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    'गठबंधन धर्म का पालन करें...', शिंदे की नसीहत; क्या महायुति में सब ठीक है? Inside Story

    Updated: Mon, 01 Dec 2025 03:12 PM (IST)

    महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे के 'गठबंधन धर्म' वाले बयान से महायुति में दरार की चर्चा तेज हो गई है। शिवसेना में बगावत के बाद भाजपा के साथ सरकार बनी, लेकिन कार्यकर्ताओं के दल-बदल से तनाव बढ़ गया। फडणवीस ने स्थिति को संभालने की कोशिश की, पर शिंदे के बयान ने कलह उजागर कर दी। निकाय चुनाव पर इसका असर दिख सकता है।

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    महायुति में चल रही तकरार का असर निश्चित रूप से मुंबई निकाय चुनाव पर पड़ेगा (फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनाव के बाद जब देवेंद्र फडणवीस को राज्य की कमान मिली और एकनाथ शिंदे को डिप्टी पद से संतोष करना पड़ा, तभी से कयास लगाए जाने लगे थे कि आने वाले दिनों में राज्य की सियासत किसी भी करवट बैठ सकती है। इन कयासों पर विराम लगाने की तमाम कोशिश भाजपा और शिवसेना की तरफ से की गईं, लेकिन गाहे-बगाहे स्थिति उजागर हो ही जाती है।

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    ताजा मामला एकनाथ शिंदे के उस बयान से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने अपने सहयोगी दलों को महागठबंधन धर्म का पालन करने की नसीहत दे डाली। इस बयान के बाद से फिर से सवाल पूछे जाने लगे हैं कि क्या महायुति में सब कुछ ठीक नहीं है?

    शिंदे की बगावत, फिर डिप्टी पद पर संतोष

    इस कहानी की शुरुआत तब हुई, जब एकनाथ शिंदे के नेतृ्त्व में कुछ विधायकों ने शिवसेना में बगावत कर दी और परिणामस्वरूप शिवसेना दो धड़ों में बंट गई। कहते हैं कि भाजपा ने ही इस बगावत की स्क्रिप्ट लिखी थी। लिहाजा शिंदे गुट ने भाजपा के साथ गठबंधन में सरकार बना ली और नेतृत्व एकनाथ शिंदे को सौंपा गया। तब देवेंद्र फडणवीस को डिप्टी पद से संतोष करना पड़ा था।

    बाद में अजित पवार भी साथ आ गए और इस तरह महायुति बनी। कैलेंडर में तारीख बदली और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हुए। महायुति को बंपर जीत मिली। इस बार सत्ता की कमान देवेंद्र फडणवीस को मिली और शिंदे के पास डिप्टी पद आया। तारीख बदलती गई और महायुति में तकरार की चिटपुट खबरों के साथ सरकार चलती रही।

    टूट गया अनौपचारिक समझौता

    इन दिनों शिवसेना के कॉर्पोरेटर्स और ऑन-ग्राउंड वर्कर्स का भाजपा में शामिल होना जारी रहा। लेकिन शिवसेना इसे पचा नहीं पा रही थी। तकरार बढ़ती गई और फिर दोनों पार्टियों ने एक अनौपचारिक समझौता किया कि एक-दूसरे के वर्कर्स और ऑफिस-बेयरर्स को शामिल नहीं किया जाएगा। लेकिन जल्द ही ये समझौता टूट गया।

    कुछ ही दिनों बाद रूपसिंह धाल, आनंद ढोके, शिल्पारानी वाडकर और अनमोल म्हात्रे समेत शिवसेना के कई नेता BJP में शामिल हो गए। किसी ने खुलकर कुछ कहा नहीं, लेकिन ये स्पष्ट हो गया था कि अंदरखाने सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। चर्चा तब ज्यादा होने लगी, जब मुंबई निकाय चुनाव की तैयारियों के लिए फडणवीस और शिंदे एक ही होटल में ठहरे थे, लेकिन दोनों ने एक-दूसरे से मुलाकात नहीं की।

    फडणवीस की सब कुछ ठीक दिखाने की कोशिश

    जब अटकलें जोर पकड़ने लगीं, तो फडणवीस ने दरार को ढकने की कोशिश की। उन्होंने जानबूझकर शिंदे से मिलने से परहेज करने की आशंका को खारिज करते हुए कहा, 'मैं देर रात आया था और उनसे पहले निकलना पड़ा। मेरी मीटिंग्स उनसे पहले तय हैं। इसलिए हम नहीं मिले। लेकिन हम मिलेंगे। इसमें क्या बड़ी बात है? हम दोनों अभी कैंपेन में बिजी हैं लेकिन हम रोज फोन पर बात करते हैं।'

    लीपापोती की कोशिश शिंदे की तरफ से भी हुई, लेकिन उनके एक बयान ने सब कुछ साफ कर दिया। शिंदे ने पहले कहा, 'मैं ऐसे कमेंट्स को सीरियसली नहीं लेता। जिस दिन से मैं चीफ मिनिस्टर बना हूं, मैंने ऐसे कई इल्जाम देखे और सुने हैं। उनमें फंसने के बजाय, मैं अपने काम पर फोकस करता हूं।'

    हालांकि इसके बाद शिंदे बोले, 'यह अलायंस कल या आज नहीं बना है। यह अलायंस एक जैसी आइडियोलॉजी और कॉमन प्रिंसिपल्स पर बना है। हम गठबंधन धर्म के सिद्धांतों को पूरी तरह फॉलो करते हैं और हमारे अलायंस पार्टनर्स को भी फॉलो करना चाहिए।' इस बयान ने महायुति में अंदरखाने चल रहे मनमुटाव को खुले मंच पर लाकर रख दिया।

    निकाय चुनाव पर दिखेगा असर

    इस चर्चा की आग में घी डालने का काम अजित पवार की पार्टी एनसीपी के एक सदस्य ने किया। एनसीपी नेता माणिकराव कोकाटे ने एक बयान में कहा, 'BJP पूरी तरह बंटी हुई लगती है। अब उसके पास अपना कुछ नहीं है। उनकी पूरी जिंदगी मैनिपुलेशन, इधर-उधर बंटने के इर्द-गिर्द घूमती है। उनके पुराने वर्कर्स सभी घर पर हैं।'

    शिवसेना के एक वरिष्ठ नेता और सरकार में मंत्री उदय सामंत ने भी माना है कि गठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं है। मुंबई में निकाय चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है। महायुति में चल रही तकरार का असर निश्चित रूप से इस चुनाव पर पड़ेगा और अगर महायुति के सभी दल निकाय चुनाव में अलग-अलग लड़ें, तो इसमें आश्चर्य करने जैसा कुछ बचा नहीं है।