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    Maharashtra Political Crisis: 'आया राम-गया राम' जुमला हरियाणा के इस नेता से हुआ था शुरू, 9 घंटे में बदले थे दो दल

    By Amit SinghEdited By:
    Updated: Fri, 24 Jun 2022 05:11 PM (IST)

    Maharashtra Political Crisis भारतीय राजनीति में आया राम - गया राम का जुमला हरियाणा के पहले विधानसभा चुनाव से शुरू हुआ था। इसका इस्तेमाल सबसे पहले हरियाणा के पूर्व विधायक गया लाल के लिए हुआ था। उनके बेटे ने भी दल-बदल की राजनीति को आगे बढ़ाया।

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    भारतीय राजनीत में 'आया राम - गया राम' का मुहावरा हरियाणा से शुरू हुआ था। फोटो - प्रतीकात्मक

    नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट (Maharashtra Political Crisis) ने एक बार फिर इतिहास की राजनीति के 'आया राम - गया राम' की यादें ताजा कर दी हैं। राजनीति के इतिहास में 'आया राम - गया राम' के तौर पर पहचाने जाने वाले इस राजनेता ने कपड़ों की तरह पार्टियां बदली। महज नौ घंटे में इन्होंने दो पार्टी बदल दी और 15 दिन में दल बदल का आंकड़ा तीसरे दल तक पहुंच गया था। इस परंपरा को बाद में इनके बेटे ने भी आगे बढ़ाया। ये सिलसिला शुरू हुआ था, हरियाणा राज्य के पहले विधानसभा चुनावों से।

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    पंजाब से अलग होकर 1 नवंबर 1966 को हरियाणा अलग राज्य बना। इसके बाद 1967 में राज्य का पहला विधानसभा चुनाव हुआ, जिसमें कांग्रेस ने कुल 81 सीटों में से 48 सीटों पर सफलता हासिल की थी। भारतीय जन संघ (Bharatiya Jana Sangh) को 12, स्वतंत्र पार्टी (Swatantra Party) को तीन और रिब्पलिकन पार्टी (Republican Party) को दो सीटों पर जीत हासिल हुई थी। इनके अलावा 16 निर्दलीय विधायक थे, जो दूसरा सबसे बड़ा नंबर थे। इन निर्दलीय विधायकों में से एक राजनेता था गया लाल (Gaya Lal), जिन्होंने हसनपुर की आरक्षित विधानसभा (Hasanpur Constituency) सीट से जीत दर्ज की थी।

    कांग्रेस के भगवत दयाल शर्मा (Bhagwat Dayal Sharma) ने 10 मार्च 1967 को हरियाणा के पहले मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। महज एक सप्ताह के भीतर भगवत दयाल शर्मा की सरकार गिर गई। कांग्रेस के 12 विधायकों ने हरियाणा कांग्रेस के नाम से एक नया समूह बनाकर, पार्टी छोड़ दी थी। उधर निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी मिलकर अपनी एक नई पार्टी यूनाइटेड फ्रंट (United Front) बना ली। दल-बदल की ये प्रक्रिया जारी रही और कांग्रेस के बागी विधायकों, निर्दलीय विधायकों व कुछ और छोटे-छोटे दलों ने मिलकर संयुक्त विधायक दल (Sanyukta Vidhayak Dal - SVD) बना लिया। इस दल के पास कुल 48 विधायक थे।

    इसके बाद 24 मार्च 1967 को राव बिरेंद्र सिंह (Rao Birendra Singh) ने संयुक्त विधायक दल के नेता के रूप में राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। विशाल हरियाणा पार्टी के राव बिरेंद्र सिंह ने इस चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर पटौदी विधानसभा सीट से जीते थे। कांग्रेस में भगवत दयाल शर्मा और देवीलाल के मुकाबले राव बिरेंद्र सिंह की स्थिति कमजोर थी।

    ऐसे शुरू हुआ 'आया राम - गया राम' का इस्तेमाल

    राजनीतिक उथल-पुथल के उस दौर में सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरी विधायक गया लाल ने। महज नौ घंटे के अंदर उन्होंने कांग्रेस का दामन थामा भी और फिर झटक भी दिया। इसके बाद दो सप्ताह के भीतर वह यूनाइटेड फ्रंट में शामिल हो गए। भगवत दयाल शर्मा से मुख्यमंत्री पद छीनने वाले राव बिरेंद्र सिंह ने चंडीगढ़ के एक संवाददाता सम्मेलन में गया लाल को पेश किया। यहां उन्होंने गया लाल का परिचय कराते हुए कहा कि 'गया राम, अब आया राम हैं'। इसके बाद तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री वाईबी चव्हाण ने संसद में इस मुहावरे का इस्तेमाल, दल-बदलु राजनेताओं के लिए किया। हालांकि राव बिरेंद्र सिंह भी ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठ सके। महज नौ महीने बाद 2 नवंबर 1967 को भारी उथल-पुथल के बीच विधानसभा भंग हो गई और 1968 के तक राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू रहा।

    अंतिम चुनाव हारने तक पाला बदलते रहे गया लाल

    इसके बाद भी विधायक गया लाल के दल-बदल का सिलसिलाय जारी रहा। यूनाइटेड फ्रंट के बाद 1972 में उन्होंने इंद्रवेश (Indervesh), अग्निवेश (Agnivesh) और आदित्यवेश (Adityavesh) के नेतृत्व वाली आर्य सभा का दामन थाम लिया। दो साल बाद गया लाल चरण सिंह के नेतृत्व वाले भारतीय लोक दल में शामिल हो गए। इसके बाद भारतीय लोकदल समेत चार दलों ने मिलकर जनता पार्टी बनाई। वर्ष 1977 में गया लाल ने जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा। गया लाल ने अपना अंतिम चुनाव 1982 में एक निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लड़ा और उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

    बेटे ने भी जारी रखा दल-बदल का सिलसिला

    वर्ष 2009 में गया लाल का निधन हो गया। इससे पहले वह अपनी राजनीतिक विरासत बेटे उदय भान को सौंप चुके थे। उदयभान ने 1987 के हरियाणा विधानसभा चुनावों में लोक दल-भाजपा के संयुक्त उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा और जीत गए। इसके बाद 1991 में वह जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और हार गए। 1996 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर एक बार फिर उन्हें हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 2000 में उदयभान दूसरी बार निर्दलीय विधायक बने और भारतीय राष्ट्रीय लोक दल में शामिल हो गए। इसके बाद वर्ष 2004 में कांग्रेस में शामिल हुए, लेकिन हार गए। हालांकि एक साल बाद ही कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर वह विधानसभा पहुंच गए। उदय भाव वर्तमान में हरियाणा के कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष हैं।

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