एकनाथ शिंदे के सीएम बनने पर नया पेंच, अजित पवार गुट ने चली नई सियासी चाल; भाजपा खेमे में भी सन्नाटा
महाराष्ट्र में अभी सीएम पद पर कोई सहमति नहीं बनी है। महायुति के दलों ने दबाव की राजनीति भी शुरू कर दी है। भाजपा खेमे में सन्नाटा है। हालांकि पार्टी के कई नेता खुलकर देवेंद्र फडणवीस को सीएम बनाने की मांग उठा चुके हैं। मगर यह भी कहना है कि फैसला आम सहमति से लिया जाएगा। इस बीच अजित पवार गुट ने नई चाल चली है।
ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का परिणाम आए तीन दिन बीत चुके हैं, लेकिन आज भी नए मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा नहीं हो सकी है। पूर्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के समर्थक मुखर होकर उन्हें पुनः मुख्यमंत्री बनाने की मांग कर रहे हैं। जबकि पिछली सरकार में उपमुख्यमंत्री रहे अजित पवार गुट ने मुख्यमंत्री पद के लिए देवेंद्र फडणवीस का समर्थन करने की बात कही है। मगर महायुति में 132 सीटों के साथ सबसे बड़ा दल बनकर उभरी भाजपा में अभी तक सन्नाटा छाया है। यहां तक कि अभी भाजपा विधायक दल का नेता भी नहीं चुना गया है।
भाजपा को मिला पांच निर्दलियों का साथ
आज एक महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम के तहत पांच निर्दलीय विधायकों ने भाजपा को समर्थन देने की घोषणा कर दी है। उनके समर्थन से भाजपा विधायकों की संख्या बढ़कर 137 हो गई है। अब उसके पास सरकार बनाने के लिए आवश्यक 145 विधायकों में सिर्फ आठ की कमी रह गई है। जबकि अजित पवार की राकांपा पहले ही मुख्यमंत्री पद के लिए भाजपा के देवेंद्र फडणवीस को समर्थन दे चुकी है।
छगन भुजबल ने चली नई चाल
राकांपा के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल ने साफ कहा है कि अगर शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया जाता है तो उनकी पार्टी अजित पवार के नाम की भी दावेदारी पेश करेगी, क्योंकि उनकी पार्टी का स्ट्राइक रेट शिवसेना से ज्यादा है। भुजबल के बयान से संकेत मिलता है कि अजित पवार नहीं चाहते कि एकनाथ शिंदे पुनः मुख्यमंत्री बनें, और उनके अधीन अजित पवार को उपमुख्यमंत्री के रूप में काम करना पड़े।
सियासी चाल के पीछे कहीं ये वजह तो नहीं
कारण यह है कि 2022 में जब शिंदे अपनी पार्टी के 39 विधायकों के साथ उद्धव ठाकरे से अलग हुए थे तो उनके साथ आए सभी विधायकों ने खुलकर महाविकास आघाड़ी सरकार में वित्तमंत्री रहे अजित पवार पर विकास कार्यों के लिए फंड न देने का आरोप लगाया था। फिर करीब एक साल बाद जब अजित पवार भी शिंदे और फडणवीस की सरकार में शामिल हो गए थे, तब भी शिंदे गुट की ओर से उन्हें वित्त मंत्रालय देने का विरोध किया गया था। इसलिए अजित पवार इस बार सरकार की कमान एकनाथ शिंदे के हाथ में जाते नहीं देखना चाहते।
भाजपा ने खारिज किया बिहार फॉर्मूला
दूसरी ओर शिंदे गुट 57 सीटें जीतकर आने के बाद अपने नेता को मुख्यमंत्री बनाने पर जोर दे रहा है। उसका कहना है कि महाराष्ट्र में भी बिहार की तर्ज पर छोटे सहयोगी दल को मुख्यमंत्री पद देकर सहृदयता दिखानी चाहिए।
भाजपा के वरिष्ठ नेता रावसाहेब दानवे पाटिल ने शिवसेना के इस तर्क को यह कहकर खारिज कर दिया है कि बिहार में भाजपा पहले ही घोषणा करके चुनाव लड़ी थी कि सीटें किसी की भी ज्यादा आएं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही बनेंगे। जबकि महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने के साथ ही यह तो स्पष्ट किया गया था कि लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव उन्हीं के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। मगर चुनाव बाद पुनः मुख्यमंत्री पद उन्हीं को देने का कोई वादा नहीं किया गया था।
खेल खराब नहीं करना चाहते हैं शिंदे
मुख्यमंत्री पद को लेकर स्वयं एकनाथ शिंदे की ओर से कोई बयान अभी तक नहीं आया है। उलटे रविवार शाम अपने विधायकों को संबोधित करते हुए शिंदे ने कहा कि कोई ऐसा बयान न दे, जिससे महायुति में कड़वाहट पैदा हो। संभवतः शिंदे भी समझ रहे हैं कि भाजपा इस समय मजबूत स्थिति में है और राकांपा (अजित) के 41 विधायकों को मिलाकर भाजपा आसानी से सरकार बना सकती है। इसलिए वह जिद करके स्वयं अपना खेल खराब नहीं करना चाहते।
भाजपा खेमे में अभी सन्नाटा
दूसरी ओर भाजपा खेमे में अभी तक मुख्यमंत्री पद को लेकर सन्नाटा छाया है। यहां तक कि नवनिर्वाचित विधायकों को विधायक दल का नेता चुनने के लिए भी कोई सूचना नहीं दी गई है। केंद्रीय नेतृत्व की तरफ से भी अब तक कोई संकेत नहीं दिए गए हैं। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से एकनाथ शिंदे की नजदीकी भी छुपी नहीं है। शिंदे अपने व्यवहार से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का दिल जीतने का हरसंभव प्रयास करते रहे हैं। अब गेंद पूरी तरह से मोदी और शाह के पाले में है कि वह शिंदे और फडणवीस में से ही किसी एक को मुख्यमंत्री बनाते हैं, या कोई नया समीकरण सामने ले आते हैं।
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