के संविधान का आदर्श है और बाबा साहब अंबेडकर के सामाजिक-आर्थिक बराबरी के वे शुरू से विरोधी रहे हैं।

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