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    दिल्ली चुनाव में बंटा इंडी गठबंधन, अखिलेश-ममता ने चला बड़ा दांव; AAP और कांग्रेस पर कैसा होगा असर?

    Updated: Wed, 08 Jan 2025 10:00 PM (IST)

    दिल्ली विधानसभा चुनाव में विपक्षी इंडी गठबंधन अब बंटता दिख रहा है। लोकसभा चुनाव साथ लड़ने वाली आम आदमी पार्टी और कांग्रेस अब एक-दूसरे पर तीखे हमले बोलने से गुरेज नहीं कर रही हैं। वहीं चार अन्य दलों ने भी अपनी स्थिति लगभग साफ कर दी है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव और तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी की सियासी चाल का क्या होगा असर? आइए पढ़ते हैं...

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    अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी। ( फाइल फोटो )

    संजय मिश्र, जागरण नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी सरकार के खिलाफ कांग्रेस की आक्रामक चुनावी रणनीति को लेकर विपक्षी आईएनडीआई गठबंधन दो खेमों में बंटता दिख रहा है।

    आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल के खिलाफ कांग्रेस के मुखर तेवरों को रोकने के लिए पर्दे के पीछे हुई अपनी कोशिशों की नाकामयाबी के बाद आईएनडीआईए में शामिल चार क्षेत्रीय पार्टियों ने दिल्ली चुनाव में आप का समर्थन करने का बुधवार को खुलकर एलान कर दिया।

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    केजरीवाल के साथ रैली करेंगे अखिलेश

    समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने जहां केजरीवाल के साथ चुनाव में सभा करने की घोषणा की है, वहीं ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने भी आप को अपना नैतिक समर्थन दिया है। विपक्षी खेमे में शामिल राजद और शिवसेना यूबीटी भी भाजपा को हराने में केजरीवाल के ही सक्षम होने की दलील देते हुए अपने समर्थन का साफ संदेश दिया है।

    कांग्रेस के लिए चिंता का सबब

    आईएनडीआईए के इन चारों सहयोगी दलों के कांग्रेस की आप को समर्थन देने के इस रूख से राजधानी दिल्ली के चुनाव में कांग्रेस की जमीनी राजनीति पर भले कोई फर्क नहीं आएगा। मगर राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन की सियासत के लिहाज से इन पार्टियों का रूख पार्टी की चिंता का सबब जरूर बना रहेगा।

    कांग्रेस की दावेदारी पर उठे सवाल

    विशेषकर यह देखते हुए कि हरियाणा और महाराष्ट्र में भाजपा से सीधे चुनावी मुकाबले में तमाम संभावनाओं के बावजूद कांग्रेस की अप्रत्याशित हार के बाद सहयोगी दलों का दबाव बढ़ा है। इन दोनों राज्यों के चुनाव के बाद तृणमूल कांग्रेस जैसे दल ने विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व करने की कांग्रेस की स्वाभाविक दावेदारी पर सवाल उठाए थे।

    हालांकि राष्ट्रीय स्तर की चुनौतियों को भली-भांति समझते हुए भी फिलहाल दिल्ली के चुनाव में अपने सहयोगी दलों के दबाव में नहीं आने की दृढ़ता दिखा रही, कांग्रेस राज्यों में अपनी राजनीतिक जमीन वापस हासिल करने की अपरिहार्य जरूरत को गहराई से महसूस कर रही है।

    संगठन मजबूत करने पर कांग्रेस का फोकस

    2025 को कांग्रेस ने अपने संगठन को नीचे से ऊपर तक मजबूत करने के लिए संगठन मजबूत वर्ष के रूप में घोषित किया है। दिल्ली कांग्रेस इस विधानसभा चुनाव में पुख्ता तैयारियों के साथ मैदान में उतरी है। चुनाव में बेहतर प्रदर्शन के जरिए कांग्रेस संगठन की मजबूती के लक्ष्य की ओर बढ़ सकती है।

    इसी लिहाज से अरविंद केजरीवाल के खिलाफ संदीप दीक्षित, मुख्यमंत्री आतिशी के मुकाबले अल्का लांबा और मनीष सिसोदिया समेत अब तक घोषित 48 सीटों पर अपने हिसाब से मजबूत उम्मीदवार उतारकर कांग्रेस नेतृत्व ने भी प्रदेश इकाई की चुनावी रणनीति का पूरी तरह समर्थन किया है।

    नरमी दिखाने के मूड में नहीं कांग्रेस

    ऐसे में सपा, टीएमसी, राजद और शिवसेना यूबीटी जैसे सहयोगी दलों के दबाव में अपनी चुनावी दशा-दिशा बदलने का कोई भी कदम पार्टी के लिए आत्मघाती होगा। कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार भी अनौपचारिक चर्चा में मानते हैं कि आप को लेकर नरमी की गुंजाइश का संदेश जाते ही दिल्ली के नेताओं-जमीनी कार्यकर्ताओं का जोश ढीला पड़ जाएगा।

    उठाने होंगे साहसिक कदम

    राजनीति के बदले दौर में लंबे समय तक भविष्य की कोई उम्मीद नहीं दिखाई देने पर केवल वैचारिक प्रतिबद्धता के सहारे नेताओं-कार्यकर्ताओं को लड़ाई लड़ते रहने के लिए प्रेरित करना अब आसान नहीं रहा। दिल्ली में बीते एक दशक से हाशिए पर खड़ी कांग्रेस नेतृत्व को मालूम है कि आप के साए में रहकर राजधानी में अपने खोए सामाजिक-राजनीतिक आधार को वापस हासिल नहीं कर सकती।

    खासकर तब जब दोनों पार्टियों का सामाजिक आधार लगभग एक ही है और ऐसे में पार्टी को राजधानी में अपनी सियासी प्रासंगिकता बहाल करनी के लिए इस चुनाव में साहसिक कदम तो उठाने ही पड़ेंगे।

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