तो 2014 में भी आती UPA सरकार... मणिशंकर अय्यर ने किताब में कहा- मनमोहन की जगह इस नेता को पीएम बनाते तो अलग होता नजारा
Mani Shankar Aiyar book कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने अपनी नई किताब के जरिए अपने राजनीतिक जीवन के बारे में चर्चा की है। मनमोहन सिंह से लेकर पीएम मोदी के सत्ता में आते तक का इसमें जिक्र है। किताब में कांग्रेस नीत यूपीए सरकार की गलतियों के बारे में भी बताया गया है जिसके कारण सरकार दोबारा नहीं आ सकी।

पीटीआई, नई दिल्ली। Mani Shankar Aiyar book कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने अपनी नई किताब में कई खुलासे किए हैं। अय्यर ने किताब के जरिए अपने राजनीतिक जीवन के बारे में चर्चा की है। मनमोहन सिंह से लेकर पीएम मोदी के सत्ता में आते तक का इसमें जिक्र है।
किताब में कांग्रेस नीत यूपीए सरकार की गलतियों के बारे में भी बताया गया है, जिसके कारण सरकार दोबारा नहीं आ सकी।
मनमोहन सिंह को बनाना चाहिए था राष्ट्रपति
- अय्यर ने अपनी किताब में लिखा है कि 2012 में जब राष्ट्रपति पद के लिए पद खाली हुआ तो प्रणब मुखर्जी को यूपीए-2 सरकार की बागडोर सौंपी जानी चाहिए थी और मनमोहन सिंह को राष्ट्रपति बनाया जाना चाहिए था।
- 83 वर्षीय अय्यर ने किताब में लिखा है कि अगर यह कदम उठाया गया होता तो यूपीए सरकार पंगु नहीं होती।
- उन्होंने कहा कि मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाए रखने और प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति भवन भेजने के फैसले ने कांग्रेस के लिए यूपीए-3 सरकार की संभावनाओं को खत्म कर दिया।
राजनीति की शुरुआत से पतन तक की कहानी
अय्यर ने जगरनॉट द्वारा प्रकाशित अपनी आगामी किताब 'ए मेवरिक इन पॉलिटिक्स' में इन बातों को सामने रखा। पुस्तक में अय्यर राजनीति में अपने शुरुआती दिनों, नरसिंह राव के कार्यकाल, यूपीए-1 में मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल और फिर अपने पतन के बारे में बात करते हैं।
मनमोहन सिंह के खराब स्वास्थ्य का हुआ नुकसान
अय्यर ने कहा कि 2012 में मनमोहन सिंह ने कई कोरोनरी बाईपास के लिए ऑपरेशन करवाए। वे कभी भी शारीरिक रूप से पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाए। इससे उनकी गति धीमी हो गई और इसका असर सरकार पर भी पड़ा।
मनमोहन और सोनिया गांधी के बीच था गतिरोध
राजनयिक से राजनेता बने अय्यर ने कहा कि प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के बीच एक तरह से गतिरोध था और इसी कारण शासन का भी अभाव था। उन्होंने कहा कि अन्ना हजारे के 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' आंदोलन को भी सही ढंग से नहीं संभाला गया और इसी कारण सरकार का पतन हुआ।
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