Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Mission 2024: I.N.D.I.A में आसान नहीं सीटों का बंटवारा, दो महीने में तीन बैठकों के बाद भी नहीं निकला हल

    By Jagran NewsEdited By: Mohd Faisal
    Updated: Sun, 03 Sep 2023 09:14 PM (IST)

    Mission 2024 आइएनडीआइए गठबंधन के घटक दलों के प्रमुख नेता दावा कर रहे हैं कि सब कुछ ठीक चल रहा है। सीट बंटवारा भी जल्द ही कर लिया जाएगा लेकिन तीन बैठकों के बाद भी सबसे बड़ा सवाल है कि फार्मूला क्या होगा। बिहार उत्तर प्रदेश बंगाल पंजाब एवं दिल्ली समेत कई प्रदेशों को लेकर मंथन जारी है पर समाधान बहुत दूर दिख रहा है।

    Hero Image
    Mission 2024: आइएनडीआइए गठबंधन में आसान नहीं सीट बंटवारा (फोटो एएनआई)

    अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। आइएनडीआइए गठबंधन के घटक दलों के प्रमुख नेता दावा कर रहे हैं कि सब कुछ ठीक चल रहा है। सीट बंटवारा भी जल्द ही कर लिया जाएगा, लेकिन तीन बैठकों के बाद भी सबसे बड़ा सवाल है कि फार्मूला क्या होगा।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    तीन बैठकों के बाद भी नहीं निकल पाया निष्कर्ष

    पटना में 23 जून की आइएनडीआइए गठबंधन की पहली बैठक से अब तक दो महीने से भी ज्यादा बीत गए हैं, किंतु निष्कर्ष तक नहीं पहुंचा जा सका है। बिहार, उत्तर प्रदेश, बंगाल, पंजाब एवं दिल्ली समेत कई प्रदेशों को लेकर मंथन जारी है पर समाधान बहुत दूर दिख रहा है। दो महीने और तीन बैठकों के बावजूद विपक्ष के एजेंडे में सबसे ऊपर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को हटाने-हराने का नारा है। किंतु यह कैसे संभव होगा, इसके जवाब की आज भी तलाश है। हिंदी पट्टी के सभी राज्यों में सीट बंटवारे का पेच बरकरार है।

    अलग-अलग फार्मूले पर चल रहे ये राजनीतिक दल

    ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, शरद पवार एवं अरविंद केजरीवाल जैसे बड़े नेताओं के अलग-अलग फार्मूले और आकांक्षाएं हैं। सात सीटों वाली दिल्ली एवं 20 सीटों वाले पंजाब में आम आदमी पार्टी के बढ़ते प्रभाव को भी कम करके नहीं देखा जा सकता है। लालू प्रसाद एवं नीतीश कुमार की सक्रियता को देखते हुए 40 संसदीय सीटों वाले बिहार में सीट बंटवारा सहज माना जा रहा है, लेकिन कांग्रेस और वामदलों का पेच वहां भी फंसा है। कांग्रेस ने 10 सीट पर दावा किया है। वाम दलों को कम से कम आठ सीटें चाहिए।

    कांग्रेस के लिए मुश्किल नहीं है सफर

    लालू-नीतीश कांग्रेस को चार और वाम दलों को दो से ज्यादा सीट देने के पक्ष में नहीं हैं। यदि यह मसला सुलझा भी लिया जाता है तो कन्हैया कुमार को लेकर कांग्रेस को राजद के पैंतरे से पार पाना होगा। कन्हैया के लिए कांग्रेस बेगूसराय की सीट मांग रही है, जो लालू को स्वीकार नहीं है। राजद उसे वाम दल के लिए छोड़ने के पक्ष में है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस, सपा एवं रालोद आइएनडीआइए के मुख्य घटक दल हैं। सपा बड़ी पार्टी है। इसलिए कमान अखिलेश यादव के पास है। कांग्रेस चाहती है कि 2009 के प्रदर्शन के आधार पर सीटों का बंटवारा हो, जो अखिलेश को मान्य नहीं। वह 2019 की बात करते हैं, जिसमें कांग्रेस को सिर्फ रायबरेली की सीट पर जीत मिली है।

    जयंत चौधरी को भी है आठ सीटों की अपेक्षा

    अखिलेश अगर विधानसभा चुनाव के नतीजों को भी आधार बनाने पर अड़ते हैं तो 12-15 सीटों की अपेक्षा कर रही कांग्रेस की दुर्गति बढ़ सकती है, क्योंकि रायबरेली संसदीय क्षेत्र की सीटों पर भी कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा है। जयंत चौधरी को भी आठ सीटों की अपेक्षा है। यूपी की तरह बंगाल में भी कांग्रेस 2009 के नतीजे के आधार पर सीटों की दावेदारी कर रही है। ममता बनर्जी को कांग्रेस से ज्यादा वाम दलों से परेशानी है। वह माकपा को बंगाल से बाहर करने के पक्ष में हैं, जबकि कांग्रेस और वाम दलों का वहां गठबंधन है। 2009 में कांग्रेस को छह सीटों पर जीत मिली थी। 14 सीटों वाले झारखंड में पिछली बार झामुमो ने कांग्रेस को सात सीटें दी थी, किंतु इस बार भागीदारी कम करने के पक्ष में है। वहां लालू और नीतीश को भी सीटों की अपेक्षा है।

    विधानसभा चुनाव से बढ़ सकता है कांग्रेस का मनोबल

    राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना एवं मिजोरम में विधानसभा चुनाव जल्द होने हैं। कांग्रेस के सामने यहां घटक दलों की चुनौती नहीं है। परिणाम अच्छे आए तो कांग्रेस का हौसला बढ़ सकता है, जिसका सीधा असर सीट बंटवारे पर पड़ेगा। यही कारण है कि क्षेत्रीय दल कांग्रेस के हौसला बढ़ने से पहले ही सीट बंटवारा कर लेना चाहते हैं। किंतु कांग्रेस को कोई जल्दी नहीं दिख रही है।