Marathi Language Row: तो इस वजह से महाराष्ट्र में छिड़ा भाषा विवाद, BMC चुनाव से पहले ठाकरे भाइयों का क्या है प्लान?
Marathi Language Row महाराष्ट्र में मराठी भाषा को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। MNS कार्यकर्ताओं द्वारा गैर-मराठी भाषियों के साथ गुंडागर्दी की जा रही है। वहीं उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे 20 साल बाद एक मंच पर आए हैं जिसका कारण केंद्र सरकार की थ्री लैंग्वेज पॉलिसी का विरोध है। BMC चुनाव से पहले मराठी भाषा एक बड़ा मुद्दा बन गया है। आइए पढ़ें क्या है वजह।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली "महाराष्ट्रात राहायचे असेल तर मराठी शिकणे आवश्यक आहे", हिंदी भाषा में कहें तो 'महाराष्ट्र में रहना है तो मराठी (Marathi Language Row) सीखनी जरूरी है। इसे अब धमकी कहें या चेतावनी, MNS यानी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कार्यकर्ता, यही कहकर गैर-मराठी भाषी लोगों के साथ गुंडागर्दी कर रहे हैं।
कभी इन लोगों के निशाने पर कोई दुकानदार आ जाता है तो कभी कोई मजदूर, जो उत्तर भारत के अलग-अलग राज्यों से पलायन कर मुंबई जैसे शहरों में नौकरी या रोजगार कर रहे हैं।
MNS के मुखिया राज ठाकरे किस कदर यूपी-बिहार के लोगों की 'इज्जत' करते हैं, यह जगजाहिर है। मराठी बनाम गैर मराठी भाषा विवाद तब और बढ़ गया जब शिवसेना UBT सुप्रीमो उद्धव ठाकरे और भाई राज ठाकरे 20 साल बाद किसी सार्वजनिक मंच पर एक साथ नजर आए।
'हम साथ-साथ हैं...'
सवाल है कि जिस राज ठाकरे का साल 2005 में शिवसेना से मोहभंग हो गया था, उन्हें अब अचानक अपने भाई की याद क्यों आ गई? दोनों भाईयों ने इसका जवाब भी दिया।
बताया कि केंद्र सरकार द्वारा महाराष्ट्र में लागू की जाने वाली थ्री लैंग्वेज पॉलिसी के विरोध में दोनों भाइयों को एक साथ आना पड़ा। मराठी अस्मिता, मराठी सांस्कृतिक पहचान को बचाने के लिए दोनों कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं। वहीं, मुंबई में MNS कार्यकर्ताओं की गुंडागर्दी कुछ और ही कहानी बयां कर रही है।
दरअसल, मुंबई में कुछ महीनों के बाद 227 सीटों पर BMC यानी बृहन्मुंबई नगर निगम का चुनाव होना है। यह कोई छोटा-मोटा चुनाव नहीं है बल्कि इसे मिनी विधानसभा चुनाव भी कहा जाता है। बीएमसी भारत की सबसे बड़ी और सबसे अमीर नगर पालिका है। यह चुनाव पिछले कई सालों से नहीं हुआ है।
साल 2022 में चुनाव होना था, लेकिन उस समय महाराष्ट्र में राजनीतिक हलचल मची हुई थी। शिवसेना दो टुकड़ों में बंट चुकी थी। राज्य में सत्ता परिवर्तन हो चुका था। आरक्षण का मुद्दा भी छाया हुआ था।
सुप्रीम कोर्ट ने 6 मई को महाराष्ट्र सरकार को आदेश दिया था कि वह नोटिफिकेशन जारी करने के 4 महीने के अंदर स्थानीय निकायों के चुनाव कराए। अदालत के आदेश के बाद से ही राज्य में चुनावी माहौल बनने लगा है।
अब ये समझ लेते हैं कि BMC के चुनाव को जीतने के लिए सभी राष्ट्रीय दल अपनी पूरी ताकत क्यों झोंक देते हैं।
इसके पीछे सबसे बड़ी वजह नगरपालिका को मिलने वाली फंड है। इस साल फरवरी में BMC ने अपना सालाना बजट पेश किया। वित्त वर्ष 2025-26 के लिए 74,366 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। बजट में 1 हजार करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता का प्रस्ताव भी है। माना जाता है कि जिसने मुंबई पर राज कर लिया उसकी ताकत राष्ट्रीय राजनीति में भी बढ़ जाती है।
आखिरी बार साल 2017 में BMC का चुनाव हुआ था। उस समय शिवसेना दो हिस्सों में नहीं बंटी थी। शिवसेना उद्धव गुट को चुनाव में सबसे ज्यादा 85 सीटें हासिल हुई थी। वहीं, बीजेपी को 82 सीटें मिली थी। कांग्रेस को 31 सीटें हासिल हुई थी। हालांकि, बहुमत का आकंड़ा यानी 114 सीटें हासिल करने में सभी पार्टी असमर्थ रहे थे।
कुछ दिनों पहले ही महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हुआ था। इस चुनाव में शिवसेना उद्धव गुट को करारी हार का सामना करना पड़ा। मुंबई महानगर के 20 सीटों में ज्यादातर सीटें महायुति गठबंधन की झोली में आए थे। मतलब साफ है कि मुंबई में भी ठाकरे बंधुओं की पकड़ कमजोर होती जा रही है।
उद्धव ठाकरे ने BMC चुनाव जीतने के लिए अपना पूरा जोर लगा दिया है। दोनों भाइयों का साथ आने का मतलब है कि उनकी नजर मुंबई में मौजूद मराठी भाषी लोगों के वोट पर है। शिवसेना यूबीटी और MNS ने मराठी भाषा को ही चुनावी मुद्दा बना दिया है।
हालांकि, यह महायुति गठबंधन के लिए एक चुनौती है क्योंकि बीजेपी और शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) में भी कई ऐसे नेता हैं जो मराठी भाषा के मुद्दे पर खुलकर अपनी राय रख रहे हैं। मराठी बनाम गैर मराठी भाषा विवाद का फायदा जिसे भी हो, लोकिन नुकसान देश की आम जनता का हो रहा है।
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